“यदा यदा हि धर्मस्य …”: कितना सार्थक है श्रीमद्भगवद्गीता का यह वचन?

टिप्पणी – 

मैं अपने जो विचार यहां लिख रहा हूं  उनसे कई जन  असहमत होंगे। कई जन  आक्रोषित भी हो  सकते हैं।

मेरी प्रार्थना है कि जैसे ही आपको लगे कि विचार निकृष्ट हैं, आप आगे न पढ़ें।

असहमत होते हुए भी यदि पढ़्ना स्वीकार्य हो तो अपना ख़ून खौलाए बिना इन बातों को किसी मूर्ख अथवा सनकी की बातें समझकर अनदेखी कर दें और बड़प्पन  दिखाते हुए मुझे क्षमा कर दें।

धन्यवाद, शुक्रिया, थैंक्यू। 

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥७॥
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥८॥
(श्रीमद्भगवद्गीता, अध्याय ४)
(यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिः भवति भारत, अभि-उत्थानम् अधर्मस्य तदा आत्मानं सृजामि अहम् । परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुस्-कृताम्, धर्म-संस्थापन-अर्थाय सम्भवामि युगे युगे ।)
(टिप्पणीः श्रीमद्भगवद्गीता वस्तुतः महाकाव्य महाभारत के भीष्मपर्व का एक अंश है; इसके १८ अध्याय भीष्मपर्व के क्रमशः अध्याय २५ से ४२ हैं ।)

भावार्थः जब जब धर्म की हानि होने लगती है और अधर्म आगे बढ़ने लगता है, तब तब मैं स्वयं की सृष्टि करता हूं, अर्थात् जन्म लेता हूं । सज्जनों की रक्षा एवं दुष्टों के विनाश और धर्म की पुनःस्थापना के लिए मैं विभिन्न युगों (कालों) मैं अवतरित होता हूं ।

मैं नहीं जानता कि ईश्वर होता है कि नहीं । जब कोई मुझसे पूछता है तो मेरा उत्तर स्पष्टतः अज्ञान का होता है, यानी साफ तौर पर “मैं नहीं जानता ।” हो सकता है ईश्वर हो । अथवा हो सकता है वह न हो और हम सदियों से उसके अस्तित्व का भ्रम पाले हुए हों । कोई भी व्यक्ति उसके अस्तित्व को प्रमाणित नहीं कर सकता है, और न ही उसके ‘अनस्तित्व’ को । ऐसे प्रश्नों के संदर्भ में अपनी अनभिज्ञता जताना मेरी वैज्ञानिक सोच के अनुरूप है ।

जब ईश्वर के बारे में निश्चित धारणा ही न बन सकी हो तो श्रीकृष्ण के ईश्वरावतार होने-न-होने के बारे में भला क्या कहा जा सकता है ? ऐसी स्थिति में “मैं युग-युग में जन्म लेता हूं ।” कथन कितना सार्थक कहा जाऐगा ? लेकिन मान लेता हूं कि महाभारत का युद्ध हुआ था, उसमें भगवदावतार श्रीकृष्ण की गंभीर भूमिका थी, और उन्होंने अपने हथियार डालने को उद्यत अर्जुन को ‘धर्मयुद्ध’ लड़ने को प्रेरित किया । उन्होंने युद्धक्षेत्र में जो कुछ कहा क्या वह अर्जुन को युद्धार्थ प्रेरित करने भर के लिए था या उसके आगे वह एक सत्य का प्रतिपादन भी था ? दूसरे शब्दों में, उपर्युक्त दोनों श्लोकों में जो कहा गया है वह श्रीकृष्ण का वास्तविक मंतव्य था, या वह उस विशेष अवसर पर अर्जुन को भ्रमित रखने के उद्येश्य से था । जब मैं गंभीरता से चिंतन करता हूं तो मुझे यही लगता है कि ईश्वर धर्म की स्थापना के लिए पुनः-पुनः जन्म नहीं लेता है ! कैसे ? बताता हूं ।

मान्यता है कि महाभारत का युद्ध द्वापर युग के अंत में हुआ था । उसी के बाद कलियुग का आरंभ हुआ । चारों युगों में इसी युग को सर्वाधिक पाप का युग बताया जाता है । सद्व्यवहार एवं पुण्य का लोप होना इस युग की खासियत मानी जाती है । कहा जाता है पापकर्म की पराकाष्ठा के बाद फिर काल उल्टा खेल खेलेगा और युग परिवर्तन होगा । मैं बता नहीं सकता हूं कि कलियुग के पूर्ववर्ती सैकड़ों-हजारों वर्षों तक स्थिति कितनी शोचनीय थी, धर्म का ह्रास किस गति से हो रहा था, किंतु अपने जीवन में जो मैंने अनुभव किया है वह अवश्य ही निराशाप्रद रहा है । समाज में चारित्रिक पतन लगातार देखता आया हूं । देखता हूं कि लोग अधिकाधिक स्वार्थी होते जा रहे हैं और निजी स्वतंत्रता के नाम पर मर्यादाएं भंग करने में नहीं हिचक रहे हैं । सदाचरण वैयक्तिक कमजोरी के तौर पर देखा जाने लगा है । बहुत कुछ और भी हो रहा है ।

इस दशा में मेरे मन में प्रश्न उठता है कि श्रीकृष्ण के उपर्युक्त कथनों के अनुसार तो उन्हें धर्म की स्थापना करने में सफल होना चाहिए था, तदनुसार अपने पीछे उन्हें एक धर्मनिष्ठ समाज छोड़ जाना चाहिए था । लेकिन हुआ तो इसका उल्टा ही । महाभारत की युद्धोपरांत कथा है कि कौरव-पांडवों का ही विनाश नहीं हुआ, अपितु श्रीकृष्ण के अपने वृष्णिवंशीय यादवों का भी नाश हुआ । ‘सामर्थ्यवान्’ श्रीकृष्ण स्थिति को संभालने में असमर्थ सिद्ध हुए थे । अंत में निराश होकर उन्होंने अपने दायित्व अर्जुन को सौंप दिए और अग्रज बलभद्र के साथ वन में तपस्वी का जीवन बिताने चले गये । वहीं एक व्याध के हाथों उनकी मृत्यु हुई थी ।

कथा के इस अंश की किंचित् विस्तार से चर्चा मेरी अगली पोस्ट की विषय-वस्तु रहेगी ।योगेन्द्र जोशी

207 टिप्पणियां (+add yours?)

  1. Asha Joglekar
    जुलाई 26, 2010 @ 18:57:07

    Agle hisse ki prateeksha hai.

    प्रतिक्रिया

    • Meghali Gupta
      अप्रैल 06, 2020 @ 18:49:42

      Apko aisa sb is liye lgta h ki apne bramhgyaan nahi praptt Kiya h aur ap positive na soch KR negative soch rahe h agr kalyug me bhagwan paanch elements se vidymaan nhi h to parmatma to h aur waha to humesha hi rahega

      प्रतिक्रिया

      • योगेन्द्र जोशी
        अप्रैल 06, 2020 @ 19:49:35

        No comments.

      • Sonali
        जुलाई 24, 2020 @ 21:39:42

        Toh aap bhagwaan ko samjhte he nhi hai behan,,, Wo kbhi paanch mein vileen nhi hota, ye circle usne hmare liye bnayia hai,, Ram, Krishna, Shiv, Vishnu, Brahma actual God nhi Wo Mahayogi Mahapurush thy adi srishti ,satyug Treta or dwapar Yug ke ,unhone toh khud aajeevan Ishwar ki bhakti ki thi or humnein actual God ko shod inhe he Bhagwaan maan liya kisi ko 3 ser or kisi ko 12 hath de diye..

      • Rohit
        जुलाई 24, 2020 @ 21:41:28

        Or Rhi baat Brahm gyaan ki,, Jis vayakti ko 4ro Vedo ka gyaan nhi Wo Brahm Gyani nhi…

    • Gaurav
      जनवरी 30, 2023 @ 13:33:50

      Apne kha ki bhagwaan agr har yug m avatar lete h to kalyug to sabse jyda Papyukt h to abhi ku nhi hua? i agree lekin usme ye bhi likha tha ki kalyug k antim charan m jab dharm ki hani hogi , pap apni charm sima tak pahuch jayega tab bhagwaan fr avatar lenge or wo avtar hoga “kalki” avatar. Adha adhura knowledge zaher k saman hota h so pls read properly about that topic you write here.

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      • योगेन्द्र जोशी
        जनवरी 30, 2023 @ 17:11:32

        बहुत-बहुत धन्यवाद। सहमत होना या न होना हर व्यक्ति का अधिकार है। तर्क अपने-अपने होते हैं।

  2. Aniruddha Pande
    जुलाई 26, 2010 @ 20:00:18

    He who thinks he does not come to know it, knows It. He who thinks he knows It, knows It not. जिसका यह मानना है की ब्रम्ह जानने में नहीं आता उसका वह जाना हुआ है . जिसका यह मानना है की ब्रह्म मेरा जाना हुआ है वह नहीं जानता .The true knowers think they can never know It (because of Its infinitude), while the ignorant think they know It. ——-KENA UPNISHAD ( PART-2-III)

    आपने बहुत गहन विषय उठाया है . जिस रूप मे इश्वर की पूजा होती है निश्चित तौर पर वह रूप विश्वसनीय नहीं है . इश्वर का वास्तविक स्वरुप क्या है यह बात शायद कोई भी नहीं जानता . जो भी उस स्वरुप के बारे मे कहा जाता है वह या तो अनुमान है या अनुभव . इश्वर इन दोनों से परे है .
    इश्वर पे विश्वास लोगो को दुःख सहने की क्षमता देता है जीवन के कठिन क्षणों मे मनोवैज्ञानिक सांत्वना देता है . यह इश्वर की सांसारिक उपयोगिता है . आध्यात्मिक अर्थ मे इश्वर एक बहुत भिन्न आयाम है
    दो शब्द है एक “जाना” दूसरा “माना” .इश्वर के बारे मे लोग जो कहते है वो सब मानी हुयी बाते है . जबकि इश्वर को कितना “जाना” यह बात कोई भी समझदार आदमी विश्वास से नहीं कह सकता है

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    • दिवाकर सिंह
      जून 12, 2016 @ 15:03:57

      सर , आपने बहुत ही सही बात कही है ….

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    • गुरु
      जुलाई 24, 2019 @ 16:50:26

      महोदय,
      जिसे आप ईश्वर कहते है वह वास्तव में एक भ्रम है और कुछ नहीं, मानव अपनी नाकामी को छुपाने के लिए इसे बना रखा है, मुस्लिम में एक अल्लाह है, ईसाई में एक गॉड और हिन्दू में अनेक देवी देवता, वास्तव में यह है कि नहीं किसी की ज्ञात हीं नहीं है, बस कुछ मानव ने राज करने के उद्देस्य से इनका निर्माण किया है और यह धर्म-गुरु एक धर्म के मानव पर राज करते है, यदि मानव को कोई जन्म लेते ही धर्म का ज्ञान नहीं होता और यदि किसी एक धर्म-ग्रंथ के मार्ग पर भी चलता तो पापी नहीं बनता, गीता में लिखा है असत्य बोलना पाप है, पाप करना गलत है, मानव जैसा कर्म करेगा वैसा फल मिलेगा, गीता में कहीं नहीं लिखा कृष्ण की पूजा करों, कृष्ण यदि देव/मानव थे तो उन्हें सत्य का ज्ञान होगा जिसका वर्णन गीता में मिलता है जो सत्य है, पता नहीं मानव ज्ञान देने वाले को कृष्णा को भगवान क्यों कहता है, गीता में कहीं लिखा है कृष्ण भगवान है, या कलयुग मानव की प्रवृति है जो ज्ञान दे उसको भगवान बना देता है ताकि मानव का कार्य भगवान करें, क्योकि यह कभी पाप करना कलयुग में नहीं छोड़ेगा, कलयुग में भगवान बनना बहुत आसान है, प्रवचन दे और बन जाये भगवान बाद में मालूम चलता है आशाराम और रामरहीम निकलता है। आपके सभी प्रश्न का उत्तर मैं दे सकता हूँ, मैं भगवान नहीं बस थोड़ा सत्य का ज्ञान हो गया है whatsapp करें 9852494133. मेरी सेवा निःशुल्क है निर्भय रहें।

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      • प्रवीण सोनी
        सितम्बर 05, 2019 @ 22:32:17

        महोदय ना अल्लाह है ना गॉड है ना भगवान है बस है तो मात्र विश्वास ये विश्वाश ही मुस्लिम ५ पहर नमाज पढ़ते है जबकि उनको पता है अल्लाह ना है ना देख रहा है फिर भी करते हैं ।तो मेरा मानना है है की जहां विश्वास है वहां धर्म है और धर्म है तो भगवान अल्लाह सब है

      • संजय झु 
        अक्टूबर 08, 2019 @ 16:26:41

        आस्था और विश्वास हम मनुष्य आत्माओं का विशेष संस्कार है. इनके बिना भी जीवन है. फिर भी इन संस्कारों संग का अनुभव सुखद और शक्तिशाली है. आस्था निराधार नहीं होती. हमन अपने अपनी जीवन में इन अनुभव को सहज  याद करते हुए किसी भी वर्त्तमान की मुश्किल को  स्वीकार करते हुआ उम्मीद से अगला कदम ले पाते हैं. 

        चाहे हमने जिस भी धर्म और आस्था का सहारा लिया हो, हमारा अनुभव निजी होता है. कर्मों की गति बहुत सुक्ष्म और प्रधान है, इसका तो हरेक धर्म में बोध और स्वीकारिता है. परमात्मा निराकार हैं. वे सभी आत्मों के एक परमेश्वर पिता हैं. भगवान् एक हैं और वे सारे जगत की आत्माओं के परम पिता हैं, चाहे वह किसी बी आस्था विश्वास धर्म का अनुयायी हो. विभिन्न धर्मों में उन्हें जिस भी तरह से जाना जाता है और जिस रूप में पूजा जाता है, उसमें एंटी भिन्नता है की एक दूसरे के विरुद्ध भी होकर अनर्थ में चले जाते हैं. उसके परिणाम की जिम्मेवारी एक-एक की है. भले ही निजी आस्था और विश्वास जो भी हो, उनकी शक्ति का अनुभव हमने अपने अपनी भांति, अपनी आस्था अनुसार जीवन में समय समय किया है ही. तभी तो हम अब भी उनको और उनसे सम्बंधित वास्तविकता को जानने की और रहे हैं. 

        विचारों में, बोल और कर्म में सचाई और अच्छाई में ही हम सबकी गति सद्गति है. विवाद और झगडे से कभी कोई सुलझन नहीं है. भले ही कोई भगवान् को बिलकुल भी जानता मानता नहीं है, फिर भी वह स्वच्छ और अच्छे कर्म के आधार पर जीवन जीता है. ऐसे मनुष्य आत्माओं की कोई कमी नहीं है. हमारे बीच ही जान पहचान मे, अनजाने भी ऐसे व्यक्ति जीवन व्यहार में होते-आते हैं. वे भी तो आखिर परमात्मा के बच्चे ही हैं. 

        चाहे किसी का कर्म भूत काल में जिस कारण भी जैसा भी रहा हो, आत्मा परिवर्तन और पुरुषार्थ की शक्ति हमेशा स्वयं का निर्माण और सरे जगत में शुभ परिवर्तन और नव निर्माण हेतु शुभ फल का बीज है. 

        यदा यदा हि धर्मस्य… यह गीता ग्रन्थ में वर्णित है, जिसकी रचना द्वापर काल के समय हुई मान्य है. रामायण ग्रन्थ की भी रचना कलियुग काल में ही मान्य है. भगवान् को उनके द्वारा ही जाना जा सकता है, यह हमने कई बार सूना भी है.  परमात्मा परमपिता निराकार हैं जिनका नाम शिव है. शिव कल्याण-कारी को कहते हैं. वे त्रिमूर्ति देवता ब्रह्मा विष्णु शंकर के रचता हैं जिनके माध्यम से सृस्टि रचना हेतु स्थापना, पालना और पुरानी आसार आसुरी दुनिया का विनाश जाना माना हुआ है.

        भगवान् एक हैं सबके. वे एक सच्चे सबके मात-पिता शिक्षक और सद्गुरु हैं. वे ज्ञान सागर हैं. दुःख हारता सुख करता हैं. सभी गुणों के, शक्तियों के सागर दाता, विधाता, वरदाता हैं. दैवी गुणों वाली  शक्तिशाली आत्माओं – देवी देवताओं के, स्वर्ग के रचता हैं. वे इसी कठिन काल में कल्प-कल्प आकर हम सबका कल्याण करते हैं. उनको यथार्थ जानने का अभी अवसर है. हम सब बड़े भाग्यशाली हैं. 

        रावण कोई दस सीष वाला मनुष्य कभी किसी ने नहीं देखा, न होता है, हम जानते हैं. दस विकराल विकारों का वर्णन है, जो प्रत्येक मनुष्य आत्मा जानती समझती है. विकारों के वशीभूत सोच बोल और कर्मो से ही कर्म बंधन और उनके अनुसार फल का अनुभव हम मनुष्य स्वयं में और सभी तरफ देखते जानते हैं. फिर भी, वास्तव में क्या स्वयं के कर्मों के सिवा किसी भी अन्यआत्मा का कोई अधिकार किसी पर है? नहीं है. फिर भी जीवन यात्रा में हम एक दूसरे के सहयोगी साथी होते हैं. अपने कर्मों की और सजगता से, जागृतता से हमेश  परस्पर राह मिली बानी है. इसी में हम सबकी सफलता, सुख और समृद्धि है. दशहरा के इस पावन पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं.  ओम शांति.

      • योगेन्द्र जोशी
        अक्टूबर 08, 2019 @ 21:02:43

        किसी भी प्रकार की आस्था व्यक्तिगत अथवा किसी समुदाय की विशिष्ट होती है लेकिन सर्वभौम या सार्वत्रिक नहीं होती है। अलग-अलग समाजों में अपने प्रकार की आस्था होती है जो दूसरे समुदाय से मेल नहीं खाती ; बहुधा विसंगति रखती है। उदाहरण के लिए इस्लाम में मनुष्य को छोड़ किसी में रूह (आत्मा के तुल्य?) नहीं होती, जब कि हिन्दुओं-जैनियों के अनुसार हर प्राणी में होती है। बौद्ध मतावलंबियों के लिए भी आत्मा जैसी कोई चीज नहीं; वहां सिर्फ कर्म-पुंज होता है। सभी विचार एक साथ सही नहीं हो सकते, तार्किक रूप से। अतः अपनी-अपनी सोच जिससे कोई अन्य सहमत-असहमत हो सकता है।

  3. jayantijain
    जुलाई 27, 2010 @ 21:00:18

    your thought is right

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  4. Amit Uttam
    सितम्बर 17, 2010 @ 22:23:53

    Mai bhi yahi sochta hu ki sabse jyda dharm ki hani to isi samay ho rhi hai. Isse jyada aur hani kya hogi? Aaj pratyek vyakti swarthi ho gya hai. Apne swarth ke liye wo kuchh bhi kar sakta hai. Mujhe to nhi lagta ki koi bhagwaan awataar lekar insano ko insano se bachane aayegaa…????

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  5. Shivam Dubey
    जनवरी 09, 2011 @ 12:58:02

    eeshwar yeh nahi dekhta ki prithvi par manushya ki hani hoo rahi hai eeshwar toh yeh dekhta hai ki jab buraiyon ka pratishat accchaiyon se zyada hoo jata hai aur sach par jooth ki vijay hooti hai,tab hi eeshwar avtar lete hain.yehi hota aaraha hai,hota hai aur hota rahega…!

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    • suniltams
      अगस्त 26, 2013 @ 14:09:52

      सही में सहमत हूँ

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    • Kunal
      दिसम्बर 23, 2016 @ 11:35:42

      Bahut hi sunishchit wani boli hai apne.

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    • Adarsh bajpai
      अक्टूबर 18, 2018 @ 06:55:43

      बुढ़ापा आने दो इनका सब समझ आ जाएगा भगवान है या नही क्योकि अभी तो जोश जोश ने कुछ भी लिख रहे है । ओर हा भगवान कृष्ण ने यह कहा है जब अधर्म धर्म से बड़ा हो जाएगा तब में आऊंगा अभी aesa samay nahi aaya hai aaj adhikater logo ka bhagwan evm dhrma pr pura vishvash hai log itne mandiro mr jate hai chadva krte hai yeh sab krte hai jis admi itna lavchichi ho jayega ki bhagwan pr se pura vishvas uth jayega or keval paise ke piche bhagega or keval apne bare me sochega tab bhagwan avtar lenge or ( ek bat aap jeso ko nahi dikhne wale kyoki apko to god me koi believe hi nahi hai) to sir yeh apki blog post delet kr dijiye warna is desh me aedi kong bhi hai jo sirf galiyo se bat krti hai or abhi bhi vakt hai ek bar gita ji pad lo

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      • योगेन्द्र जोशी
        अक्टूबर 18, 2018 @ 13:57:54

        धन्यवाद मेरी आंखें खोलने के लिए।
        पता नहीं बुढ़ापा कब आता है। उम्र तो मेरी 71 हो रही है। संभव है 80 के बाद आता हो। तब तक प्राण रहेंगे या नहीं कह सकता।
        मैं क्या सोचता हूं इससे अन्य कोई धर्मभ्रष्ट तो हो नहीं सकता। किसी की भी नियति उसी के कर्म तय करेंगे मेरे कर्म नहीं। कोई मेरे कारण स्वर्ग जाने से नहीं चूक सकता। नरक जाना होगा तो मैं ही हाऊंगा। तब मेरी इतनी चिंता क्यों!

  6. RAKESH MEHRA JYOTISH MAHARAT
    अप्रैल 30, 2011 @ 21:54:33

    ishwar samne kisi ke nhi ayaga pahle us vyakti ka patta lagao jo ishwar ke shakal ko janta ho app sab kase viswash mai ayge ki kon ishwar ho sakta hai .jis parkar hawa ko nahi dekha ja sakta prantu wo haa eshe parkar ishwar……….. mare naye geeta gyan chakra dawara ..rakesh mehra jyotish maharat@ reddiffmail.com contract me

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  7. Anurag Tyagi
    जून 26, 2011 @ 10:48:02

    MUJHE LAGTA HAI KI HINDU DHARMA KE UPER PRASHCHINHA LAGANA AAJ EK FASHION SA BAN GAYA HAI.ME YOGENDRA JOSHI JI SE KAHNA CHAHTA HOO KI BHAGVAAN KRISHAN KE BAARE ME SOCH PANA BHI HAMARE MAN MASTISHK KI SAMARTHAY ME NAHI HAI.FIR YE DISSCUSSION KUE?

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  8. Rohit
    जुलाई 10, 2011 @ 10:32:03

    Is mahakavaya ko apne life me follow kare to jivan dhanya ho jayega.

    प्रतिक्रिया

    • अमन
      नवम्बर 21, 2017 @ 12:14:01

      कृष्ण ने तो यह भी कहा था।
      “परम्पराएं धर्म होती हैं परंतु सभी परम्परायें धर्म हो ये उचित नहीं और परम्पराओं का अंध अनुकरण ही अधर्म है।
      हो सकता है कुछ परम्पराएं धर्म हो, लेकिन उसे बिना सोचे समझे ही मान लेना अंधभक्ति है।
      धर्म तो मुक्ति देता है और सत्य ही धर्म है।
      सत्य ही धर्म का विज्ञान है, और विज्ञान ही अनुशंधान को जन्म देता है। अनुसंधान आपको सत्य की ओर ले जाता है, और फिर आप धर्म में अपना विश्वास बनाते हैं।
      यहीं से जन्म होता है करुणा का जो प्रेम की उत्पत्ति का कारण है, और प्रेम तो मुक्ति देता है और प्रेम ही धर्म है।”

      प्रतिक्रिया

      • योगेन्द्र जोशी
        नवम्बर 24, 2017 @ 12:35:16

        श्रीकृष्ण ने बहुत-सी बातें कही हैं। मैं उस सब के विवरण एवं समीक्षा की बात नहीं कर रहा। मेरा मानना है कि महाभारत एवं उसके पश्चात् के काल में अधर्म घटा नही बल्कि बढ़ा ही है। अर्जून के प्रति श्रीकृष्ण का उपदेश कदाचित इस उद्येश्य से था कि अर्जुन युद्ध से विमुख होकर पांडवों की हार का कारण न बन जाये। शायद सभी बातें उसे प्रेरित करने के लिए थीं।

      • महंत प्रेमानन्द
        जुलाई 19, 2019 @ 23:11:14

        हे श्रेष्ठ
        महादेव

        मैं आपके विचारों को पढ़ा एवं उनके नीचे लोगों के आपके प्रति विचारों को भी पढ़ा

        समस्या तो एक है कि लोगों को आपका विचार आपकी सोंच आपका दर्शन आपका मूल भूत प्रश्न ही
        समझ में नही आया

        अब मैं आपको सनातन दर्शन के विषय में बताता हूँ श्री कृष्ण के वचन धर्म-संस्थापन-अर्थाय सम्भवामि युगे युगे

        यह सौ प्रतिसत सत्य एवं प्रमाणित एवं वैज्ञानिक है

        रही बात सनातन दर्शन की तो लोगों के विचार कुछ और हो सकते हैं एवं सनातन किसी व्यक्ति या व्यक्ति विशेष के विचारों से नही चलता है

        आपके इस प्रश्न का उत्तर आपको गीता में ही मिलेगा की कृष्ण ऐसा कैसे कर सकते हैं
        तो कृष्ण जो कर सकते हैं वो जानने के लिये पहले आपको कृष्ण को जानना होगा अतः श्री कृष्ण ने गीता में ही अपना परिचय भी दिया है पूर्ण रूप एवं विस्तार से 9 और 10 अध्याय श्री कृष्ण ने अजुर्न को परिचय दिया था

        क्योंकि अर्जुन को कृष्ण की बात समझ नही आ रही थी वह कृष्ण को कुछ और समझ रहा था (आदरणीय कृष्ण का मतलब को हाड़ मांस का व्यक्ति या लडडू गोपाल की बात नही कर रहा हूँ) अर्थात मोह में फंस गया था कृष्ण के समझाने पर अर्जुन को भी आपकी तरह लगा कि यार बचपन से एक सांथ खेले खाये मेरे सामने नंगा घुमा करता था अभी अपने आपको भगवान कह रहा है वह कृष्ण को पागल समझ रहा था

        तब श्री कृष्ण ने ब्राम्हण का परिचय ऊर्जा का परिचय परा अपरा का परिचय स्वयं का परिचय दिया

        अतः मेरा उत्तर अभी यहीं पे विश्राम देता हूँ पहले आप श्री कृष्ण का परिचय पढ़ लीजिये शायद आपके प्रश्न का आपको उत्तर मिल जाये

        लेकिन एक बात कहनी पड़ेगी आज कल भी लोग आपके जैसा रहस्यमय प्रश्न पूंछते हैं

        प्रशन्नता हुई
        महादेव
        अघोरीपुत्र
        आचार्य पीठाधीश्वर
        अघोर अखाडा

  9. Rakesh Mehra Rakesh Mehra
    जुलाई 12, 2011 @ 20:25:41

    SANSAR KAY LIYE EK SUNDER SUJAV: Jhoot na aisa boliye jo dusro ko be galat raha dikaye. Mann ko apnay hi mela karay . Dusro kay dhoso ko apany uper lay ker khud hi matti ho jaye. Ek matti jo agg ke bhatti may ha jhalti rehti. Ek matti wo jo GANGA-JALL ke gagar [ghrra] ha banti. SOCH abb TU bas thora sa TU KON SE MATTI BANNA CHATHA HA…..
    RAKESH MEHRA JYOTISH MAHARAT
    9213817117

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  10. Rakesh Mehra Jyotish Maharat
    जुलाई 17, 2011 @ 11:29:22

    SANSAR KA SAB SAY BARAA YOGA: PANCH MINTUS BAS AKANT MAY BETH KER APNI ANTER-ATMA MAY SUNDER SANSKARO KO DHARAN KERNAY KI KOSIS KERNI HA.
    RAKESH MEHRA JYOTISH MAHARAT

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  11. Rajender Juneja 9829887884
    जुलाई 26, 2011 @ 10:24:24

    यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।
    अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥७॥
    परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।
    धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥८॥
    (श्रीमद्भगवद्गीता, अध्याय ४)
    (यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिः भवति भारत, अभि-उत्थानम् अधर्मस्य तदा आत्मानं सृजामि अहम् । परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुस्-कृताम्, धर्म-संस्थापन-अर्थाय सम्भवामि युगे युगे ।)
    (टिप्पणीः श्रीमद्भगवद्गीता वस्तुतः महाकाव्य महाभारत के भीष्मपर्व का एक अंश है; इसके १८ अध्याय भीष्मपर्व के क्रमशः अध्याय २५ से ४२ हैं ।)

    भावार्थः जब जब धर्म की हानि होने लगती है और अधर्म आगे बढ़ने लगता है, तब तब मैं स्वयं की सृष्टि करता हूं, अर्थात् जन्म लेता हूं । सज्जनों की रक्षा एवं दुष्टों के विनाश और धर्म की पुनःस्थापना के लिए मैं विभिन्न युगों (कालों) मैं अवतरित होता हूं ।

    प्रतिक्रिया

  12. Manoj Dhoundiyal
    अगस्त 22, 2011 @ 13:43:53

    Nirdosh bhav bhakti me mera roop n nam
    Tulsi ko me ram banu hu, surdaas ko syam
    Usi roop me mil jata hu jiska jo viswas.

    Me sochta hu ki har samay aane wale samay ki prishtbhumi taiyaar hoti rahti he. Jo bhi ishwar ke astitva pe viswas rakhta he uske liye ye janna kafi he ki Bhav jaroori he. Anyatha wo to gyani rishi muniyo ki samajh se pare he.

    To bhai logo apne Viksit mastisk ka upyog anyatra kiya ja sakta he ishwar ko usme bhandhna namumkin he.

    प्रतिक्रिया

  13. Sachin
    अगस्त 24, 2011 @ 13:26:54

    Aap apni rai na hi de to behtar hai bhagwan ki hone par sak hai are tum kiya ho kaun ho kabhi ye socha hai…………. kahan se aaye ho ……. aur ek din kahan chal jaayoge……………….. pehle khud ki socho fir Bhagwan hai ki nahi baat karte hain.

    प्रत्युत्तर में:
    बहुत-बहुत धन्यवाद टिप्पणी के लिए। क्षमा करें कि मेरे मन में प्रश्न उठता है। किस व्यक्ति को राय व्यक्त करने का अधिकार है और किसको नहीं इस बात का निर्णय लेने का अधिकार किसको होना चाहिए? क्या इसमें विसंगति नहीं दिखाई देती जब कोई कहे कि मैं राय पेश करता हूं कि आप राय मत व्यक्त करें। यानी एक व्यक्ति को अपनी राय रखने का अधिकार है पर दूसरे को नहीं। किसी राय से असहमत होना तो ठीक है, पर यह कहना कि आप मत राय व्यक्त करो कितना उचित है? किसी को पसंद न हो तो न देखे, न सुने या न पढ़े, पर दूसरा तो अपना मत रखेगा ही।
    जहां तक ईश्वर का सवाल है मैं उसके अस्तित्व के बारे में कुछ जानता। जिसे आस्था हो उसे ईश्वर मानने से रोका नहीं जा सकता है, और जिसे आस्था नहीं उसे मानने को विवश भी नहीं किया जा सकता। इस व्यक्तिगत अधिकार पर कोई कैसे रोक लगा सकता है?

    प्रतिक्रिया

    • अमन
      नवम्बर 21, 2017 @ 12:23:27

      इस बात से बिल्कुल सहमत हूँ।
      आपकी सहमति असहमति हो सकती है।
      किसी भी बात है से।
      अभिव्यक्ति की आजादी सबको है। बशर्ते वो गाली गलौज न हो,झूठे व्यग्यं न हो इत्यादि।

      प्रतिक्रिया

  14. निकुंज भट्ट
    सितम्बर 24, 2011 @ 04:28:21

    मैं योगेन्द्र जोशीजी की बात से पूरी तरह से सहमत हूँ|

    प्रतिक्रिया

  15. Rakesh Mehra
    अक्टूबर 28, 2011 @ 08:23:40

    my dears, jin ke pass sansar ke serv-sukh hai samjo ishwar un ke pass hai aur ishwar bi un ka puran roop se dyan rekhta hai . jin ke pass es sansar ke sukh nahi hai toh samjo un ke pass ishwar nahi hota. kai beena baat ishwar ke naam ka shoor machathe rehthe hai….. ES TERHA KE KOG SANSAR ME 90% SE 95% KE KARIB HAI. NOTE: ISHWAR PRAGHAT ME NA TOH ABHI TEK KISI KE SAMANY AYA HAI AUR AGE BI KABI BI ISHWAR PRAGHAT ME KISI KE SAMANY KABI BI NAHI AYE GA.( ISHWAR KE BARE ME KISI BI PRAKER KI BHEHS NIRADHAR HAI..KYOKI ISHWAR SWAYAM HI NIRAKAR HAI. ) TOH app sab sansar ke ANAND BHOGHNE KE GYAN ki talhas karo…. ithi SHUBM

    प्रतिक्रिया

  16. Rakesh Mehra Jyotish Maharat
    अक्टूबर 28, 2011 @ 09:09:02

    HY gyanvan atam gyaniyo ishwer ke bare me ajj app ke maan me vichar toh ayaa shyadh ishwer jaha kahi bi hai app ki atmik bavnao se prasaan toh jarur hota hoga. kehne me toh hum sab ishwer ke hi hum sab EK ATMA ROOP HAI aur WO ISHWER EK PARMATMA ROOP HAI.prantu app ne kabi apni hi atma ko kabi dekha hai.Sab se pehle apne app ke bare me janno aurthath apni sawayam ki atma ke bhare me. Tab hi ishwar ke bare me app ko apne app hi atmik gyan prapt hona shru ho jye ga.( mai kosis karu ga app ko iswher ke bhare gyan detha rehau ga )….

    प्रतिक्रिया

  17. दीपक भारद्वाज
    जनवरी 22, 2012 @ 12:07:36

    मैं जोशी जी कि बात से सहमत नहीं हूँ. अच्छा होगा कि वो श्रीमदभागवदगीता का सम्पूर्णता से अध्ययन करें. हमारे धार्मिक ग्रंथों के ना जाने कितने ही अनुवाद हुए है, सभी तरह के गुरुओं ने अपनी अपनी सोच के अनुसार इनकी अपनी अपनी व्याख्या की है | पुराने ग्रंथों के अनुसार ईश्वर अवतरित होते रहे है | कभी राम, कभी कृष्ण के रूप में, हो सकता है कलियुग में वह समय अभी ना आया हो | निश्चित तौर पर पाप बढ़ गया है | परन्तु फिर भी, ईश्वर ने हर युग में आकर यह खुद नहीं कहा कि वो ईश्वर है ( सिर्फ गीता ही इसका अपवाद है, और क्योकि इसे ईश्वर कि वाणी समझा जाता है, तो यह पवित्र भी मानी जाती है ), वरन लोगो ने ही किसी रूप को ईश्वर तुल्य मान लिया है.

    मध्य काल में, नंद राजाओं के अत्याचार से मुक्ति के लिए चंद्रगुप्त मौर्या, और अंग्रेजों से मुक्ति के लिए महात्मा गाँधी ने, उनके काल के बहुत से लोगो ने उन्हें ईश्वर के तुल्य मन है. लोर्ड माउंटबेटन् ने गाँधी जी के लिए लिखा है “इतिहास में गाँधी जी का नाम जीजस, और पैगम्बर के तुल्य रखा जायेगा ” | खुद आइनसटाइन ने गाँधी जी के लिए लिखा ” आने वाली पीढियां यकीन ही नहीं कर पायेंगी कि हाड मांस से बना ऐसा आदमी भी इस धरती पर कभी चला है ”

    गीता एक सीख है, और जीवन जीने का तरीका बताती है | लोगों को कर्म करने को कहती है, और अकर्मण्यता को प्राप्त होने से रोकती है | और मेरी नज़र में हिंदू धर्म भी जीवन जीने का एक तरीका है | गीता उन लोगों के संशय दूर करती है, जो धर्म को समझ नहीं पाए है , जैसे मूर्तीपूजा क्यों करे, पूजा क्यों करें, कर्म क्या है, अकर्म क्या है, कर्म क्यों करें, ईश्वर कौन है इत्यादि |

    प्रतिक्रिया

    • सावन
      जुलाई 31, 2014 @ 01:05:35

      दीपक जी बिलकुल सटीक जवाब दिया आपने इस गैर जरुरी प्रश्न का।
      और सही ही है, अगर ये एक बार भी भगवत गीता को समझने की कोशिश करते तो इस तरह के सवाल नही करते।
      गीता सिर्फ मान्यताओ पर टिका हुआ ग्रन्थ न हो कर पूर्णतह practical और जीवन के सभी प्रश्नों के उत्तर देने में सक्षम है। बशर्ते आप एक बार अपना पूरा ध्यान (मन) लगा कर उसे सुने या पढ़े और समझने की कोशिश करे।

      फिर इस तरह के सवालो का कोई अस्तित्व ही नही रह जाएगा और न ही ऐसा कोई doubt बचेगा।

      प्रतिक्रिया

    • अमन
      नवम्बर 21, 2017 @ 12:34:58

      आपकी इस बात से मैं सहमत हूँ।
      परन्तु मैं उन दोनों तरह के लोगों से असहमत हूँ।
      जिन्होंने जोशी जी के इस बात पर अपनी टिप्पणी की जगह पर केवल सहमत हूँ या असहमत हूँ लिखकर चले गए।
      उन्हें एक तार्किक टिप्पणी तो करनी चाहिए क्यों सहमत हैं या क्यों असहमत हैं।
      और ये दोनों तरह के लोग आगे चलकर समाज के लिये खतरनाक साबित होते हैं।
      और किसी न किसी चीज़ का अंध अनुकरण करते हैं।
      और धर्म को छोड़कर रूढ़िवादी परम्पराओं में विश्वास करने लगते हैं।

      प्रतिक्रिया

  18. Mukesh Vishwakarma
    जून 02, 2012 @ 12:51:51

    Mai ek chota sa byakti hu mai nahi jata mera bichar kitna uchit he par prsn ye he ke grnth kab likhe gai kya us samaye konsa begyanik tha or konse yntar the jo vo likte he ke “koti koti surya” yani is sansar me karodo sury he vo kahte he ke har vo bastu jo dikhai de bo bhram he ya bo nasban he sada na rahe bali he arthat bah kebal mithya he par jo sada rahe bale he jiska udahran haba he khud begyanik mante he ki koina koi sakti jarur he jise ham puri taraha nai jante or rahi bat iswar ke hone n hone ki to bo bichar sirf hindu dharm ke liye hi kyo utate he har dharm ko dekho konsa dharm iswar ke prati bhramit nahi he agar iswar ke avtaro ki bat kare to us samaya bhi unhe na manne wale the n hote to na ramayan hoti n mahabharat or n aj ye bate.. agar iswar ko janna he to sirf ek test karo sani dham jaha aj bhi dukano me tale hahi he kuch churi karo or uska paidam khud janjao ge kisi ko batane or puchne ki jarurat hi nahi hogi. jaishe gandhi the par logo ke unke prti dharnaye alag alag he veshe hi ye kahna ki mai nahi mata dhik he par ye kahna ke bo nahi he murkhta hogi pahle apne dharm ko jane uski puja bidhi ke begyanik v adhyatmik saririk labho ko jane fir apni raye de kis dharm ke grantho me jane kitne samya purb he sare sor parivar aanek bhrammando ka pura sahi bardan ho use kya kahoge ke jo granth aadi kal me hi dharti ki choro akash patal ki jankari deta he jitna adhi begyanik bhi nahi khoj paye he yesha ek matr dharmik granth wala dharm he hindu dharma jai hind jai hindutav……….. hindu upvash ki bidhi kne uske labho ko jano. angrejo jate jate kokata ke hamari book sangrharly ko kyo jaaya kyu apne santh hamare grantho ko bhi le gae par ham hidu he inhe galat mate he ……………………………..

    प्रतिक्रिया

  19. Bharat
    जून 30, 2012 @ 16:28:14

    यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।
    अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥

    प्रतिक्रिया

  20. अजय यादव
    अगस्त 09, 2012 @ 08:03:40

    श्रीमान जोशी जी आपकी बातो से ऐसा नहीं लगता की आप वैज्ञानिक सोच वाले व्यक्ति है जैसा की आप दावा करते है .एक तरफ आप मानते है की महाभारत का युद्ध हुआ जैसे आप उसे देखने गए थे और दूसरी ओर श्रीकृष्ण के अस्तित्व को अधूरा स्वीकारते है …आप पूर्वाग्रह से ग्रसित व्यक्ति लगते है. आजकल फैशन हो गया है अपने को प्रचारित करने के लीये किसी महान व्यक्ति पर कीचड़ फेंकने की कोशिस शुरू कर दें .अगर आप वैज्ञानिक सोच के व्यक्ति है तो गीता में आपको अच्छा क्या लगा आप वही पोस्ट करिये ..मगर अफ़सोस आप जैसो को अच्छाई दिखती नहीं ,आँखों में कीचड़ जो भरा है .
    अरे भगवान श्री कृष्ण तो मान और अपमान दोनों से परे है .

    प्रत्युत्तर में —
    श्री अजय यादव जी, बहुत-बहुत धन्यवाद। मेरी बातों से आपको कष्ट हुआ इसके लिए मुझे खेद है। आप कुछ भी कहकर अपना आक्रोष व्यक्त कर सकते हैं, कदाचित उसके आगे बढ़कर सजा नहीं दे सकते। हां जो कुछ कीचड़-सदृश दिखे उससे स्वयं बचकर निकल सकते हैं।
    बड़प्पन दिखाते हुए मुझे क्षमा कर दें एवं मेरे विचारों की अनदेखी कर दें।
    पुनश्च धन्यवाद।

    – योगेन्द्र जोशी

    प्रतिक्रिया

  21. सत्येन्द्र सिंह
    अगस्त 10, 2012 @ 15:31:30

    इस दुनिया में कुछ भी अमर और जड़ नहीं है , सब कुछ चलायमान है सब कुछ नश्वर भी है , सब कुछ एक चक्र में चलता है, सुबह होती है, दोपहर, फिर शाम और फिर रात. जैसे मनुष्य का जन्म होता है और धीरे धीरे बढ़ते हुए वो बुढा होकर मर जाता है और फिर दोबारा वही चक्र शुरू होता है. एक बार धर्म की संस्थापना होने का अर्थ यह बिलकुल भी नहीं है की अधर्म फिर कभी नहीं उभरेगा. एक कक्षा में जिस प्रकार से बच्चे मास्टरजी के आने से शांत हो जाते हैं और लगता है की वे अब शांत ही रहेंगे परन्तु ऐसा नहीं होता है मास्टरजी के जाने के बाद धीरे धीरे फिर से कक्षा में कोलाहल बढ़ जाता है. इसको साइंस में ला ऑफ़ एंटरोपी कहा जाता है. इसी प्रकार से सब कुछ सिस्टमैटिक होने के बाद फिर से केओस हो जाता है, इसी बात को बताते हुए ये श्लोक कहा गया है. इसमें मेरा मानना यह है की हो सकता है भगवन खुद सशरीर न प्रकट हों परन्तु विभिन्न महात्माओं में अपने अंश रूप में प्रकट हों और व्यवस्था को सुचारू रूप में लाने का प्रयत्न करें. अब यहाँ पर हो सकता है जिन्हें मैं संत मानता हूँ उन्हें बाकि सब लोग न मानते हों परन्तु उससे क्या फर्क पड़ेगा, भगवन श्री कृषण जी के ज़माने में उन्हें भी कई लोग भगवन नहीं मानते थे . इसमे मैं कुछ और कहना चाहूँगा की ध्यान पूर्वक देखेंगे तो आपको सब तरफ भगवन के रूप नजर आएंगे. एक अनजाना व्यक्ति जब सड़क पर किसी घायल व्यक्ति को पानी पिलाता है और उसकी सहायता करता है, तो वो व्यक्ति उसके लिए भगवान् ही साबित हो जाता है. वह अनजान व्यक्ति एक आम इंसान हो सकता है और ये भी बिलकुल संभव है की उसमें कुछ अवगुण भी हों परन्तु उस एक क्षण में उसके अन्दर भगवान् का अंश जागा और वो घायल व्यक्ति के लिए भगवन बनकर प्रकट हो गया. सो कहने का अर्थ है जैसा की अंग्रेजी में कहते हैं “Don’t take it literally. Understand the deep rooted meaning.” हिंदी में कहूँगा गूढ़ अर्थ पर ध्यान दें न की सिर्फ सतही अर्थ पर. जैसे शिव जी ने कहा था जाओ धरती के तिन चक्कर लगा कर आओ …
    अंत में कहूँगा पढ़ने के लिए धन्यवाद. आपका दिन शुभ हो.

    प्रतिक्रिया

    • vimalkumar543
      जुलाई 20, 2013 @ 14:31:55

      मैं आप से पूर्ण रूप से सहमत हूँ सत्येन्द्र जी लेकिन कुछ लोग इस दुनिया में रावण के कदमो पर चलने वाले भी होते हैं जो खुद तो गलत होते ही हैं और दूसरों को भी वही रास्ता बताते हैं और अपनी गलती कभी मानने को तयार नहीं होते हैं ना ही अपनी कमी ढूँढने की कोशिश करते हैं , उनका एक मात्र लक्ष्य दुसरे को नीचा दिखाना होता है , और वो दुसरे के बारे में सिर्फ इतना ही जानना चाहता है जितने में वो दुसरे को नीचा साबित कर सके….. जो दुसरे को नीचा दिखाने की लालसा , इच्छा मन में रखता है अर्थात उसका मन साफ़ नहीं है और पापी मन को कभी शांति नहीं मिलती…. अशांत मन शारीर और आत्मा का आपस में संपर्क नहीं होने देता और जब तक हमारा मन और आत्मा एक नहीं हो जाते कभी परम आत्मा (इश्वर) की अनुभूति नहीं हो सकती………….. फिर चाहे आप गीता पढ़ें चाहे रामायण सब झूठ ही लगेगा………………
      इसका जीता जगता सुबूत हमारे योगेन्द्र जोशी जी हैं जिन्होंने ये पोस्ट लिख कर अपने विचार प्रकट किये हैं…. उन की बातों से लगता है की उन्होंने गीता को पढ़ा ही सिर्फ इसलिए है की उसकी आलोचना कर सकें…………………….
      लेकिन एक बात हमेशा याद रखनी चाहिए की आलोचना एक ऐसी चीज है जो कभी ख़त्म नहीं होती… चाहे कोई अच्छा है चाहे बुरा आलोचना हमेशा अपने स्थान पर रहती है और जो आलोचक होते हैं किसी भी चीज की आलोचना करके खुद को महान समझने लगते हैं लेकिन वो ये भूल जाते हैं की जिस की उन्होंने आलोचना की है वो सदियों से महान है और सदियों पहले उसे किसी महान सख्शियत ने बनाया होगा और वो शक्स आलोचक से सदियों पहले पैदा हुआ था और वो ज्ञान जिस के दम पर आलोचक आलोचना कर रहा है उस से कही बेहतर ज्ञान वो शक्स सदियों पहले प्राप्त कर चुका है तभी उसने इतना बड़ा ग्रन्थ लिखा और दुनिया उस से आज तक सीख रही है…………………

      प्रतिक्रिया

      • अमन
        नवम्बर 21, 2017 @ 12:46:06

        रावण उतना भी गलत नहीं कि उसके कुछ कदमों पे चला न जाये।
        और राम उतने भी सही नहीं थे कि उनके सारे कदमों पे चला जाये।
        तो गुण और अवगुण सभी में होते हैं।
        बस अपनी समझ के अनुसार उसको छाँटकर अपनी जिंदगी स्थापित करके एक उत्तम मनुष्य बनने की प्रक्रिया ही धर्म है।
        सत्यमेव जयते।

  22. दीपक भारद्वाज
    अगस्त 17, 2012 @ 10:50:03

    मैं एक बार फिर से कहूँगा कि इस सवाल का उत्तर देने के लिए गीता का बहुत गहनता से अध्ययन करना जरुरी है. अध्याय ११ में भगवान कृष्ण ने साफ़ कहा है कि
    ———————————————-
    na tu mam sakyase drastum
    anenaiva sva-caksusa
    divyam dadami te caksuh
    pasya me yogam aisvaram (Chap 11, Verse-8)

    But you cannot see Me with your present eyes. Therefore I give to you divine eyes by which you can behold My mystic opulence.
    ————————————————————-

    aneka-vaktra-nayanam
    anekadbhuta-darsanam
    aneka-divyabharanam
    divyanekodyatayudham (Chap 11, Verse 10)

    divya-malyambara-dharam
    divya-gandhanulepanam
    sarvascarya-mayam devam
    anantam visvato-mukham (chap 11, Verse 11)

    Arjuna saw in that universal form unlimited mouths and unlimited eyes. It was all wondrous. The form was decorated with divine, dazzling ornaments and arrayed in many garbs. He was garlanded gloriously, and there were many scents smeared over His body. All was magnificent, all-expanding, unlimited. This was seen by Arjuna.
    —————————————————————————

    lelihyase grasamanah samantal
    lokan samagran vadanair jvaladbhih
    tejobhir apurya jagat samagram
    bhasas tavograh pratapanti visno (Chap 11, Verse 30)

    O Visnu, I see You devouring all people in Your flaming mouths and covering the universe with Your immeasurable rays. Scorching the worlds, You are manifest.
    —————————————————————————–
    sri-bhagavan uvaca
    kalo ‘smi loka-ksaya-krt pravrddho
    lokan samahartum iha pravrttah
    rte ‘pi tvam na bhavisyanti sarve
    ye ‘vasthitah pratyanikesu yodhah (chap 11, Verse 32)

    The Blessed Lord said: Time I am, destroyer of the worlds, and I have come to engage all people. With the exception of you [the Pandavas], all the soldiers here on both sides will be slain.
    —————————————————————————-
    इस प्रकार, भगवान श्रीकृष्ण ने अपना असली रूप दिखाया जोकि काल रूप था, तथा सब लोकों को नष्ट करने के लिए उद्धृत हुआ था |

    तथा महाभारत वास्तव में हुआ था, यह बहुत से शोधकर्ताओं ने माना है| सन्दर्भ में –
    http://hi.wikipedia.org/wiki/महाभारत

    http://hi.wikipedia.org/wiki/कुरुक्षेत्र_युद्ध

    प्रतिक्रिया

    • Sanjeev Kumar
      जनवरी 11, 2016 @ 06:59:11

      यहां दिव्य दृष्टि का अर्थ है स्मृति की व्यापकता से अथार्त ब्रह्म स्मृति -जीव स्मृति वो जो खुद को शरीर मान ये सब प्रपंच देखती है !वास्तव में बंधन का अनुभव जीवात्मा को नहीं स्मृति को होता है और उसका मूल कारण है अज्ञान ! ब्रह्म स्मृति तो सब और एक समान व्याप्त है इसलिये तो उसे नित्य भी कहा गया !इसीलिये उसे सब और से आँख-कान-नाक-मुह आदि वाला भी कहा गया !

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  23. Jaspal Singh
    अगस्त 24, 2012 @ 11:24:48

    योगेन्द्र जी बिलकुल सही हैं. ईश्वर की परिकल्पना से ही विभिन्न धर्मों और धर्म ग्रंथों का सृजन हुआ है जो इंसानों को सदा से ही आपस में लड़ाते रहे हैं. प्रत्येक धर्म अपने धर्म ग्रंथों के द्वारा अपने को ही सही ठहराता है. यूं तो कहा जाता है कि हर धर्म हमें आपस में प्रेम करना सीखाता है लेकिन इतिहास साक्षी है कि धर्मों ने ही सबसे ज्यादा इंसानी खून बहाया है. हमें रुककर जरूर सोचना चाहिए की क्या ईश्वर और धर्म इंसान के लिए वाकयी आवश्यक हैं.

    प्रतिक्रिया

    • अमन
      नवम्बर 21, 2017 @ 12:56:10

      आप धर्म और सम्प्रदाय में ही फंसे हुए हैं महाशय।
      धर्म का मतलब ही अच्छाई (Goodness) होता है न कि हिन्दू, मुसलमान,सिक्ख, इसाई इत्यादि।
      जिन्होंने अलग अलग परम्पराओं को माना तो जरूर पर उसमें से धर्म नहीं चुन पाना उनकी गलती रही है।
      और यहीं से खून खराबा शुरू हुआ है।
      इन्होंने सत्य और प्रेम को अपने सम्प्रदाय में सबसे उत्तम स्थान तो जरूर दिया पर अपनी जिंदगी में नहीं उतार पाए।
      और यहीं से इनकी कट्टर साम्प्रदायिकता की उत्पत्ति हुई और नतीजा आप देख ही रहे हैं।

      प्रतिक्रिया

  24. krishna singh
    अक्टूबर 12, 2012 @ 21:52:44

    joshi jee namaskar,wase aap bodhi lag rahe hai.baudh dharam wahi log grahan kiye thhe jo hindu dharam ke chauthhe barn se aate hai.usme kafi log sankuchit mansikta ke hai jo man garahant baten bolte aur likhte rahte hai.is liye define karna jaruri hai. har yug mey aadharmee log janam liye chhahe wah treta ho ya dwapar usko (adharam) ko khatam karne ke liye eshwar ka awatar hota hai.chhahe wah esa masih, budh,mohamad sahab,ram ya krishn ke ya kisi aur rup mey hin kyon na ho use hindu granth mey sakar(sagun) rup kahte hai ,us rup ka aant hota hai jaisa ki sabhi ka huaa. brambha bisnu aur mahesh ko nirgun rup kahte hai jiska nash nahi hota is liye aap ke jaise logo ka aabadi nahi badega tab tak ishwar awtar kyon lega, namaskar.

    प्रत्युत्तर में –
    आपकी टिप्पणी के लिए धन्यवाद। आपको पूरा अधिकार है मेरी बात से असहमत होने का। यों इस तथ्य को समझ सकते हैं कि इस धरती पर जो हिन्दू नही है वह हिन्दूओं की सब नहीं तो कई बातों को नहीं स्वीकरेंगे। बातें ही मनते होते तो क्यों इसाई, मुस्लिम, नास्तिक, इत्यादि होते!! दुनिया की करीब 675 करोड़ जनसंख्या में हिंदुओं की संख्या लगभग 100 करोड़ हैं। उनमें मैं न भी गिना जाऊं तो आश्चर्य नहीं। वैसे मैं जन्मना हिन्दू हूं और अपने को अभी भी हिन्दू समझता हूं, क्योंकि किसी ने मुझे बहिष्कृत नहीं किया है। मैं हिन्दू हूं, क्योंकि इसी में मतों की विविधता स्वीकार्य है, जहां तक मैं समझ पाया हूं। हिन्दू चिंतकों ने अपने-अपने दर्शन प्रस्तुत किये हैं जो परस्पर एक जैसे नहीं हैं। हिन्दुओं के अनुसार तो महात्मा बुद्ध स्वयं भगवत्‌ अवतार थे – हिन्दू थे!! अस्तु मतभेद के लिए क्षमा चाहता हूं। शुभकामना। – योगेन्द्र जोशी

    प्रतिक्रिया

  25. Sanjay J
    दिसम्बर 23, 2012 @ 14:15:06

    शुभ-कामना सहित आपसे निवेदन है आप कोशिश कर आपे आस-पास जो सेन्टर हो ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय का, तो वहां जाकर गीता के रहस्य के विषय में सुने। अवश्य आपको सारे उत्तर सहज प्राप्त हो जायेंगे।

    प्रतिक्रिया

  26. banti
    दिसम्बर 30, 2012 @ 19:15:24

    समस्त भद्र गण कृपया शुरुआत में दी गयी टिपण्णी को ध्यान में रखें और फ़िर comment करें..
    योगेन्द्र जी कि जिज्ञासा निश्चित रूप से स्वाभाविक है..
    इस पर लोगों का मतभेद भी उतना ही स्वाभाविक होगा.
    पर इसके लिए योगेन्द्र जी अथवा किसी और के विचारों पर कोई भी दोष देना उचित न होगा.
    अतः अपना मंतव्य जरूर प्रकट करें मगर व्यक्तिगत होने अथवा भावुक होने की जरूरत नहीं है..

    टिप्पणी –
    “मुण्डे मुण्डे मतिर्भिन्ना तुण्डे तुण्डे सरस्वती”। मनुष्य प्रायः पूर्वाग्रहों से ग्रस्त रहता है। जिस विचार का वह एक बार पक्षधर हो जाता है उससे भिन्न मत को वह सुनना भी नहीं चाहता, उसे स्वीकारने का तो सवाल ही नहीं। पूर्व में किसी के द्वारा कथित बात की व्याख्या कुछ हटकर भी संभव है ऐसा वह नहीं मानता । – योगेन्द्र

    प्रतिक्रिया

  27. chandrasekhar
    जनवरी 19, 2013 @ 06:36:00

    jaisi jaisi jiski soch………

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  28. Abhyuday Singh
    अप्रैल 12, 2013 @ 04:40:10

    Whenever Bharat feels guilty for their own dharma, abhyuthanamdharmasya manifests

    प्रतिक्रिया

  29. Rajesh
    मई 20, 2013 @ 14:00:39

    दुनिया बनाने वाले , कौन है , कहासे आए , कबतक रहेंगे , कब जाएँगे !
    यह सब बकवास बाते है, विश्व मे किसी एक तापमान पर , एक जीव की उत्तपत्ति होती है !
    इसी तरह मनुष की उत्तपत्ति हुई है, और दूसरे जिवो की भी , यही सत्य है !
    जन्मे मनुष ने ही क्रांति की है , इसलिए अ जन्मे की बात करना मूर्खता है, पढ़े वर्ग के लिए!

    धन्यवाद !

    राजेश जी. नागदेवे.

    प्रतिक्रिया

  30. प्रवीण पाण्डेय
    जुलाई 21, 2013 @ 11:53:18

    भाव सृष्टि रचते हैं, प्रार्थना भाव संघनित करती है, आर्द्र और पीड़ित स्वर ईश्वर को अवतरित करा लें, इसमें कोई विशेष संशय क्यों हो सकता है।

    प्रतिक्रिया

    • योगेन्द्र जोशी
      जुलाई 21, 2013 @ 21:37:17

      माफ़ करें आपकी बात मैं समझ नहीं सका। जो कुछ भी मंतव्य रहा हो, उसके लिए
      धन्यवाद।

      प्रतिक्रिया

    • sachdechetana
      अगस्त 18, 2016 @ 08:21:38

      अपना शुद्ध रूप नेति-नेति शब्दों से ही व्यक्त होता है। यह सब परमात्मा का है यह बात आधी अधूरी सत्य है। यां फिर झूठ ही समझे। जीनका ध्यान परीपक्व हो गया, वे जान गए यह सब परमात्मा का नही, यह सब परमात्मा ही है, जीसका प्रमाण वर्तमान ही जीवनका सत्य है। जहां मनुष्य को चाहिए भाषा को बरोबर से लिखै और समझे। धन्यवाद। शुभ प्रभात।

      प्रतिक्रिया

  31. Ashish Sachdeva
    अगस्त 28, 2013 @ 08:49:53

    पूर्णतया असहमत , सबको आपने हिस्से से और अपने हिसाब से , या अपने अनुभव से लिखने का हक निस्संदेह है.. लेकिन ये ही ईश्वर का सत्य स्वरूप भी है.. किसी को किसी रूप में , और किसी को किसी और रुप में या किसी को बिल्कुल ना दिख पड़ने वाला वो अगम्य निराकार होकर भी साकार ईश्वर , हर श्वास के साथ , साथ रहने वालि सत्ता है.. जिस पर किसी का अधिकार नहि सिवाय उनके जो ईश्वर स्वरूप हो जाएँ… कृष्णा ने यही किया और यही दिखाया… और जो कोइ एक उस ईश्वर को आत्मसात कर ले… उसी का स्वरूप हो जाएँ .. येहि कृष्णा ने कहा.. वोह ईश्वर स्व्यं आया और गीता के रुप मैं एक मार्ग छोड़ गया … !!

    प्रतिक्रिया

    • SUMITRA GUPTA
      अप्रैल 10, 2014 @ 17:39:45

      ॐ मैं नहीं मानता—-
      अक्सर लोगों के मुख से सुनने मिलता है,कि मैं नहीं मानता कि भगवान होते हैं या भगवान हैं अथवा मैं तो नास्तिक हूँ,मतलब भगवान तो हैं पर मैं उनको नहीं मानता।मेरा ये लेख उनको ही ध्यान में रखकर लिखने का एक छोटा सा प्रयास है।समझ पाओ तो समझ लीजिये,वरना प्रभु मर्जी, आपको जैसी मति मिली।अच्छा भाई मेरे,आप ये बताइये,आप हैं या नहीं,या आप कौन है? कहाँ से आये हो और कहाँ चले जाओगे। क्योंकि—
      तात-मात तुम्हारे गये,तुम भी भये तैयार।
      आज काल में ही चलो,दया होय हुसियार।।
      अतः– वृथा इसे ना गवाइये,ये स्वांसा अनमोल।
      स्वांसा तन से निकल जाये,रहे चाम को खोल।।
      तो यह तो सत्यता है ना हम सभी के जीवन की कि इस शरीर को छोड़कर हम सभी को कहीं ना कहीं जाना होता है और पुनः फिर आना भी पड़ता है,अन्य रूप में।और ना जाने कितने जीवन जी कर आये हैं, अलग-अलग योनियों में,और ना जाने कितनी योनियों में अभी तो जाना होगा।क्योंकि–
      चौरासी में घूम के,इस तन पर अटकी आय।
      अबकी पासा ना परो,फिर चौरासी जाय।।
      अब विषय है कि आप भगवान को नहीं मानते।मैं आपसे पूछती हूँ,दियासलाई की तीली में आग दिखती है क्या?आप और मैं यही कहेंगें कि नहीं,लेकिन आप हम सभी जानते हैं कि उसमें आग भी होती है और रोशनी भी।कैसे प्रगट होती है?ये भी हम आप सभी जानते हैं जब तीली के सिरे पर लगा मसाला माचिस पे लगे मसाले से घर्षण किया जाता है।हम जब शास्त्रों का पठन-पाठन करते हैं,सन्तों के द्वारा,
      भक्तों के द्वारा उनके अनुभव सुनते हैं, जिन्होंने प्रभु को पाया दर्शन किया, तो वही तो सत्यता है परमात्मा की।अब आप कहेंगें कि हम क्यों माने उनके अनुभव को?तो भाई,जिसके बारे में जानना होता है तो उस विषय को पढ़ना तो पढ़ेगा ही अन्यथा उसके बारे में जानकारी कैसे होगी?
      अच्छा अब आपसे पुनः पूछती हूँ,कि क्या दूध में घी है?आप कहेंगें हाँ-हाँ।पर दूध में घी तो दिखता ही नहीं फिर आप कैसे कह सकते हैं कि दूध में घी है।भाई मेरे, जरूरी नहीं जो हमें नहीं दिख रहा वो है ही नहीं। जिस तरह विशेष प्रक्रिया से मंथन करके दूध में से घी निकाला जाता है ,उसी तरह विशेष प्रक्रिया रूप पठन-पाठन स्मरण, ध्यान के माध्यम से,प्रभु दर्शन,अनुभव,उनका सानिध्य,यहाँ तक की तदाकार हो जाना, किया जा सकता है। इतनी अद्भुत सौन्दर्ययुक्त सृष्टि,इतनी विविधताओं को देखकर भी ऐसा कहना कि भगवान को मैं नहीं मानता ,बड़ी मूर्खतापूर्ण बात लगती है इस मानव बुद्धि की।
      अच्छा अब आप बताइये,मिश्री मीठी होती है,नीबू खट्टा होता है,करेला कड़ुवा होता है ये कैसे पता?आप कहेंगें कि लोगों के अनुभव से और हमने भी चाखा है,
      जिससे पता है।यानि आपने सुना भी है और चाखा भी है।तो भाई मेरे, परमात्मा के बारे में पढ़ोगे सुनोगे तभी तो चाखोगे, तभी तो अनुभव करोगे, तभी तो देख पाओगे। उनके परमानन्द को, उनके रूप माधुर्य को,उनकी आलौकिकता को।एक बात बताऊँ प्रभु के अस्तित्व का बखान करने में मुझे बहुत आनन्द आ रहा है।उनको धन्यबाद है जिन्होंने भगवान के होने,ना होने पर प्रश्नचिन्ह लगाये।
      कई लोग ऐसा भी कहते सुने गये हैं,किसने देखा है भगवान को,किसने देखीं उनकी लीलाओं को,ये सभी काल्पनिक हैं। तरस आता है उनकी क्षुद्र मतियों पर।सभी चीजों का सभी रूपों का सभी लीलाओं का प्रमाण होने पर भी,वे ऐसी अनर्गल बात करते हैं।जब वे स्वंय ही सत्यता से अनभिज्ञ होगें तो वे अपनी सन्तति को क्या ज्ञान दे
      पायेंगें।खैर,किसी के मानने या ना मानने से परमात्म सत्ता को कोई फरक नहीं पड़ने वाला।वे तो थे,हैं और सदैव रहेगें।हम सब भी उनका अंश हैं, सो हमेशा रहेगें तो, लेकिन अनगिनत परिवर्तन, अनगिनत रूपों को धारण करते हुये और फिर उनकी कृपा से,उन हीं में समाहित हो जायेगें।कहा भी है—
      माया सगी ना मन सगा,सगा ना यह संसार।
      बन्दे या जीव का, सगा जो सिरजन हार।।
      और भी- धन यौवन यों जात है, जैसे उड़त कपूर।
      रे मूरख गोपाल भज,क्यों चाटत जग धूर।।
      अन्त में, मैं इतना ही कहूँगी,कि हमको यह जानने का प्रयास तो करना ही चाहये कि हम कौन है?कहाँ से आयें हैं?और कहाँ चले जाना है?बस सोई प्रभु को पाने के लिये,उनको ढूँढने के लिये सोचने लगेंगें,क्योंकि खुद की खोज में ही तो खुदा बसा हुआ है।फिर आप यह भी नहीं कहोगे कि मैं नहीं मानता भगवान को।आप स्वंय ही देखो भगवान शब्द में छिपा हुआ भाव,जो प्रत्यक्ष ही सृष्टि में दृष्टिगोचर है।जैसे- भ से भूमि,ग से गगन,व से वायु अ से अग्नि और न से नीर।श्रीमद्भगवद्गीता जी मैं भी भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है–
      भूमिरापो$नलो वायुः खं मनो बुद्धिरेव च।
      अहंकार इतीयं मे भिन्ना प्रकृतिरष्टधा।।।(अध्याय–7का 4)
      और भी कहते भगवान हैं –
      वेदाहं समतीतानि वर्तमानानि चार्जुन।
      भविष्याणि च भूतानि मां तु वेद न कश्चन।।(अध्याय—-7,का 26)
      अर्थात्—हे अर्जुन!श्रीभगवान होने के नाते मैं जो कुछ भूतकाल में घटित हो चुका है,
      जो वर्तमान में घटित हो रहा है और जो आगे होने वाला है,वह सब कुछ जानता हूँ।मैं समस्त जीवों को भी जानता हूँ,किन्तु मुझे कोई नहीं जानता।पर मैं जिस पर कृपा करूँ तो उसे मुझे जानने में तनिक भी देर नहीं लगती।
      सन्त श्री तुलसीदासजी ने भी अपने रामचरित मानस में कहा है–
      क्षिति जल पावक गगन समीरा,पंच तत्व यह रचित शरीरा।।
      अरे भाइयो मेरे, हमारे ग्रन्थों में ज्ञान का, आनन्द का अमृत भरा पड़ा है,जरा खोलकर,पढकर, सुनकर और चखकर तो देखो।सभी धर्म,जाति वालों ने इन्हीं सनातन ग्रन्थों से मन्थन करके ज्ञानार्जन किया है और अपने तरह-तरह के धर्मों को स्थापित किया है।तो फिर हम आप सब क्यों अछूते रह जायें व्यर्थ की बकवास करके। जब जागो तभी सबेरा।सभी जन क्या? समूची दृश्य-अदृश्य सृष्टि में ही वह परमसत्ता है,और समूची सृष्टि ही वह स्वंय परमात्मा है, शायद ये कहना भी अनुचित ना होगा।
      विशेष-प्रभु प्रेरणा से जो कुछ भी लिख पायी,सो आपके सामने प्रस्तुत है।इस लेख को पढ़कर प्रभु को ना मानने वालों की संख्या कुछ कम हो सके तो मैं अपने आपको धन्य मानूँगी और मेरा लिखना भी सार्थक हो जायेगा।बड़ा है ऐसा सोचकर, पढ़ना ना छोड़िये।दिल की गहराई से पढ़िये और महसूस करिये सत्यता को।
      जय अंखड ज्ञानप्रकाशक,सर्वव्यापक परमेश्वरी-परमेश्वर को 09987648582
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      प्रतिक्रिया

      • sachdechetana
        अगस्त 18, 2016 @ 06:09:16

        धन्यवाद शुभ प्रभात बहोत बढीया लिखा है आपको सत्त सत्त नमस्कार हे महानिदेर्शक ईश्वर स्व्यं आता भी है और स्वयं ही जाता भी है खामखा ही यां व्यर्थ ही ईश्वर सत्य को नही जानता ईश्वर अंश जीव अविनाशी और अपने चेतन अमल से सहज सुख मे नही रहता ! आश्चर्य भी और ? प्रश्न भी होता है उन बे.. .. पता नही क्या लिखे जीनको अपने आपका ही पता न हो वे सच मे कौन है ? बाकी यह सत्य को कोई भी झुठला नही सकता के हरेक स्वरूप वोही ईश्वर स्वयं आता है और नामरुप शरीर छोड़कर जाता है धैर्यवान रहना ही समझदारी है आत्म ध्यान करना प्राप्ति हेतू सर।

      • विशाल
        अगस्त 30, 2016 @ 04:26:48

        सहमत हूँ आप से,,, शुक्रिया बहुत अच्छा लगा पड़ कर।

    • sachdechetana
      अगस्त 18, 2016 @ 06:04:25

      वोह ईश्वर स्व्यं आता भी है और स्वयं ही जाता भी है खामखा ही यां व्यर्थ ही ईश्वर सत्य को नही जानता ईश्वर अंश जीव अविनाशी और अपने चेतन अमल से सहज सुख मे नही रहता ! आश्चर्य भी और ? प्रश्न भी होता है उन बे.. .. पता नही क्या लिखे जीनको अपने आपका ही पता न हो वे सच मे कौन है ? बाकी यह सत्य को कोई भी झुठला नही सकता के हरेक स्वरूप वोही ईश्वर स्वयं आता है और नामरुप शरीर छोड़कर जाता है धैर्यवान रहना ही समझदारी है आत्म ध्यान करना प्राप्ति हेतू सर।

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  32. m.gulbahar gauri
    अगस्त 28, 2013 @ 12:56:40

    हजरत मुहम्मद साहब के दोस्त (असहाबी) एक बार एक बस्ती से गुज़र रहे थे रास्ते मे एक आदमी से मुलाकात हुई उन्होने उससे कहा भाई नमाज पढा करो अच्छे सदकम॔ किया करो अल्लाह खुश होगा तो उस आदमी ने पूछा कहाँ है अल्लाह मुझे तो नज़र नही आ रहा है और उस आदमी ने सवाल किया कि अगर आप अल्लाह के होने की दलील मुझे देदो तो मै नमाज़ भी पढूगा और सदकम॔ भी करूगा असहाबी पर उसके सवाल का जवाब नही दे पाया ॥ असहाबी ने इसका जिक्र आप मुहम्मद साहब से किया तो आपने असहाबी से कहा कि अगर वो आदमी आपको दोबारा मिले तो उसे हमारे पास ले आना उसे उसके सवाल का जवाब मिल जायेगा असहाबी उसे साथ लेकर आप मुहम्मद साहब के पास पहूचे आप ने उससे कहा क्या सवाल है आपका आदमी ने सवाल दोहराया तो आपनेउसके जवाब मे कहा ॥॥कि आदमी का अपने मकसद मे नाकामयाब होना ही अल्लाह के होने की दलील है ॥॥मतलब अरबो रूपया होने के बावजूद भी जब हम अपने बीमार,घायल बच्चे को मौत से नही बचा पाते तो आखिर मे क्यो कहते है कि अल्लाह की एसी ही मरजी थी या ईशवर की एसी ही इच्छा थी या देव ईच्छा महान और ये दुनिया के हर ध॔म को मानने वाले लोग मजबूर होकर सिफ॔ऊपर वाले शरन मे जाते है

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  33. doesnt matter
    अगस्त 29, 2013 @ 14:54:11

    Sbse phle to aap y maane ki manushaya AAJ hi swarthi nhi hua wo to paida hi swarthi hua tha karodo salo phle kyuki shudh swarth hi jiwan ke liye jaruri h…duusra Avatar ki Dharna badaliye Jab Jab ek garib ko dekh Aap,ke man m daya bhawna,Aati h Tab Tab bhagwan Apke bhitar Avatar lete h Nhi ati Day to alag baat h anyatha Krishna ke khe hue wachan Sidh Hogye usi shan haroj hote h aapme mujme
    Tisra Positive baate b giniye sirf bura h nhi h acha to hmesa durlabh h pr h uske bina aap b sambhav nhi the web par gandi sites h to ye bhi to ek h…aur dekho yehi behtar aur bhari padi ..lo jeet gyi achai aur ho gya Avatar:)

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  34. Shekhar Sharma
    दिसम्बर 17, 2013 @ 18:07:35

    जो आप ने कहा वह सत्य नही है। जहा हमारी सोच समाप्त होती है वहा अवतारी पुरूषो की सोच शुरू होती है। उनके क्या विचार रहे होंगे कोई नही जानता। यदि प्रमात्मा रचियता है तो वह अपने अनुसार सही ही कर रहा है। जहा तक आज धर्म के विनाश की बात है जो समय हमेशा अक जैसा नही रहता। यह बदलता रहता है। समय अवश्य बदलेगा और फिर से परिस्थिति समान्य होगी।

    प्रत्युत्तर में –
    आपकी टिप्पणियों के लिए धन्यवाद। आप मुझसे सहमत नहीं। यह स्वाभाविक है। मेरे साथ भी यही लागू होता है कि मैं आपसे सहमत नहीं हो सकता। मतभेद मनुष्य समाज में स्वाभाविक रूप से देखने को मिलते हैं। यह दावा करना आसान है कि मैं जो जानता हूं वही सच है। परंतु कौन सच जानता है और कौन नहीं इसका निर्णय कोई नहीं कर सकता। मैं दावा नहीं करता कि मैंने जो लिखा है वह ऐतिहासिक सच है। मैं केवल यह कहता हूं कि जो मुझे पढ़्ने को मिला है उसका अर्थ मुझे वैसा लगा जैसा लिखा है। कहने वाले का मंतव्य वह नहीं रहा जो उसके कथित शब्दों से लगता हो तो कहने वाले ने अधिक स्पष्ट एवं असंदिग्ध शब्दों में अपनी बात क्यों नही कही यह प्रश्न मेरे मन में जरूर उठता है।

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  35. SUMITRA GUPTA
    अप्रैल 10, 2014 @ 17:45:11

    ॐ मृत्यु — एक सिलसिला है परिवर्तन का
    परमतत्व परमात्मा ने एक से अनेक होने की इच्क्षा से सृष्टि का निर्माण किया और जन्म और मृत्यु का विधान भी साथ-साथ बनाया इसलिये सृष्टि में जो भी आया है उसका जाना भी निश्चित है। जब कोई भी जन्म लेता है तभी उसकी मृत्यु भी तय हो जाती है।मौत का झपट्टा तो कई पहरों के बीच से भी उठा कर ले जाता है इससे ना राजा बच सका ना रंक, ना देवता ना राक्षस, ना साधु ना सन्यासी।
    जिन्होंने हजारों वर्षों की तपस्या करके अजर अमर होने का वरदान पाया था वे भी नहीं,क्योंकि जन्म और मृत्यु तो एक शाश्वत सत्य है। वैसे मेरा ऐसा मानना है कि मृत्यु एक रूपान्तरण है अर्थात् वस्तु अथवा व्यक्ति का रूप परिवर्तन होना जब कोई मनुष्य मर जाता है तो उसका शरीर यहीं रह जाता है जिसका अपने-अपने धर्मो के अनुसार मनुष्य क्रिया-कर्म करता है कोई जलाकर , कोई बहाकर अथवा कोई दफनाकर, यानि ये शरीर इस संसार के पंच तत्वों में ही विलीन हो जाता है। और इस शरीर में निहित जो परमात्मतत्व है ,निकल कर वह पुनः अपने -अपने कर्मो के अनुसार इस संसार में अन्य किसी रूप में जन्म ले लेता है और समयानुसार पुनः समाप्त हो जाता है इस तरह यह प्रक्रिया अबाध गति से चलती रहती है
    इसी तरह संसार की समस्त जड़-चेतन वस्तुयें भी इसी संसार में विलीन होकर रूप परवर्तित करती रहती हैं। जैसे कुछ राख होकर,कुछ भस्म रूप होकर,कुछ मिट्टी रूप होकर,कुछ जल रूप होकर और कुछ ठोस रूप होकर आदि-आदि।रूप परिवर्तन की यह प्रक्रिया निर्बाध गति से निरन्तर चलती रहती है।इस शरीर में निहित जो परमतत्व है वह पुनः अपने कर्मों के अनुसार इसी संसार में अन्य किसी रूप में जन्म लेकर पुनः-पुनः आता है और समयानुसार पुनःसमाप्त होकर और फिर पुनः अन्य किसी रूप में जन्म ले लेता है।पर हम सभी इस शरीर की मूल्यवानता को ना पहचानकर यूँ ही इसे गँवा रहे हैं।कहा भी है–
    जन्म से लेकर मरण तक,दौड़ता है आदमी
    ,एक रोटी दो लंगोटी,तीन गज कच्ची ज़मीं
    तीन चीजें चार दिन में,जोड़ता है आदमी
    है यहाँ विश्वास कितना?आदमी, की मौत पर
    मौत के हाथों सभी कुछ छोड़ता है आदमी
    तात्पर्य है,मनुष्य जीवन भर खाने कमाने में ही सारा जीवन खपा देता है और जोड़-जोड़कर रखता जाता है और जब मौत आ जाती तब सब कुछ मौत के हाथों में छोड़कर यहाँ से विदा हो जाता है।मगर अन्य किसी रूप में पुनःआ जाता है और दुनियाँ में आवागमन का,परिवर्तन का चक्र यूँ ही चलता रहता है।अतः यह सत्य है कि मृत्यु नाम है एक परिवर्तन का चाहे वह वस्तु का हुआ हो अथवा शरीर का—-दुनियाँ में जीना है,तो मेहमान बनकर जीते रहें,मालिक बनकर ना जीयें।
    सन्त जन अथवा शास्त्रमतानुसार चौरासी लाख योनियों में वह परम तत्व भ्रमण करते-करते अन्त में मनुष्य रूप धारण करता है जो बड़ा ही अनमोल होता है। क्योंकि मनुष्य रूप के माध्यम से ही,जो परमतत्व हमारे शरीर में आया है उन्हीं में मिलाकर आवागमन के चक्र से मुक्त हुआ जा सकता है। प्रभु नाम स्मरण,अभिमान रहित मन बुध्दि,शुभ कर्म और प्रेम-भक्ति से ही उन परमप्रभु परमात्मा को पाया जा सकता है।
    मृत्यु पर आधिपत्य करने के लिये बड़े-बड़े वैज्ञानिकों ने भी प्रयास किया, मगर वे भी सभी असफल ही रहे। वह परमतत्व शरीर में से कब कहां से बाहर निकल जाता है पता ही नहीं चलता। उन्होंने एक परीक्षण भी किया था, एक कांचनुमा बॉक्स में एक मरणासन्न व्यक्ति को रखा लेकिन जब उसके प्राण निकले तो वह तत्व कांच को फोड़ता हुआ बाहर निकल गया और वैज्ञानिक कुछ ना कर पाये
    हिरण्याक्ष ,हिरण्यकश्पु,कंस ,रावण आदि-आदि राक्षसों ने तो स्वंय की मृत्यु ना आये इसके लिये बड़े- बड़े तप करके वरदान भी पाये मगर मृत्यु के पाश से अपने आपको कोई भी ना बचा पायाl वरन् प्रभु ने अवतार ले लेकर उनको उन सभी के वरदानों के अनुसार ही मृत्यु प्रदान की, और उनके आत्मतत्व को अपने में ही समाहित कर लिया । मृत्यु रूपी अजगर तो अपना मुंह खोले हमेशा ही खड़ा रहता है वह किसको कब कहां निगल जायेगा कुछ पता नहीं। कहा भी है—
    क्या भरोसा है इस जिदंगी का, साथ देती नहीं ये किसी का
    सांस रुक जायेगी चलते- चलते,शंमा बुझ जायेगी जलते-जलते
    दम निकल जायेगा-दम निकल जायेगा-दम निकल जायेगा
    दम निकल जायेगा आदमी का,क्या भरोसा है इस जिंदगी का
    विडम्बना तो देखिये, आदमी ऐसे जीता है कि वह कभी मरेगा ही नहीं और मर जाता है तो लगता है कि वो था ही नहीं ।यद्धपि यह भी सत्य है कि वह अन्य रूप में इसी संसार में पुनःआ जाता है और रूपों के परिवर्तन की ,भिन्न-भिन्न योंनियों में आवागमन के परिवर्तन की यह प्रकिया सृष्टि में निरन्तर चलती रहती है। अतः अपना ये अनमोल जीवन सार्थक हो सके,इसके लिये कर्तव्य और कर्म का निर्वहन करते हुये प्रभु नाम ध्यान भी अवश्य करते रहना चाहिये।
    प्रभु कृपा दृष्टि सभी पर सदा बनी रहे।
    जय- जय राधे-श्याम,जय-जय सीता-राम
    09987648582

    प्रतिक्रिया

  36. SUMITRA GUPTA
    अप्रैल 10, 2014 @ 18:03:11

    kan kan mein hi parmatma hai ya yun kahana chahiye ki kan -kan hi parmatma hai.usake alawa kuchh bhi nahin ..LILA KHELANE KELIYE UNHONE HI MAYA SE ANGINAT ROOP DHARAN KIYE HUYEN HAIN KYONKI LILA TO VIRUDDHATAYEN HONGI TAB HI KHELI JA SAKATI HAI,..PRABHU ROOP KISKE HRIDAY MEIN BAITHKAR KYA BHAV LAYENGE YE PRABHU HI JANE..PAR YE SATY HAI KI ACHCHHA KARY SUKH SHANTI PRADAN KARTA HAI AOR BURA KARY ASHANTI AOR DUKH. ISBAT KO TO MERE BHAI YOGENDRA JOSHI JI NAHI JHUTHLA SAKATE. PARMATMA KE HONE KA SABASE BADA PRAMAN TO KHUD BHAI JOSHI JI HI HAIN..SOCHIYE JARA AP KON HO ,KAHAN SE AAYE HO ,AOR KAHAN CHALE JAOGE,,,.
    DHANYBAD PRABHU KI LILA KO JO APNE HI ANSHON KO MADHYAM BANAKAR KAISI-KAISI LILAYEN KHELRAHI HAI

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  37. VIBHAS
    अप्रैल 26, 2014 @ 14:09:32

    एक महान भूल
    परमात्मा सर्व व्यापक नहीं है
    यह कितने आश्चर्य की बात है कि आज एक और तो लोग परमात्मा को ‘माता-पिता’ और ‘पतित-पावन’ मानते है और दूसरी और कहते है कि परमात्मा सर्व-व्यापक है, अर्थात वह तो ठीकर-पत्थर, सर्प, बिच्छू, वाराह, मगरमच्छ, चोर और डाकू सभी में है ! ओह, अपने परम प्यारे, परम पावन, परमपिता के बारे में यह कहना कि वह कुते में, बिल्ले में, सभी में है – यह कितनी बड़ी भूल है ! यह कितना बड़ा पाप है !! जो पिता हमे मुक्ति और जीवनमुक्ति की विरासत (जन्म-सिद्ध अधिकार) देता है, और हमे पतित से पावन बनाकर स्वर्ग का राज्य देता है, उसके लिए ऐसे शब्द कहना गोया कृतघ्न बनना ही तो है !!!
    यदि परमात्मा सर्वव्यापी होते तो उसके शिवलिंग रूप की पूजा क्यों होती ? यदि वह यत्र-तत्र-सर्वत्र होते तो वह ‘दिव्य जन्म’ कैसे लेते, मनुष्य उनके अवतरण के लिए उन्हें क्यों पुकारते और शिवरात्रि का त्यौहार क्यों मनाया जाता ? यदि परमात्मा सर्व-व्यापक होते तो वह गीता-ज्ञान कैसे देते और गीता में लिखे हुए उनके यह महावाक्य कैसे सत्य सिद्ध होते कि “मैं परम पुरुष (पुरुषोतम) हौं, मैं सूर्य और तारागण के प्रकाश की पहुँच से भी प्रे परमधाम का वासी हूँ, यह सृष्टि एक उल्टा वृक्ष है और मैं इसका बीज हूँ जो कि ऊपर रहता हूँ |”
    यह जो मान्यता है कि “परमात्मा सर्वव्यापी है” – इससे भक्ति, ज्ञान, योग इत्यादि सभी का खण्डन हो गया है क्योंकि यदि ज्योतिस्वरूप भगवान का कोई नाम और रूप ही न हो तो न उससे सम्बन्ध (योग) जोड़ा जा सकता है, न ही उनके प्रति स्नेह और भक्ति ही प्रगट की जा सकती है और न ही उनके नाम और कर्तव्यों की चर्चा ही हो सकती है जबकि ‘ज्ञान’ का तो अर्थ ही किसी के नाम, रूप, धाम, गुण, कर्म, स्वभाव, सम्बन्ध, उससे होने वाली प्राप्ति इत्यादि का परीच है | अत: परमात्मा को सर्वव्यापक मानने के कारण आज मनुष्य ‘मन्मनाभाव’ तथा ‘मामेकं शरणं व्रज’ की ईश्वराज्ञा पर नहीं चल सकते अर्थात बुद्धि में एक ज्योति स्वरूप परमपिता परमात्मा शिव की याद धारण नहीं कर सकते और उससे स्नेह सम्बन्ध नहीं जोड़ सकते बल्कि उनका मन भटकता रहता है | परमात्मा चैतन्य है, वह तो हमारे परमपिता है, पिता तो कभी सर्वव्यापी नहीं होता | अत: परमपिता परमात्मा को सर्वव्यापी मानने से ही सभी नर-नारी योग-भ्रष्ट और पतित हो गये है और उस परमपिता की पवित्रता-सुख-शान्ति रूपी बपौती (विरासत) से वंचित हो दुखी तथा अशान्त है |
    अत: स्पष्ट है कि भक्तों का यह जो कथन है कि – ‘परमात्मा तो घट-घट का वासी है’ इसका भी शब्दार्थ लेना ठीक नहीं है | वास्तव में ‘गत’ अथवा ‘हृदय’ को प्रेम एवं याद का स्थान माना गया है | द्वापर युग के शुरू के लोगों में ईश्वर-भक्ति अथवा प्रभु में आस्था एवं श्रद्धा बहुत थी | कोई विरला ही ऐसा व्यक्ति होता था जो परमात्मा को ना मानता हो | अत: उस समय भाव-विभोर भक्त यह ख दिया करते थे कि ईश्वर तो घट-घट वासी है अर्थात उसे तो सभी याद और प्यार करते है और सभी के मन में ईश्वर का चित्र बीएस रहा है | इन शब्दों का अर्थ यह लेना कि स्वयं ईश्वर ही सबके ह्रदयों में बस रहा है, भूल है |

    प्रतिक्रिया

  38. sanjeev kumar
    जनवरी 18, 2015 @ 09:12:41

    WO ISHWAR HAR AUR SE HATH-PAR-MUKH-KAAN AADI WALA HAI ATHARAT WO HI HAR STHAN PAR VIDYAMAN HAI-TO AISA KAUN PRANI HAI JISKE HIRDEY ME WO PRERNA KAR APNE KARYE KO SIDH NA KAR SAKE-YE HI TO IS SHALOK KA MOOL UDESHEY HAI-KI WO JAB,JIS SMAY JO CHATA HAI KISI KE BHI SHAREER KA PARYOG KAR APNA KARYA SIDH KAR LETA HAI
    JAI SHREE KRISHNA

    प्रतिक्रिया

  39. Sham
    जुलाई 28, 2015 @ 23:10:19

    Dharm aur adharm hamse hi shuru hoti hai dosto.
    Har yug me adharm tha.har yug me dekho…
    aur dharm ki stapana ke liye vo ishwer ata tha aur ata rahega.
    Bas hum niti niyam ko bhool gaye hai. Hum yam niyam ko bhool gaye hai.
    Kahi to suna tha ki acchai aur burai ki lakir sidha dil se nikalti hai.
    Saty to ishwer hi hai.

    प्रतिक्रिया

    • योगेन्द्र जोशी
      जुलाई 29, 2015 @ 18:28:13

      धर्म का पालन और अधर्म से विरत रहना मनुष्य के हाथ में है क्या? कौन उसमें दुराचरण की प्रवृत्ति पैदा करता है? क्यों ईश्वर किसी को सद्बुद्धि देता है तो किसी को दुर्बुद्धि? यदि वही अपने सत्कर्मों-कुकृत्यों के लिए उत्तरदायी है तो ईश्वर की इस विषय में भूमिका क्या रह जाती है? इस प्रकार के अनेक प्रश्न हैं जो मेरे मन में उठते हैं जिनका उत्तर मेरी जानकारी में किसी के पास नहीं है।

      प्रतिक्रिया

      • sachdechetana
        अगस्त 18, 2016 @ 07:04:01

        जहाँ अधर्म होता है, वहा धर्म की स्थापना करने मै जरुर आता हुं हर वक्त हर समय वर्तमान मे हि स्वयंसिद्ध जीवन देने हेतु सर। अधर्म फुलफोर्म: अन्न ध्यान राम को वायु मंडल मे भरा भरा प्राण वायु ही समझे। जीतना शरीर मे भरो गे उतना ही जीवन सानदार जानदार और समझदारी पूर्ण बिताओगे और सद्गुण जाग्रत होंगे जीवन मे और ईश्वर कृपा हो जाते ही ईश्वर अंश से ईश्वर शरणागत जीव स्वयं मनुष्य से ईश्वर ही बन जाएं धन्यवाद। शुभ प्रभात।

  40. नीरज
    अक्टूबर 13, 2015 @ 23:03:09

    प्रिय जोशी जी,
    मैं आपके लेखन से सहमत या असहमत नहीं हूँ। परन्तु आपके लेखन कला की सराहना करता हूँ। मैंने कुछ प्रतिक्रियाओं पर भी आपके प्रतियुतर पढे। मेरी अपनी समझ है कि आपके पास एक निश्चित तर्क बुद्धि और समझने समझाने की अच्छी क्षमता है।
    जोशी जी
    आपके इस लेख के बारे में अपनी जानकारी और समझ से कहना चाहूँगा कि कोई भी वक्तव्य किसी ने किसी को किसी समय किस परिस्थिति में कहे और जिसे कहे उसकी मानसिक स्थिति कैसी थी। उसका बुद्धि स्तर कितना था। यह सब जानना जरूरी होता है। हम द्वापर युग की बात को सही या गलत कैसे सिद्ध कर सकते हैं।
    आपने ॠगवेद का वचन तो सुना होगा – shruti bhinna smriti yashche bhinna, na ekomunirasya vacheh pramanam, braham tatva nihamtam guhayaam mahajano yen gatteh sa patha,

    Means listening abilities are different, memory power is different of each person, not even the words of Saint and sages can be used as evidence, as the element of God is very deep, go to the Path where Great people go…

    जहाँ तक आज के युग में कृष्ण जी के होने की बात है तो आप गीता का पूर्ण अध्ययन करेंगे तो पाएगें कि श्री कृष्ण खुद कहते हैं कि जो मुझे देवकी और वासुदेव के घर जन्मा जानते हैं वे नासमझ हैं।
    Some people says consciousness which never dies… it can be awakened by any Awakened one or can be Awakened by only reading scriptures… All that will Awaken the consciousness is actually Lord Krishna.
    In this way lord krishna is still in this yug.

    प्रतिक्रिया

    • योगेन्द्र जोशी
      अक्टूबर 19, 2015 @ 16:56:19

      श्रीमान्‌ नीरज जी, टिप्पणी के लिए धन्यवाद । प्रत्युत्तर में पहले “तर्कोऽप्रतिष्ठः —” के बारे में । उद्धृत श्लोक व्यासरचित ग्रन्थ महाभारत के वनपर्व के अन्तर्गत आरणेयपर्व में वर्णित युधिष्ठिर-यक्ष संवाद (यक्षप्रश्नों) के श्लोकों में से एक है। यह ऋग्वेद-संहिता की कोई ऋचा नहीं है ।

      तर्कोऽप्रतिष्ठः श्रुतयः विभिन्ना नैको ऋषिर्यस्य मतं प्रमाणम्‍।
      धर्मस्य तत्वं निहितं गुहायां महाजनो येन गतः स पन्था ॥
      (तर्कः अप्रतिष्ठः, श्रुतयः विभिन्नाः, एकः ऋषिः न यस्य मतम्‌ प्रमाणम्‌, धर्मस्य तत्वम्‌ गुहायाम्‌ निहितम्‌‍, महाजनः येन गतः सः पन्था ।)

      (तर्क प्रतिष्ठित नहीं है अर्थात्‌ तर्क के माध्यम से धर्म-अधर्म का निर्णय हो सकता है यह बात सिद्ध नहीं है । श्रुतियों में भी भिन्नता पाई जाती है यानी जो बातें लोगों से, पूर्वजों से, सुनते आ रहे हैं उनमें भी समानता नहीं रहती । कोई एक ऋषि नहीं जिसके मत को प्रमाण-स्वरूप स्वीकारा जाता है । वास्तव में धर्म का तत्व गुहा में छिपा हुआ है अर्थात्‌ वह अति गूढ़ है, आसानी से समझ में नहीं आता है । ऐसे में जिस मार्ग से श्रेष्ठ पुरुष, जिनको समाज में प्रतिष्ठा मिली हो, जिनका आचरण अनुकरणीय हो, जो विवादों से परे हों, आदि-आदि, उसी को धर्म का मार्ग समझना चाहिए, उन्हीं के विचार प्रामाणिक मानना चाहिए ।)

      मेरी दृष्टि में ब्लॉग में लिखित लेख और पुस्तक-पत्रिका आदि में लिखित लेखों के बीच उल्लेखनीय अंतर यह है कि पहले मामले में सही-गलत, प्रिय-अप्रिय, आदि कुछ भी लेखक लिखने के लिए स्वतंत्र होता है । कोई उसको लिखित पाठ की गुणवत्ता/स्वीकार्यता के बारे में नहीं बताता है जब कि दूसरे में उसके मूल्यांकन के बाद ही प्रकाशन होता है । इसलिए पहले में लेखक वह सब कुछ लिखने की छूट का लाभ ले लेता है जिसे कदाचित दूसरे में वह न पा सके। पहले में अन्य जनों से मतभिन्नता की और तदनुरूप टीका-टिप्पणी की पर्याप्त गुंजाइश रहती है । मैं अन्य जनों की टिप्पणियों को सहजता से स्वीकार करता हूं । जिस प्रकार मेरे विचार उनके लिए बाध्य नहीं हो सकते वैसे ही उनके विचार भी मेरे लिए स्वीकार्य हो आवश्यक नहीं है । मैं इसी नियम का पक्षधर हूं ।

      मैं बहुतों से बहुत-सी बातों को लेकर असहमत रहता हूं । मैं समझता हूं हर व्यक्ति अपने-अपने तरीके से वस्तुस्थिति को देखता है, उसकी व्याख्या करता है । ब्लॉग लेखन की यही छूट उसकी विशिष्टता है । मैं यही कहता हूं जिसे मेरी बातें ठीक न लगें वह उन बातों को सहर्ष कूड़ेदान में डाल सकता है । शुभेच्छा ।

      प्रतिक्रिया

      • sachdechetana
        अगस्त 18, 2016 @ 07:11:51

        ईश्वर अंश के लिए ईश्वर स्वयं ही है, जो आते हे और जाते भी स्वयं ही है, भेद रखना यां करना अयोग्यता है। अधर्म होता है, वहा धर्म की स्थापना करने मै जरुर आता हुं हर वक्त हर समय वर्तमान मे हि स्वयंसिद्ध जीवन देने हेतु सर। अधर्म फुलफोर्म: अन्न ध्यान राम को वायु मंडल मे भरा भरा प्राण वायु ही समझे। जीतना शरीर मे भरो गे उतना ही जीवन सानदार जानदार और समझदारी पूर्ण बिताओगे और सद्गुण जाग्रत होंगे जीवन मे और ईश्वर कृपा हो जाते ही ईश्वर अंश से ईश्वर शरणागत जीव स्वयं मनुष्य से ईश्वर ही बन जाएं धन्यवाद। शुभ प्रभात।

  41. Sanjeev Kumar
    दिसम्बर 05, 2015 @ 09:20:37

    वज्र से अधिक कठोर फूल से भी कोमल है परमात्मा,
    कपटी को कभी छोड़े ना सज्जन को माने अपनी ही आत्मा।

    प्रतिक्रिया

  42. Sanjeev Kumar
    दिसम्बर 05, 2015 @ 09:21:26

    प्राणीमात्र को सुख अति प्यारा दुख से सभी जीव डरते हैं,
    तो भी मूरख दुख पाने का करम सदा करते हैं।

    प्रतिक्रिया

  43. Sanjeev Kumar
    दिसम्बर 05, 2015 @ 09:36:59

    अहं भाव से ही सब प्रवृति होती है-धर्म-अधर्म,दुराचरण,सुबुद्धि-दुर्बुद्धि,सत्कर्म-दुष्कर्म आदि।ईश्वर इन सबका द्रष्टा और नियामक है ।अहं स्मृति के रहते ये चक्र चलता रहता है और जैसे ही ये स्मृति सम्पूर्ण नाम-रूपों से मुक्त हो व्यापक्ता को प्राप्त हो स्वयं को हर जगह पाती है तो ईश्वर और उसमे कोई भेद नहीं रहता।

    प्रतिक्रिया

  44. अजय
    फरवरी 01, 2016 @ 07:58:27

    तुने कहा कोई भी उसके अस्तित्व को साबित नही कर सकता। यो प्रश्न अगर तुम आज से 5-6 हजार वर्ष पूछता तो सभी तुझ टर खूब हसते। इतना बडा ब्रह्माण्ड क्या अपने आप बन गया?
    अगर तू ये पूछता है कि सब कुछ परमात्मा ने ही बनाया तो इसका क्या सबूत है? तो तू जिस मोबाईल या कम्प्युटर से ये सब टाईप करता है इसका सबूत दे कि ये सब मानव कृत है; जबकि ना तूने या ना मैने इसे बनाते हुए देखा। सत्य यही है सारी मशीने मानव कृत है क्योकि इन मशीनो की प्लेनिंग व तकीक बिन चेतना या समझ के संभव नही है। प्रकृति अजीव है चेतन हीन सो प्रकृति से ये बन नही सकते।
    अब आप ये देखिएगा कि सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड मे प्लेनिंग है या नही। हाईड्रोजन के बादलो के कणो का मिल कर हिलीयम बनना। फिर हिलीयम से उष्मा व गुरूत्व शक्ति का बनना। बादलो का गठन हो कर तारे का बनना। ग्राहाणुओ से उल्काओ का बनना उल्काओ से ग्रह का बनना। उसके व तारे के गुरूत्व से ग्रह का परिक्रमा करना। आंखो को खोल के देखो मित्र पूरी सृष्टि प्लेनिंग से काम कर रही है। क्या ये सारी प्लेनिंग बिन समझ के अपने आप बन गयी। नही। जिसने इसे बनाया है वो ही परमात्मा है। उसने इसे तरीके से बनाया है परमाणुओ को गति दे कर।
    ओर ये सब जो ओज धर्म के ढिंढिरे पिट रहे है-हिंदु, मुस्लमान , सिख, ईसाई, बोद्ध ये सभी तो धरती पर मानव के 24 घण्टे जो कि पूरे होने वाले है मात्र 2-3 सेकेण्ड पलहे बने है।
    आप आत्म मंथन कर के देखो कि क्या मै गलत हू?
    ****************

    मेरे विचारों से किसी का न कुछ बनता है और न किसी का कुछ बिगड़ता है। जिसको जिस धारणा पर टिकने से सकून मिले वह उसको मानता रहे। मैं नहीं समझ पाता कि धर्म के नाम पर तमाम बातें करने वाले इस बात से क्यों परेशान होते हैं कि दूसरे उसकी बात नहीं स्वीकारते। पाप-पुण्य उसी दूसरे पक्ष के खाते में जायेगा, फल उसी को भुगतना पड़ेगा, भुगते। मनुष्य को पहले अपने कर्तव्य करना चाहिए न कि दूसरों को उपदेश देता फ़िरे।
    मुण्डे मुण्डे मतिर्भिन्ना तुण्डे तुण्डे सरस्वती। – योगेन्द्र जोशी

    प्रतिक्रिया

  45. Shashi Kant Singh
    फरवरी 01, 2016 @ 09:35:24

    Jaki Rahi Bhavna Jaisi , Prabhu Murti Dekhi Tin Taisi ||

    प्रतिक्रिया

  46. kamar ahmad
    मार्च 30, 2016 @ 15:07:39

    करोडो वर्षों के अथक परिश्रम, अनुसंधान से मनुष्य ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में इतना विकास कर सका है कि एक शक्तिशाली राकेट ‎से चाँद पर जा पहुंचा है, और फिर थोडी और प्रगति करके चाँद की कक्षा में 500 -1000 किग्रा. के उपग्रह या इससे कुछ अधिक ‎वजन के मौसम की जानकारी देने वाले उपग्रह ही वहां तक स्थापित कर सका है, मंगल की परिक्रमा करने के लिए यान प्रक्षेपित ‎कर पाया है। और अपनी इस उपलब्धि पर गर्व करता है। लेकिन जब हम सृष्टि के रचयिता के ज्ञान-विज्ञान को देखते हैं तो हम ‎हैरान हो जाते हैं कि करोडो वर्ष पहले जब इंसान को कुछ भी ज्ञान नहीं था, उस वक्त भी उस परमेश्वर के पास ऐसा ज्ञान और ‎विज्ञान था जिसके बल पर उसने पृथ्वी से भी कई-कई गुणा भारी ग्रह दूर आकाश में इतनी-इतनी दूर स्थापित कर दिये कि ‎इंसान उस दूरी का सही आंकलन भी नहीं कर सकता। यहां तक की इतनी दूर प्रकाश को आने में भी करोडो-अरबों-खरबों साल ‎तक लग जाते हैं। उस परमेश्वर के इस ज्ञान-विज्ञान को देखकर, मन बरबस ही कह उठता है कि धन्य है वो शक्ति जिसने ये ‎सृष्टि बनाई और फिर शीश अपने आप ही सर्वश्रेष्ठ वैज्ञानिक (परमेश्वर) के सामने झुक जाता है।
    इंसान और परमेश्वर के ज्ञान-विज्ञान और तकनीकी दक्षता में कोई तुलना हो ही नही सकती। उदारहण के लिए, इंसान रोशनी देने ‎के लिए एक बल्ब तो बना सकता है लेकिन इतना बडा बल्ब नहीं बना सकता कि पूरी पृथ्वी को रोशनी दे सके, लेकिन सूरज ‎करोडो-अरबों वर्ष से नियमित रूप से इस संसार को गर्माहट और रोशनी दे रहा है और उसमें कहीं कोई खराबी नहीं आयी और ना ‎ही रिपेयर और सर्विसिंग की जरूरत पडी। इंसान पूरी मेहनत से मिट्टी खोदकर एक नहर तो बना सकता है लेकिन एक समुद्र ‎कभी नहीं बना सकता और ना ही समुद्र के पानी को खाली कर सकता है। इंसान हिमालय जैसे पहाड नहीं बना सकता। सोना-‎चाँदी, हीरे-मोती, खनिज, तेल, आदि विविध प्रकार की चीजों से ये धरती भरी पडी है। और ये सब इंसान ने नहीं बनायी। विज्ञान ‎ये कहता है कि हर कार्य के पीछे कुछ ना कुछ कारक (उर्जा, बल, शक्ति) अवश्य होता है, और भौतिक विज्ञान के अनुसार इतने ‎बडे ब्रह्माँड और सृष्टि की रचना के पीछे भी कुछ ना कुछ कारक जरूर है, उसे सर्वश्रेष्ठ वैज्ञानिक, प्रकृति, परमेश्वर आप कुछ ‎भी कह सकते हैं। ‎
    रिमोट से चलने वाली चीजें भी इंसान के ज्ञान-विज्ञान और तकनीकी दक्षता का एक नमूना है, जिस प्रकार रिमोट से चलने वाली ‎चीजें लगता है कि एक ही इशारे पर अपने-आप चल रही हैं परंतु इसके पीछे वो तकनीक बनाने वाला है जिसने रिमोट का ‎आविष्कार किया। अगर रिमोट की ये तकनीक विकसित ना हुई होती तो हमें आज तक इसका पता ना चलता कि कोई वस्तु ‎एक इशारे से भी चल सकती है। बिजली, ऊर्जा का ही एक रूप है, बडी से बडी फैक्टरी और उसकी सारी मशीनें बिजली से ही ‎चलती हैं सिर्फ एक बटन दबाते ही चालू और एक बटन दबाते ही बंद।
    सृष्टि की हर एक चीज को, ग़ौर से देखने पर पता चलता है कि ये सब कुछ इतनी खूबसूरती से बनाया गया है कि बरबस ही ‎इसे बनाने वाले (परमेश्वर) के ज्ञान-विज्ञान और तकनीकी दक्षता का अहसास हो जाता है, और करोडो-अरबों साल हो गये सृष्टि ‎को बने हुए, लेकिन आजतक भी इसमें (जमीन, आसमान, चाँद, सूरज, सितारे, ब्रह्मांड) कोई कमी या खराबी नहीं आ सकी। ‎इंसान, ज्ञान-विज्ञान और तकनीकी दक्षता में अपने-आपको बहुत कुछ समझता है लेकिन उसके बावजूद, उसकी बनायी चीजों में ‎कुछ ना कुछ खराबी आती रहती है और कोई भी चीज, चाहे कितनी भी बेहतरीन बना दी जाये, उसकी खूब गारंटी दे दी जाये ‎कुछ साल गुजरने के बाद खराब हो ही जाती है। कहां परमेश्वर का ये अथाह ज्ञान-विज्ञान और तकनीकी दक्षता कि उसकी बनायी ‎किसी भी चीज में करोडो साल गुजरने पर भी कोई खराबी ना आ सकी, और कहाँ ये इंसान और उसका ज्ञान-विज्ञान और ‎तकनीकी दक्षता कि पूरी गारंटी देने के बाद भी कुछ साल में अच्छी से अच्छी चीज खराब हो ही जाती है। और बस परमेश्वर के ‎इसी अथाह ज्ञान-विज्ञान और तकनीकी दक्षता और उसकी महानता के आगे इंसान नतमस्तक हो जाता है।
    कुरान में कुछ इस तरह से है, ऐ लोगों तुम एक दिन जरूर मरोगे और कोई भी तुम्हें बचा नहीं सकेगा, तुम अगर सुरंग में भी ‎छुप जाओ, चारों तरफ फौज लगाकर किले में भी बंद हो जाओ मौत तुम्हें कहीं नहीं छोडेगी और मौत तुम्हें उसी परमेश्वर के ‎आदेश से आकर रहेगी जिसने तुम्हे जीवन दिया था। और फिर परमेश्वर तुमसे तुम्हारे कर्मों के बारे में सवाल करेगा, जो तुम ‎किया करते थे और फिर उन कर्मों के आधार पर ही फल पाओगे। परमेश्वर और उसका धर्म दोनों ही शाश्वत सत्य हैं। इंसान ‎अपने ज्ञान और तर्को से अपनी बात को सही ठहराने की कोशिश करता है, लेकिन मैं ऐसा दुस्साहस नहीं कर सकता, क्योंकि ‎धर्म का सच्चा ज्ञान परमेश्वर की कृपा से ही मिलता है। परमेश्वर से दुआ करता हूं कि हमें, सही ज्ञान, सत्य मार्ग, और ‎सतबुद्धि अता फरमाये, जिससे हम सच्चा धर्म अपनाकर उस पर चल सके। मैने अपनी जिंदग़ी में कितने ही लोगों को मरते हुए ‎देखा। कैसे-कैसे ताकतवर, बहादुर, बुद्धिजीवी, विलक्षण प्रतिभाओं के धनी, मौत के मुंह से खुद को बचा ना सके। जिन्होनें अपनी ‎जिंदग़ी में अपने साहस से पहाड तक को खोदकर रास्ते बना दिये, मौत के शिकंजे में फंसकर सिसक भी ना सके। वो बुद्धिजीवी, ‎जिन्हें अपनी प्रतिभा पर बडा विश्वास था, उनकी कोई भी तरक़ीब उन्हें मौत से बचा ना सकी, जिन्होनें अपने सामने किसी की ‎भी ना चलने दी, मौत के सामने उनकी एक ना चली। मौत ने उन्हें इस तरह से झिंझोडा कि बिल्कुल निर्जीव होकर, दुनिया से ‎रूख़सत हो गये। उन्हें कोई भी बचा ना सका। मौत उसी परमेश्वर (प्रकृति) के अधीन है जिसने हम सबको ये जीवन दिया है। ‎परमेश्वर (एक ऐसी शक्ति) जिसने सृष्टि बनाई, चांद-सूरज-सितारे, धरती-आकाश, इंसान, पशु-पक्षी, जीव-जन्तु आदि सब कुछ ‎बनाया और इंसान के सच्चे मार्गदर्शन के लिए अवतार पैदा किये जिन्होनें इंसान को सिर्फ अपने एक सृष्टि-रचयिता परमेश्वर के ‎बताये हुये तरीके से जिंदगी गुजारने का आदेश दिया। ‎
    मौत और ज़िंदग़ी का ये चक्र, इस धरती पर ना जाने कब से चल रहा है, ना जाने कितने जीव (मनुष्य, पशु-पक्षी, पेड-पौधे ‎आदि), इस धरती पर जन्म लेते हैं, और ना जाने कितने, मौत के मुंह में चले जाते हैं। सचमुच अ}hतिय है वो शक्ति, जिसने ‎जीवन-मृत्यु का ये चक्र रचा है, जाने कब से इस धरती पर ये चक्र चल रहा है, और कब तक चलता रहेगा। उसकी ही ‎इच्छानुरूप, मनुष्य, धरती पर आते रहेंगें और अपनी-अपनी ज़िंदग़ी, पूरी करके मौत के मुंह में समाते रहेंगें। इंसान के लिए, ‎सबसे अबूझ पहेली और आश्चर्यजनक सत्य, मौत का आना ही है, जिसने आज तक किसी को भी नहीं छोडा, कोई भी इसके ‎चंगुल से अपने अपको, बचा ना सका। इतना ज्ञान-विज्ञान, तकनीक, साधन-सम्पन्नता, सब कुछ होते हुए भी मौत एक ऐसा ‎शाश्वत सत्य है जिससे कोई भी पार ना पा सका।
    ऐ इंसान अगर तुम इस सारी सृष्टि को गौर से देखो तो इसके बनाने वाले की महानता के कायल हो जाओगे। और दिल यह कह ‎उठेगा कि इस अद्भुत सृष्टि को बनाने वाला सचमुच ही महान है। हिंदी की एक कविता बचपन में पढ़ी थी, जिसने सूरज चाँद ‎बनाया, जिसने तारों को चमकाया, जिसने फूलों को महकाया, जिसने सारा जगत बनाया, हम उस ईश्वर के ‎गुण गायें, उसे प्रेम से शीश झुकायें।
    एक अच्छा इंसान भलाई करने वालों को हमेशा याद रखता है। और जिस रब की कृपा से हमें ये अनमोल जीवन और सर्वगुण ‎सम्पन्न शरीर मिला है, हमें उस शक्ति का शुक्रिया अदा करना और उसकी आज्ञा का पालन करना चाहिए। ये अनमोल जीवन ‎इसलिए मिला है कि इसका सदुपयोग करके इसको सार्थक बनाया जाये। ‎

    अगर कहीं लिखने में कोई भी त्रुटि हो गई हो तो माफ करना और हो सके तो इस त्रुटि को सही कर देना। धन्यवाद।

    प्रतिक्रिया

  47. kamar ahmad
    मार्च 30, 2016 @ 15:26:41

    करोडो वर्षों के अथक परिश्रम, अनुसंधान से मनुष्य ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में इतना विकास कर सका है कि एक ‎शक्तिशाली राकेट से चाँद पर जा पहुंचा है, और फिर थोडी और प्रगति करके चाँद की कक्षा में 500 -1000 किग्रा. के ‎उपग्रह या इससे कुछ अधिक वजन के मौसम की जानकारी देने वाले उपग्रह ही वहां तक स्थापित कर सका है, मंगल ‎की परिक्रमा करने के लिए यान प्रक्षेपित कर पाया है। और अपनी इस उपलब्धि पर गर्व करता है। लेकिन जब हम ‎सृष्टि के रचयिता के ज्ञान-विज्ञान को देखते हैं तो हम हैरान हो जाते हैं कि करोडो वर्ष पहले जब इंसान को कुछ भी ‎ज्ञान नहीं था, उस वक्त भी उस परमेश्वर के पास ऐसा ज्ञान और विज्ञान था जिसके बल पर उसने पृथ्वी से भी ‎कई-कई गुणा भारी ग्रह दूर आकाश में इतनी-इतनी दूर स्थापित कर दिये कि इंसान उस दूरी का सही आंकलन भी ‎नहीं कर सकता। यहां तक की इतनी दूर प्रकाश को आने में भी करोडो-अरबों-खरबों साल तक लग जाते हैं। उस ‎परमेश्वर के इस ज्ञान-विज्ञान को देखकर, मन बरबस ही कह उठता है कि धन्य है वो शक्ति जिसने ये सृष्टि बनाई ‎और फिर शीश अपने आप ही सर्वश्रेष्ठ वैज्ञानिक (परमेश्वर) के सामने झुक जाता है।
    इंसान और परमेश्वर के ज्ञान-विज्ञान और तकनीकी दक्षता में कोई तुलना हो ही नही सकती। उदारहण के लिए, ‎इंसान रोशनी देने के लिए एक बल्ब तो बना सकता है लेकिन इतना बडा बल्ब नहीं बना सकता कि पूरी पृथ्वी को ‎रोशनी दे सके, लेकिन सूरज करोडो-अरबों वर्ष से नियमित रूप से इस संसार को गर्माहट और रोशनी दे रहा है और ‎उसमें कहीं कोई खराबी नहीं आयी और ना ही रिपेयर और सर्विसिंग की जरूरत पडी। इंसान पूरी मेहनत से मिट्टी ‎खोदकर एक नहर तो बना सकता है लेकिन एक समुद्र कभी नहीं बना सकता और ना ही समुद्र के पानी को खाली ‎कर सकता है। इंसान हिमालय जैसे पहाड नहीं बना सकता। सोना-चाँदी, हीरे-मोती, खनिज, तेल, आदि विविध प्रकार ‎की चीजों से ये धरती भरी पडी है। और ये सब इंसान ने नहीं बनायी। विज्ञान ये कहता है कि हर कार्य के पीछे कुछ ‎ना कुछ कारक (उर्जा, बल, शक्ति) अवश्य होता है, और भौतिक विज्ञान के अनुसार इतने बडे ब्रह्माँड और सृष्टि की ‎रचना के पीछे भी कुछ ना कुछ कारक जरूर है, उसे सर्वश्रेष्ठ वैज्ञानिक, प्रकृति, परमेश्वर आप कुछ भी कह सकते ‎हैं। ‎
    रिमोट से चलने वाली चीजें भी इंसान के ज्ञान-विज्ञान और तकनीकी दक्षता का एक नमूना है, जिस प्रकार रिमोट से ‎चलने वाली चीजें लगता है कि एक ही इशारे पर अपने-आप चल रही हैं परंतु इसके पीछे वो तकनीक बनाने वाला है ‎जिसने रिमोट का आविष्कार किया। अगर रिमोट की ये तकनीक विकसित ना हुई होती तो हमें आज तक इसका पता ‎ना चलता कि कोई वस्तु एक इशारे से भी चल सकती है। बिजली, ऊर्जा का ही एक रूप है, बडी से बडी फैक्टरी और ‎उसकी सारी मशीनें बिजली से ही चलती हैं सिर्फ एक बटन दबाते ही चालू और एक बटन दबाते ही बंद।
    सृष्टि की हर एक चीज को, ग़ौर से देखने पर पता चलता है कि ये सब कुछ इतनी खूबसूरती से बनाया गया है कि ‎बरबस ही इसे बनाने वाले (परमेश्वर) के ज्ञान-विज्ञान और तकनीकी दक्षता का अहसास हो जाता है, और करोडो-अरबों ‎साल हो गये सृष्टि को बने हुए, लेकिन आजतक भी इसमें (जमीन, आसमान, चाँद, सूरज, सितारे, ब्रह्मांड) कोई ‎कमी या खराबी नहीं आ सकी। इंसान, ज्ञान-विज्ञान और तकनीकी दक्षता में अपने-आपको बहुत कुछ समझता है ‎लेकिन उसके बावजूद, उसकी बनायी चीजों में कुछ ना कुछ खराबी आती रहती है और कोई भी चीज, चाहे कितनी भी ‎बेहतरीन बना दी जाये, उसकी खूब गारंटी दे दी जाये कुछ साल गुजरने के बाद खराब हो ही जाती है। कहां परमेश्वर ‎का ये अथाह ज्ञान-विज्ञान और तकनीकी दक्षता कि उसकी बनायी किसी भी चीज में करोडो साल गुजरने पर भी कोई ‎खराबी ना आ सकी, और कहाँ ये इंसान और उसका ज्ञान-विज्ञान और तकनीकी दक्षता कि पूरी गारंटी देने के बाद भी ‎कुछ साल में अच्छी से अच्छी चीज खराब हो ही जाती है। और बस परमेश्वर के इसी अथाह ज्ञान-विज्ञान और ‎तकनीकी दक्षता और उसकी महानता के आगे इंसान नतमस्तक हो जाता है।
    कुरान में कुछ इस तरह से है, ऐ लोगों तुम एक दिन जरूर मरोगे और कोई भी तुम्हें बचा नहीं सकेगा, तुम अगर ‎सुरंग में भी छुप जाओ, चारों तरफ फौज लगाकर किले में भी बंद हो जाओ मौत तुम्हें कहीं नहीं छोडेगी और मौत ‎तुम्हें उसी परमेश्वर के आदेश से आकर रहेगी जिसने तुम्हे जीवन दिया था। और फिर परमेश्वर तुमसे तुम्हारे कर्मों ‎के बारे में सवाल करेगा, जो तुम किया करते थे और फिर उन कर्मों के आधार पर ही फल पाओगे। परमेश्वर और ‎उसका धर्म दोनों ही शाश्वत सत्य हैं। इंसान अपने ज्ञान और तर्को से अपनी बात को सही ठहराने की कोशिश करता ‎है, लेकिन मैं ऐसा दुस्साहस नहीं कर सकता, क्योंकि धर्म का सच्चा ज्ञान परमेश्वर की कृपा से ही मिलता है। ‎परमेश्वर से दुआ करता हूं कि हमें, सही ज्ञान, सत्य मार्ग, और सतबुद्धि अता फरमाये, जिससे हम सच्चा धर्म ‎अपनाकर उस पर चल सके। मैने अपनी जिंदग़ी में कितने ही लोगों को मरते हुए देखा। कैसे-कैसे ताकतवर, बहादुर, ‎बुद्धिजीवी, विलक्षण प्रतिभाओं के धनी, मौत के मुंह से खुद को बचा ना सके। जिन्होनें अपनी जिंदग़ी में अपने ‎साहस से पहाड तक को खोदकर रास्ते बना दिये, मौत के शिकंजे में फंसकर सिसक भी ना सके। वो बुद्धिजीवी, ‎जिन्हें अपनी प्रतिभा पर बडा विश्वास था, उनकी कोई भी तरक़ीब उन्हें मौत से बचा ना सकी, जिन्होनें अपने सामने ‎किसी की भी ना चलने दी, मौत के सामने उनकी एक ना चली। मौत ने उन्हें इस तरह से झिंझोडा कि बिल्कुल ‎निर्जीव होकर, दुनिया से रूख़सत हो गये। उन्हें कोई भी बचा ना सका। मौत उसी परमेश्वर (प्रकृति) के अधीन है ‎जिसने हम सबको ये जीवन दिया है। परमेश्वर (एक ऐसी शक्ति) जिसने सृष्टि बनाई, चांद-सूरज-सितारे, धरती-‎आकाश, इंसान, पशु-पक्षी, जीव-जन्तु आदि सब कुछ बनाया और इंसान के सच्चे मार्गदर्शन के लिए अवतार पैदा ‎किये जिन्होनें इंसान को सिर्फ अपने एक सृष्टि-रचयिता परमेश्वर के बताये हुये तरीके से जिंदगी गुजारने का आदेश ‎दिया। ‎
    मौत और ज़िंदग़ी का ये चक्र, इस धरती पर ना जाने कब से चल रहा है, ना जाने कितने जीव (मनुष्य, पशु-पक्षी, ‎पेड-पौधे आदि), इस धरती पर जन्म लेते हैं, और ना जाने कितने, मौत के मुंह में चले जाते हैं। सचमुच अ}hतिय ‎है वो शक्ति, जिसने जीवन-मृत्यु का ये चक्र रचा है, जाने कब से इस धरती पर ये चक्र चल रहा है, और कब तक ‎चलता रहेगा। उसकी ही इच्छानुरूप, मनुष्य, धरती पर आते रहेंगें और अपनी-अपनी ज़िंदग़ी, पूरी करके मौत के मुंह ‎में समाते रहेंगें। इंसान के लिए, सबसे अबूझ पहेली और आश्चर्यजनक सत्य, मौत का आना ही है, जिसने आज ‎तक किसी को भी नहीं छोडा, कोई भी इसके चंगुल से अपने अपको, बचा ना सका। इतना ज्ञान-विज्ञान, तकनीक, ‎साधन-सम्पन्नता, सब कुछ होते हुए भी मौत एक ऐसा शाश्वत सत्य है जिससे कोई भी पार ना पा सका।
    ऐ इंसान अगर तुम इस सारी सृष्टि को गौर से देखो तो इसके बनाने वाले की महानता के कायल हो जाओगे। और ‎दिल यह कह उठेगा कि इस अद्भुत सृष्टि को बनाने वाला सचमुच ही महान है। हिंदी की एक कविता बचपन में ‎पढ़ी थी, जिसने सूरज चाँद बनाया, जिसने तारों को चमकाया, जिसने फूलों को महकाया, जिसने सारा ‎जगत बनाया, हम उस ईश्वर के गुण गायें, उसे प्रेम से शीश झुकायें।
    एक अच्छा इंसान भलाई करने वालों को हमेशा याद रखता है। और जिस रब की कृपा से हमें ये अनमोल जीवन ‎और सर्वगुण सम्पन्न शरीर मिला है, हमें उस शक्ति का शुक्रिया अदा करना और उसकी आज्ञा का पालन करना ‎चाहिए। ये अनमोल जीवन इसलिए मिला है कि इसका सदुपयोग करके इसको सार्थक बनाया जाये। ‎
    कानून की एक ही डिग्री लेकर भी, वकील अपनी-अपनी इच्छा के अनुरूप काम करते हैं। अपनी फीस लेकर कोई दोषी ‎को सजा दिलाने की कोशिश करता है और कोई दोषी को बचाने की कोशिश करता है। दोषी को सजा दिलाने वाले और ‎उसको बचाने वाले कभी बराबर नहीं हो सकते। उसी तरह अंधा आदमी और आँखों वाला कभी भी बराबर नहीं हो ‎सकते। क्योंकि अंधा आदमी, इस संसार को देख ही नहीं सकता जिसमें वो रहता है, सिर्फ अपनी कल्पनाओं के ‎सहारे, कुछ सोच सकता है। क्या उसकी कल्पनाओं से दुनिया की वास्तविकता का पता चल सकता है, कभी नहीं। ‎
    बिल्कुल ठीक इसी प्रकार, सच बोलने वाला और झूठ बोलने वाला भी कभी बराबर नहीं हो सकता और परमेश्वर को ‎मानने वाला और परमेश्वर को ना मानने वाला, भी कभी बराबर नहीं हो सकता। क्योंकि जो परमेश्वर में, विश्वास ‎करता है, वह, उसकी हर बात पर विश्वास करता है, और जिसको परमेश्वर में विश्वास ही नहीं, वह उसकी बात पर ‎क्या विश्वास करेगा। जिस प्रकार अपने माँ-बाप का सम्मान करने वाला, उनकी हर बात का सम्मान करता है, उसी ‎प्रकार विश्वास करने वाला, हर बात का विश्वास करता है, परंतु जिसको विश्वास ही नहीं, उसे कैसे विश्वास दिलाया ‎जा सकता है। ‎

    यें मेरे अपने विचार हैं, इन विचारों में किसी भी त्रुटि के लिए माफी चाहता हूं।

    प्रतिक्रिया

  48. विशाल
    अगस्त 30, 2016 @ 04:14:07

    प्रिये लेखक जिस तरह आप बातें कर रहे हैं मैं आप को सही तरीके से समझ पा रहा हूँ असल मई यह है आप थोड़े से भटक गये हैं आप के मन मई अशांति सी है इस लिए आप का यह कहना आप के स्वाम के समझ से बहार है मैं आप को एक छोटी सी राइ देता हूँ अगर आप अपने खुद को संतुस्ट रखना चाहते है तो कृपया पवित्र भगवत गीता मन लगा कर पढ़े धर्म के विरुद्ध न पढ़े, क्योकि किसी बी अच्छे वाकिये पे विररुद्ध रह कर उस पे बहस करना ठीक नहीं होता वह अच्छा बी बुरा है लगता है, मनो, कला अक्षर भैंस बराबर।

    प्रतिक्रिया

    • योगेन्द्र जोशी
      अगस्त 30, 2016 @ 07:09:15

      प्रत्युत्तर में –
      टिप्पणी एवं राय के लिए धन्यवाद। प्रायः हर मनुष्य उस व्यक्ति को भटका मानता है जिसकी बातों से वह स्वयं असहमत होता है। अतः आपके कथन पर मुझे आश्चर्य नहीं।

      प्रतिक्रिया

  49. स्फोटाचार्य आशीष आनन्द
    सितम्बर 01, 2016 @ 16:39:01

    इसे पूरा पढ़ें । यदि आप ऐसा दुनियाँ चाहते हैं-तो इसे लाइक करें और शेयर करें।
    “ना होगी गरीबी बीमारी, अलौकिक होंगे नर व नारी।
    प्रेम लीला ही जग में होगा, ना होगी कोई तैयारी।।
    हे तथाकथित ब्रह्मस्वरूप जीवात्मा, आत्मैक्य ! हे आर्य इश्लामादि हे आत्मा, रूह, सोलादि ! सुनो ! सुनो ! लगभग सोलह खरब वर्ष से सभी कल्पों में, सभी युगों में, सभी कल्पों एवं सभी मन्वन्तरों में, यहाँ तक कि सृष्टि के निर्माण के समय से हि त्रिदेवो में वैमनष्यता है, अशांति है! परमपिता ब्रह्मा के मानस पुत्र ने पिता की अवमानना की, श्रापित हुआ! भगवान ब्रह्मा भी श्रापित हुए ! भगवान ब्रह्मा के पुत्र सहिंता के निर्माता राजा दक्ष ने भगवान शंकर का विरोध कर अपनी पुत्री को आत्महत्या करने पर मजबूर किया और भगवान शंकर को रुद्रता पर उतारू होने को विवश किया ! भगवान विष्णु लाचार क्यों ? आखिर सनातन से ही यह त्रिदेवीय परंपरा चली आ रही है और सनातन से महर्षि मानवों को उपदेश एवं ज्ञान देते चले आये हैं। सबों ने उनकी आराधना की ! पृथ्वी पर शांति स्थापित करने का प्रयास किया, परन्तु उसके विपरीत ही होता चला गया ! वह तो कलियुग नहीं था तो भी उतना दुःख और अशांति क्यों हुई, वैमनष्यता क्यों हुई?
    यही तो रहस्य है इस ब्रह्माण्ड का, जिसके कारण अभी तक शांति स्थापित नहीं हुआ है ! अभी तक किसी संतो या भक्तो ने त्रिदेव आदि के दुखो को दूर करने का नहीं सोचा ! न ही ईश्वरस्वरुप के परम सत्य को जान सका ! महर्षि भृगु जैसे महायोगी को भी विष्णु को लात मारकर ईश्वर होने की प्रमाणिकता खोजनी पड़ी थी अर्थात उन्होंने भी ईश्वर का ज्ञान(आत्मज्ञान) प्राप्त नहीं किया ! केवल अपने और जीव के कल्याण के लिए ही पूजा, यज्ञ , हवन, आदि होता रहा, परन्तु स्थिति जस-की-तस बनी हुई है! श्री राम आये मार-काट कर धर्म की स्थापना कर चले गए फिर ज्यो का त्यों क्यों हो गया, श्रीकृष्ण आये मार-काट कर “यदा-यदा हि धर्मस्य …..” कहकर धर्म की स्थापना कर चले गए पुनः वैसा ही हो गया ! भगवान श्रीकृष्ण ने “यदा-यदा” क्यों कहा? सर्वदाहि धर्मस्य क्यों नहीं कहा ? यदि इसे आप लीला भी कहे तो यह स्पष्ट है कि जब रचना / लीला / आदर्श ही वैमनष्यताओ से भरी एवं मार-धार से भरपूर है तो उससे सृजन, पथप्रदर्शन अथवा जीवन शांतिमय कैसे हो सकती है ! गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी लिखा है कि “ईश्वर एवं माया के संवाद-विवाद में सृष्टि का प्रकटीकरण हुआ है !” मैंने इसे सत्य ही देखा– “हे माँ शक्तिरूप प्रकृति प्रबल परा में समाई तू, है यह लीला ब्रह्मवत्सल की प्रकृति बनकर आई तू !” हे ब्रह्मस्वरुप मानव शांतिमय जीवन एवं सृजन के लिए तो शांतिमय एवं प्रेममय लीला हि सर्वोपरि हो सकता है ! इसलिए हमसब मिलकर “सत्यधर्म” द्वारा आयोजित इस महायज्ञ में शामिल होकर ईश्वर से प्रार्थना करे या प्रेम की लड़ाई लड़े कि इस सृष्टि का प्रकटीकरण केवल संवाद में ही हो ताकि वैमनाश्यताओ का जन्म ही न हो सके , शंकर और माता सती का मिलन हो सके और तभी मानव एवं ब्रह्माण्ड का कल्याण संभव है ! अब ईश्वर ने “सत्यधर्म” के द्वारा “सर्वदाहि धर्मस्य “ कह कर “दिव्ययुग” की स्थापना का संकेत सन्देश दिया है, क्योंकि ईश्वर ने “अनंता” के द्वारा अध्यात्म की रहस्यों की गुत्थी को सुलझाकर जीवात्मा हेतु ईश्वर प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त कर दिया है और “महाब्रह्माण्डीय चेतना परब्रह्म महायज्ञ (आत्मज्ञान यज्ञ)” (भावनात्मक एवं हवानात्मक ) न भूतो महायज्ञ का आयोजन किया गया है ! इस महायज्ञ में आध्यात्मिक एवं वैज्ञानिक कसौटी से अभिभूत “आर्गुमेंटल दिव्यदृष्टि” द्वारा वह एक “सर्वशक्तिमान” का यथार्थ आत्मदर्शन एवं आत्मज्ञान आलोकित किया जाएगा जिससे जीवात्मा (मानव) अन्तः एवं बाह्य दोनों में इस परमसत्ता के दिव्यस्वरूपो का आत्मदर्शन, आत्मानुभूति एवं महानशांति की अनुभूति प्राप्त कर सकेंगे , जो इस ब्रह्माण्ड का सर्वप्रथम घटना होना है ! अतः आप सब के सर्वांगीण सहयोग की पूर्ण आवश्यकता है ! आत्मैक्यता को प्राप्त करने, त्रिदेवो का दुःख दूर करने, सम्पूर्ण मानव जाति को अलौकिक बनाने तथा सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में शांति स्थापना करने तथा “दिव्ययुग” की स्थापना हेतु दिव्यनेता के बनने का मार्ग प्रशस्त करें एवं महाशांति, महासुख एवं महानंद को प्राप्त करें ! इस महायज्ञ का मूल लक्ष्य — आध्यात्मिक क्रांति, भारत को विश्व गुरु सिद्ध करना , विज्ञान-अध्यात्म की समता को पूर्णसिद्ध करना , सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में शांति स्थापना हेतु मानक से निवेदन नहीं बल्कि ईश्वर से लड़ाई लड़ना ताकि सृष्टि का प्रकटीकरण ईश्वर-माया के संवाद-विवाद में नहीं अपितु सिर्फ और सिर्फ संवाद में हो ! स्वामी विवेकानंद, महागुरु श्रीअरविंद एवं भगवान रजनीश की सद्ईच्छा की पूर्ति करना, अन्य संतो के अधूरे कार्य को पूरा करना, ईश्वरीय पहेलियों को सुलझाकर जनमानस को आर्गुमेंटल दिव्यदृष्टि द्वारा ईश्वर का दर्शन कराना ! तत्पश्चात् “सत्यधर्म ” के शाश्वत सनातन ज्ञान से आत्मैक्यता को हृदयंगम कर चतुर्युग से मुक्ति एवं अलौकिक जीवन स्थापित करना।
    “ना होगी गरीबी बीमारी, अलौकिक होंगे नर व नारी।
    प्रेम लीला ही जग में होगा, ना होगी कोई तैयारी।।
    विनीत – स्फोटाचार्य

    प्रतिक्रिया

    • योगेन्द्र जोशी
      सितम्बर 10, 2016 @ 18:48:11

      प्रत्युत्तर में –
      “ना होगी गरीबी बीमारी, अलौकिक होंगे नर व नारी।
      प्रेम लीला ही जग में होगा, ना होगी कोई तैयारी।।”
      यह कामना मनुष्य अनादि काल से करता आया है। परंतु आज तक वस्तुस्थिति में उतार-चढ़ाव होते रहे हैं, किंतु कुल मिलाकर चीजें जस की तस हैं। आगे की कुछ हो पायेगा इसकी संभावना मुझे तो नहीं नहीं दिखती। धन्य हैं वे जो उसकी संभावना देखते हैं।

      प्रतिक्रिया

  50. करण वैष्णव
    सितम्बर 10, 2016 @ 15:38:20

    उत्तर यही है ।
    यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।
    अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥७॥
    परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।
    धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥८॥

    प्रतिक्रिया

  51. SHIVAAY
    अक्टूबर 11, 2016 @ 11:55:44

    जब भगवान् देखना हो बता देना
    और अब किसी से ऐसो बात मत कहना
    ॐ नमः
    शिवाय्

    प्रतिक्रिया

    • योगेन्द्र जोशी
      अक्टूबर 11, 2016 @ 12:35:19

      क्षमा करें, मैं समझ नहीं पा रहा कि आपको यह अधिकार किस सामाजिक संस्था या न्यायालय ने दिया है कि आप अपना “आदेश” मुझ पर थोपें।

      आपको पूरा अधिकार है कि आप मुझसे १०१ प्रतिशत असहमत हों। किंतु वही अधिकार मुझे भी मिला है।

      यदि मेरे कथनों में वैधानिक दृष्टि से कुछ भी आपत्तिजनक हो तो आप सक्षम अधिकारियों से शिकायत कर सकते हैं। “वर्ड्प्रेस” संस्था से तो शिकायत कर ही दीजिये।

      जहां तक भगवान् के दर्शन का सवाल है लगता है आपको उनके दर्शन हो चुके हैं। उनके दर्शन के बाद भी मुझ जैसे तुच्छ जीव की बातों से आप विचलित हो रहे हैं। यह तो आश्चर्यजनक है।

      मेरे भगवद्दर्शन की चिन्ता आपको नहीं करनी चाहिए। दुनिया की करीब ७ अरब की जनसंख्या में अनेक होंगे जो भगवद्दर्शन से वंचित होंगे: उन्हें दर्शन करा दें तो उनका उपकार ही होगा और आपको पुण्यलाभ होगा!

      अनेकशः धन्यवाद।

      प्रतिक्रिया

  52. kalki
    अक्टूबर 22, 2016 @ 21:34:36

    Me aa chuka Hu “””kaliyug ka ant karne …me bhgwan kalki “””incarnation of lord Vishnu …is Dharti pr jald Ki pralay aane wala h

    प्रतिक्रिया

    • योगेन्द्र जोशी
      अक्टूबर 23, 2016 @ 17:55:01

      प्रत्युत्तर में टिप्पणी:
      प्रलय आने वाला है यह तो बन रही परिस्थितियां संकेत दे रही हैं यह में अनुभव कर रहा हूं। सीमित संसाधनों वाली इस धरा पर निरंतर तकनीकी विकास होता रहेगा यह एक वैज्ञानिक के नाते मैं नहीं स्वीकार सकता। चरम पर पहुंचने के बाद देत-सवेर अवनति आरभ होनी ही है।
      प्रलय वस्तुतः कौन लायेगा यह आपको शायद मालूम हो; मैं नहीं जानता।

      प्रतिक्रिया

  53. sachdechetana
    अक्टूबर 27, 2016 @ 07:21:40

    सभी स्नेही मानसप्रेमी साधकजनों को हमारी स्नेहमयी राम राम |

    जय सियाराम जय सियाराम जय सियाराम जय जय सियाराम

    श्रीरामचरितमानस – बालकाण्ड दोहा संख्या 49 से आगे …

    चौपाई :

    संभु समय तेहि रामहि देखा । उपजा हियँ अति हरषु बिसेषा ॥
    भरि लोचन छबिसिंधु निहारी । कुसमय जानि न कीन्हि चिन्हारी ॥
    जय सच्चिदानंद जग पावन । अस कहि चलेउ मनोज नसावन ॥
    चले जात सिव सती समेता । पुनि पुनि पुलकत कृपानिकेता ॥
    सतीं सो दसा संभु कै देखी । उर उपजा संदेहु बिसेषी ॥
    संकरु जगतबंद्य जगदीसा । सुर नर मुनि सब नावत सीसा ॥
    तिन्ह नृपसुतहि कीन्ह परनामा । कहि सच्चिदानंद परधामा ॥
    भए मगन छबि तासु बिलोकी । अजहुँ प्रीति उर रहति न रोकी ॥

    भावार्थ:-श्री शिवजी ने उसी अवसर पर श्री रामजी को देखा और उनके हृदय में बहुत भारी आनंद उत्पन्न हुआ। उन शोभा के समुद्र (श्री रामचंद्रजी) को शिवजी ने नेत्र भरकर देखा, परन्तु अवसर ठीक न जानकर परिचय नहीं किया ॥ जगत्‌ को पवित्र करने वाले सच्चिदानंद की जय हो, इस प्रकार कहकर कामदेव का नाश करने वाले श्री शिवजी चल पड़े। कृपानिधान शिवजी बार-बार आनंद से पुलकित होते हुए सतीजी के साथ चले जा रहे थे ॥ सतीजी ने शंकरजी की वह दशा देखी तो उनके मन में बड़ा संदेह उत्पन्न हो गया। (वे मन ही मन कहने लगीं कि) शंकरजी की सारा जगत्‌ वंदना करता है, वे जगत्‌ के ईश्वर हैं, देवता, मनुष्य, मुनि सब उनके प्रति सिर नवाते हैं॥ उन्होंने एक राजपुत्र को सच्चिदानंद परमधाम कहकर प्रणाम किया और उसकी शोभा देखकर वे इतने प्रेममग्न हो गए कि अब तक उनके हृदय में प्रीति रोकने से भी नहीं रुकती ॥

    दोहा :

    *ब्रह्म जो ब्यापक बिरज अज अकल अनीह अभेद* ।
    *सो कि देह धरि होइ नर जाहि न जानत बेद* ॥50॥

    भावार्थ:- *जो ब्रह्म सर्वव्यापक, मायारहित, अजन्मा, अगोचर, इच्छारहित और भेदरहित है और जिसे वेद भी नहीं जानते, क्या वह देह धारण करके मनुष्य हो सकता है ?* ॥50॥

    प्रतिक्रिया

  54. Ram Krishna
    नवम्बर 25, 2016 @ 21:01:58

    It is better to reject GOT than accept in wrong way. It is very vast topic. Can’t explain with such discussion. There are so many scientific way to know about what is going on behind the scene. There is always something. If you have scientific thinking then it is very nice. Blind faith is bad thing.

    प्रतिक्रिया

  55. राजकुमार खरवार रामकोला बाड न०४कुशीनगर(u.p.)
    नवम्बर 26, 2016 @ 02:06:45

    आप कैसे सोच सकते है।
    आप गीता का पुन:और बार बार पढे़।
    सायद आप का जवाब मिलेगा।
    इस जीवन मे आपने गीता पढी़।
    और उसपर बिचार किया ये ही
    गीता के लिए बड़ी बात है।

    प्रतिक्रिया

  56. Shivam Sharma
    दिसम्बर 07, 2016 @ 10:19:45

    Krishna ki bhavishyawani aaj sacch ho rhi h
    Kalyug ke 4 parts hai or abi 1 part hai.. Kalki puraan me likha h 4th part me vishnu ka 10th avtaar kalki janam lega… Please pehle ek details ko check kia kro fir post kia kro.. Brahma is science… Or tum science ka gyaan dene se pehle hrr cheez ka pta kro.. Shayad kuch smj aaye… Jai Shree raam

    प्रतिक्रिया

  57. sanjeev kumar
    दिसम्बर 19, 2016 @ 06:32:40

    मनमना व्यवहार करने वाले सदैव दूसरों के लिए
    घातक और स्वयं के लिए भी आत्मघाती सिद्ध होते हैं !

    प्रतिक्रिया

  58. Harshit
    दिसम्बर 23, 2016 @ 21:49:29

    Ek baar Bhagwat Geeta fir se padho balak ho buddhi se Abhi aap,
    Bramh param tatva ap jaise logo ki samjh se bahar h jo har baat pr tark vitark karte h.
    Duniya k mahan vegyanik Stephen healing ne bhi Ye mana h Spasth roop se nahi keh sakte pr Ye satya hai ki duniya m koi energy Toh h jo samgra Vishwa ko sanchalit kar rahi h Aur sintificly bhi Ye prove ho chuka h ki OM khud m Ek cosmic energy hai. Apko kya lagta h 5000 saal pehle itna zatil maha kabya Mahabharat kaise likha Gaya. ap iss par vichar bhi kaise kar sakte h ki Ye vastav m hua bhi tha ya nahi. Murkho ki tarah tark Mat karo.
    Geeta Ek baar fir se padho samjho.

    प्रतिक्रिया

  59. Harshit
    दिसम्बर 23, 2016 @ 21:59:41

    Ek kaam kariye meditation ka marg apnaiye aap.
    Buddhi bhi thk hogi Aur Bhagwan ke prati astha badegi ap kehte ho Bhagwan h ya nahi jo energy h jo sare Vishwa ko chala rahi hai..
    Wo hi Ishwar hai..
    Aur Ek kaam Aur kariyega Hollywood ki Ek movie hai apki samjh mai nahi ayegi waise Toh par Firr bhi dekhna MATRIX 8 10 baar dekhna samjh m ayegi usme hint milegi Apko.. Aur sabse Accha math meditation ka h..
    Ishwar shwayam ap mai basta h. Usse dhundo acche Karm karo khud b khud mil jayege wo tumhe.. satya ko praman ki avshyakta nahi hoti..
    Ishwar hai har jagah ap Aur hum jaise kitne ayege Aur kitne jayege kuch bhakti ka Marg dhundhege kuch tark karege kuch durachari honge. Ate rahege jate rahege par ishwar sada hi rahega samay ke ant tak Aur uske baad bhi.
    Usse Tumhare Manne ya na Manne se frk nahi padega.
    😄

    प्रतिक्रिया

  60. Harshit
    दिसम्बर 23, 2016 @ 22:04:41

    Vegyanik drasti rakhne walo hasi ati hai ap logo par..
    Ye proved hai ki Vedas hazaro hazar saal pehle likhe hue hai.
    Mahabharat 5000 saal se bhi adhik purana h. Itna zatil mahakavya uss samay m kisne likha ap likhne Gaye the Jabki sabse purani sabhyata hi 3000 BC ki hai….
    vichar kijiye ki uss samay itni typical kahani kaise likhi gayi har character har cheez Apni jagah vyvastith thi.. vichar kare

    प्रतिक्रिया

  61. Harshit
    दिसम्बर 24, 2016 @ 00:17:50

    Mere pass apke Ishwar ke prati agyaan Roopi andhkar ko door karne k liye Bohot se tathya h.
    Aur vastavikta bhi darsa sakta hu Apko par m chahta hu ki aap tark karne ki jagah unhe khud m dhundhne ka prayas kare prakriti m dhundhe jeev jantuo m bramhand m ve to sarvatra hai.
    Apne kaha ki ve mahabharat k paschat shabhya samaj ki sthapna karke Kyu nahi Gaye ve to sahi sthapna karke Gaye the parantu manushya un mulyo ka nirvah nahi kar saka.
    Isliye wo apne ant ki or nirantar chalayman hai. Apne dushkarmo ki vajah se. Sabse pehle aap Apne gyaan mai bradhi kijiye kitabe padhiye puran padhiye tathyo ko samjhne ki kosis kijiye Aur Geeta ko dubara sahi dhang se padhiye Geeta mai samgra vishwa ke prashno ka utter diya Gaya hai.

    Dhanyawad- Joshi ji

    प्रतिक्रिया

  62. Satyendra Sharma
    जनवरी 17, 2017 @ 11:02:17

    very good thought

    प्रतिक्रिया

  63. Dhaval mesariya
    जनवरी 26, 2017 @ 18:31:13

    Apne dharm me bare me ye sab galat likha. Sahi me aap dharm jante nahi hai. Aur aap dharm ke bare me ye sab jo galat likhte hai usee kalyug hi kahte hai.agar aap dharm jante nahi hai to uska galat prachar bhi mat Karie. Jay shri Krishna jay shri Krishna .Radhe Radhe

    प्रतिक्रिया

    • योगेन्द्र जोशी
      फरवरी 05, 2017 @ 12:48:50

      मुझे यह जानकर खुशी हुई कि आप इतने योग्य हैं कि कौन धर्मज्ञ है कौन नहीं इसका स्वघोषित निर्णायक बन सकते हैं । मैं किसी धर्म का ज्ञाता हूं यह दावा नहीं कभी नहीं करता । हां किसी प्रसंग अथवा विषय के बारे में उन विचारों को प्रस्तुत करता हूं जो मेरी समझ में आते हैं। हो सकता है कि अपने जल्पज्ञान के कारण मैं विषय को उतनी गहाराई से और ठीक-ठीक न समझ पाता जितना विद्वज्जन समझने में सक्षम होते हैं। इसके लिए में सभी धर्मवेत्ताओं के प्रति क्षमाप्रार्थी हूं । तथापि अपने विचारों को स्पष्ट करने का अधिकार तो रखता ही हूं । एक प्रश्न तो मेरे मन में उठता ही है कि विश्व में पूर्णतः भिन्न-भिन्न इतने धर्म क्यों है। ऊपरी तौर पर तो सभी में परस्पर असंगति देखने को मिलती है ।

      प्रतिक्रिया

  64. Devkinandan
    मार्च 01, 2017 @ 09:49:44

    Mere pyaro bhagwan ko dekha tho jaa sakta par dikhaya nhi jaa sakta …agar yakeen nhi hota tho ganga maa aisa kya hein us jal me jo usme kabhi keede nhi lagte chahe vo kitne gandi ho…jiska pata scientists nhi laga paye…charles naam us scientists ka jo kehta tha bhagwan nhi h lekin jab uska antim samay aya tho uska kehna tha ki bhagwan h …aap sabhi har dharm ke baare me bata sakte ho ki ye dharm kab se suru huwa lekin tum sanatan(hindu) dharm ke baare me nhi bata sakte kyoke ve shri hari narayan ne hi banaya tha

    प्रतिक्रिया

  65. धनपतिउपाध्याय
    मार्च 18, 2017 @ 21:59:12

    भाईजी,
    सादर नमस्कार। आपके विचारों पर मैं बहुत सहमत हूँ। पर आपको भयंकर मानसिक भ्रमर और उलझनों के बीच देखकर मुझे तरस आ गया।
    श्रद्धेय भाईजी, ईश्वर के बारे आन्तराष्ट्रीय विचारों को विशेष रूप से विश्लेषण करने पर स्पष्ट हो जाता है कि वह सर्वश्रेष्ठ, सर्वज्ञ, सर्व समर्थ, सत्य, नित्य, दिव्य, अलौकिक, अजर, अमर, अविनाशी, अशरिरी, सर्व गुणों और शक्ति के असीमित सागर, सर्वोपरि,परम सुन्दर, सत्चितानन्द स्वरूप , ज्योतिस्वरूप यर्व आत्माऔं के परम ज्योति, परमप्रिय परमप्त्मा यही तो सर्व मान्य है। न वे केवल हिन्दूके न हि मुसलमान के और नहि कोई धर्म सम्प्रदाय एवं विशेष भाषीके अधिनायक है। वे तो समस्त जगत के परम हितकारी सक्षम पर साक्षी, सर्वाधिनायक तथा सर्वोच्च सत्ता है। जो कलि काल के अन्त में पतित,भ्रष्टाचारी, महापापी,आसुरीवृत्ति धारी मनुष्यों को सतमार्ग देने अवतरित होते हैं। जिन्हों ने अपने वचन निभाने धरती पर अवतरित होकर महाभारत युद्ध के पहले अपने सुकर्म प्रारंभ कर दिया है।
    कुम्भकर्ण के निन्द्रा त्याग कर दुनिया में चारों ओर देखिए जरा। जरूर आपको नजर आजाएगा। उन पिडीतौं, अबलाऔं, शोषितों के चितकार सुनाई नहीं दे रहा है मेरे भाई, जिनके मांस और लहुसे खेल रहे हैं अभिमानी व्यभिचारी दानव सम्प्रदाय के लोग। शक्ति और सम्पत्ति से मूसल और मिसाइल के वल पर सभ्यता का पतन के लिए उन्माद है लोग। इस अदूर भविष्य के महाभारत के बाद राजकुमार श्री कृष्ण का जन्म होने ही वाला है। जिनके राजअभिषेश के बाद विक्रमजीत सम्वत 01.01.01 सुरू होगा।
    श्रीकृष्ण का जन्म सतयुग के प्रारम्भ में हुआ था और उनके जीवन वृतांत आवश्यक अनुसार द्वापर के अन्त जब परिस्थिति बिगड़ने लगी तो अतित काल के सुखद परिस्थिति, स्वर्ग के सुखमय दुनिया के स्मरण करते अतित (past tense) की घटित घटनाओं का वर्णन किया गया था।

    प्रतिक्रिया

    • योगेन्द्र जोशी
      मार्च 23, 2017 @ 14:33:07

      श्रीमान् उपध्याय जी, धन्यवाद विस्तृत टिप्पणी के लिए।
      मेरी जानकारी के अनुसार श्री कृष्ण सतयुग में नहीं हुए थे, बल्कि द्वापर में हुए थे। त्रेता में श्री राम हुए थे।
      विश्व में अलग-अलग मतों को मानने वाले अपने मत को सत्य का प्रतिबिम्बन मानते हैं और दूसरों के मतों को मिथ्या घोषित करते हैं। ऐसा करना स्वाभाविक मानवीय कमजोरी है और क्षम्य है।
      आपको संभवतः ज्ञात हो कि जैन एवं बौद्ध धर्म में ईश्वर की सत्ता मानी नहीं गयी है। उनके विचारों को कैसे सहते हैं आप?
      यह भी रोचक है कि महात्मा बुद्ध को भगवान् का पूर्णावतार (नौवां) कहा जाता है। लेकिन वे स्वयं भगवान् को नहीं मानते थे। इस विरोधाभास की आप कैसे व्याख्या करते हैं?
      आपके प्रति मेरी शुभाकांक्षाएं।

      प्रतिक्रिया

  66. Jai Dwivedi
    अप्रैल 06, 2017 @ 13:51:05

    यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।
    अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥७॥
    परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।
    धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥८॥
    भावार्थः जब जब धर्म की हानि होने लगती है और अधर्म आगे बढ़ने लगता है, तब तब मैं स्वयं की सृष्टि करता हूं, अर्थात् जन्म लेता हूं । सज्जनों की रक्षा एवं दुष्टों के विनाश और धर्म की पुनःस्थापना के लिए मैं विभिन्न युगों (कालों) मैं अवतरित होता हूं ।
    यक़ीनन ” अर्थ” और “शब्दार्थ” में वही फर्क फोटा हे जो “ब्यक्ति” और “मनुष्य” में होता हे।
    अब इस श्लोक का अर्थ मेरे शब्दों से समझने की कोसिस करे अर्थ का बिस्तार इतना लंबा हे की आप पढ़ नहीं पाएंगे फिर भी आप को में सरल शब्दों में छोटा करके समझाने की कोसिस करूँगा
    हजारों बर्ष पहले जब मनुष्य बिखरे हुए थे मनुस्यों समाज की स्थापना कर एक जुट किया गया। तथा समाज को भये मुक्त जीबन जीने और न्याय देने के लिए मुखिया बनाये गए जो आगे जाकर राजाओ में परिबर्तित हो गए , जो जनता के हित एबम बाहरी आक्रमण से जनता की रक्षा करते थे। जिसमे सुर्यबंसी,अगनिबंस, चंद्र्बंसि और ना जाने कितने छत्रिय राजा कहलाये। धीरे धीरे राजाओ में आपसी कलह के कारन राजे छोटे छोटे टुकड़ों में बट गए। ये राजा प्रजा की रक्षा करने के बजाए खुद उन्ह लूटने तथा उनपर अत्याचार करने लगे। इनके अत्याचारों तथा घमंड को दूर करने के लिए इस भारत भूमि पर भारी आक्रमण हुए और ,तमाम राजाओ को परास्त कर मुस्लिम राजो की इस्थापना हुई।
    जब मुसलमान राजाओ का अत्याचार बढ़ने लगा तो एक बार फिर अंग्रेज इस धरती पे आये और तमाम मुस्लिम राजों को नष्ठ कर दिया। जब अंग्रजों का अत्याचार बढ़ा तो देश की जनता के लोग एकत्रित हुए और अंग्रजों को देश से खदेड़ दिया और लोकतंत्र की स्थापना हुई और एक जन पार्टी बनी जो कांग्रेश कहलायी और जब कांग्रेश की बिचारधारा धर्म विरोधी हुई तो आज मोदी जी के नेतृत्व में बी जे पी आ गयी. आगे भी ना जाने कौन कौन आते रहेगे .अब आप इन शब्दों से गीता के उस श्लोक को समझने की कोसिस करें जिम भगवन कृष्ण ने धरती पे आने और सृजन की बात कही हे याद रखिये ईश्वर स्वम कभी नहीं आते। जितने भी अबतार इस धरती पे हुए हे एक एक बार ही हुए हे कोई दो बार अबतरित नहीं हुए। इसी धरती से किसी को अंस स्वरुप निमित्त बनाया जाता हे इसलिए जीबन चक्र और इतिहास बदलता रहता हे।
    और समस्त संसार में ईश्वर का यही स्वरूप देखने को मिलता हे — गीता सार में समस्त गीता का अर्थ समाहित हे जिसमे कहा हे की “परिबर्तन ही संसार का नियम हे”
    अब आप भली भांति समझ गए होंगे की ऊपर लिखे हुए श्लोक का शब्दार्थ क्या है।

    प्रतिक्रिया

  67. Babli Chauhan
    अप्रैल 10, 2017 @ 17:57:47

    jo yaha sab keh rahe hai vo kitna sach hai or kitna nahi mai kuch nahi janti par mai bhagvan mai bht astha rakhti hu par ek bat samjh nahi ki ham kisi ki help kare or ek bar nahi bahut bar phir bhi vo log hamare sath bura kyu karte kya bhagvan hame achcha karne ki saja dete hai kuch bure logo ki vajhe sai ham future mai achche logo ki help karne sai bhi piche hat jate ki na jane ye bhi hamare bad kesa behave kare na jane bhagvan ki ye kaisi maya hai ye jwab mujhe nahi mil pa raha itne saalo sai kuch samjh nahi aata ki bhagvan hai ya nahi

    प्रतिक्रिया

    • योगेन्द्र जोशी
      अप्रैल 16, 2017 @ 16:57:08

      ऐसे अनेक प्रश्न हैं जिनका उत्तर मेरे पास तो नहीं ही है, शायद किसी के पास नहीं हैं। यह जरूर है कि बहुत से लोग अपने अज्ञान को छिपाते नहीं। लेकिन ऐसे लोगों की कमीं भी नहीं जो दावा करते हैं कि वे जानकारी रखते हैं। भगवान/अल्लाह/गॉड – सर्वशक्तिमान सृष्टिकर्ता – में आस्था रखने से भी उत्तर नहीं मिलते।
      अधिकांश हिन्दू मानते हैं कि संसार में भोगे जा रहे सुख-दुःख पूर्व जन्मों के फल होते हैं। प्रथम पूर्व जन्म कब हुआ इसका उत्तर है अनन्तकाल पहले (अजन्मा) और तभी से प्राणी उन कर्मों को भोगता आ रहा है। यह ऐसा कथन है जिस पर आगे कुछ कह नहीं सकते। बौद्ध तथा जैन र्दशन में ईश्वर की सत्ता है ही नहीं। वहां भी कर्म ही प्रधान हैं और जीव से अनंतकाल से चिपके हुए रह्ते हैं। बौद्ध दर्शन के अनुसार सत्कर्मों करके एवं पापकर्मों से बचकर जीव उत्तरोत्तर आत्मिक उत्थान पाता है और अंत में शून्य में विलीन हो जाता है (अस्तित्व की समाप्ति)। जैन मत में जीव मुक्तात्मा के रूप में अस्तित्व में बना रहता है। इनके विपरीत इस्लाम के अनुसार अल्लाह ने हर मनुष्य (ग़ुलाम) को पहली बार पैदा किया है और उसके सुख-दुःख अल्लाह की मरजी से हैं। वह जिसे चाहे सुख देता है या दुःख, बस आपको उसकी इबादत करना है। सभी दर्शन अपनी-अपनी बातें करते हैं और उनमें आपसी साम्य नहीं है। कौन सही है? यह सब व्यक्तिगत आस्था पर निर्भर करता है और अप्रमाण्य है। सभी अपने विचार को सही कहते हैं।

      प्रतिक्रिया

  68. Abhishek Kumar Mishra
    मई 08, 2017 @ 11:00:16

    Maine abhi abhi iswar ko dekha …. Apko shayad ye mazak lage …per ye satya hai ….main abhi srif 18 saal ka hu …koi vidwan nhi …per abhi abhi jab main apka post padh raha tha mujhe aap me iswar ka bodh hua …kyuki aap unke diye hua gyan ko hi to hmko bata rahe hain…wah hm sab ke andar hain ….per ye do aakh khol kar dekhne se nhi dekhne wale aakh band karo man ke aakh kholo wah aapko jarur dekhenge …unke aadesh se hi to main ye tipni kar raha hu.,……………..har har mahadeo

    प्रतिक्रिया

    • योगेन्द्र जोशी
      मई 08, 2017 @ 17:51:35

      धन्यवाद। आप ने शायद इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि मैंने ईश्वर के अस्तित्व पर कोई टिप्पणी नहीं की। मैने श्रीमद्भगवद्गीता के इन वचनों “… धर्मसंस्थापनार्थाय …” पर टिप्पणी की है। मेरी समझ में महाभारत युद्ध के बाद कलियुग के आरंभ से ही धर्म का ह्रास होना शुरू हो गया। मेरे मत में हम अब उस युग में प्रवेश कर चुके हैं जहां व्यक्तिगत हित साधना ही मनुष्य का ध्येय रह गया है। श्रीगीता के वचन मुझे उतने ही सत्य/असत्य लगते हैं जिनता मोदीजी का काले धन को लेकर दावे। अपने-अपने विचार हैं, अपने अपने मत। कौन सही कौन गलत इस निर्णायक बनने का अधिकारी कौन? शुभकामना।

      प्रतिक्रिया

  69. Lokesh Shrivastava
    मई 15, 2017 @ 11:12:23

    महोदय आप शांति से बैठ कर इतना बढ़ा लेख लिख सके और आपको अपने प्राणों की कोई चिंता नही है।
    अर्थात यदि उस स्तिथि तक तक कि आप केवल अपने और अपने परिवार के प्राण बचाने के लिए दुराचारियो से भागते न फिरें (आपकी जान के लाले न पड़ जाएं) न ही आपके धन को कोई डाकू लूट रहा है और न ही साहब आपका बलात्कार हो रहा है। आप पूर्ण रूप से सुरक्षित अपने निवास स्थान से आपके आफिस चले जाते होंगे। और सभी जगह हर प्रकार से सुरक्षित होंगे। फिर आप कैसे कह सकते हैं कि धर्म का नाश हो रहा है और कलयुग चरम पर है!!!!

    सामाजिक कुरीति और सामाजिक बुराइयों को आप अधर्म से जोड़ रहे हैं। इन बुराईयो को दूर करने के लिए उत्तम शासन व्यवस्था की आवश्यकता है न कि ईश्वर के अवतार लेने की।
    आज भी भूखे इंसान को कोई न कोई भोजन करा ही देता है।
    भगवान के नाम पे पैसा मांगने वालों को कुछ लोग “भगवान के नाम पे ही” पैसा दे ही देते हैं।
    साहब आप तो मस्त निर्भय हो कर अपने घर मे बैठ कर चाय कॉफी पीते हुए लेख लिख रहे है।
    ये उस चक्रधारी की ही कृपा है।

    प्रतिक्रिया

    • योगेन्द्र जोशी
      मई 15, 2017 @ 12:38:27

      बहुत-बहुत धन्यवाद आपको अपने मत से मुझे अवगत कराने के लिए। सर्वत्र सब कुछ ठीक चल रहा है यह जानकर संतोष होता है। पुनश्च धन्यवाद एवं शुभेच्छा। -योगेन्द्र जोशी

      प्रतिक्रिया

  70. ओउम् कुमार
    मई 25, 2017 @ 21:53:11

    mai apne vichar me simple ik trk de raha svi bhaiyo ko, Aap sb jante h hmare pitag the ya h avi, unke v pitag the, aur unke u pitag the yani hmare dadag fir uske dadag ise trh se aage badhiye; HMsblog ik point create krte h hmlogo ne apne prdada ya uski upr ki pidhi nhi dekhi lekin ye saty h ki hm h unki vjh se .. unhi ki pirhi se hmara v jnm hua ye santific v soch skte h/ Lekin kya ye hm bol skte h manne ke taur pe v ki hamari koi pirhi nhi thi dadag ke dadag ,
    ye kahna glt hoga .. Aur mai sochta hun Hmare dhrm me kahi ik ik bat suraj chand ki trh saty h ;
    logo me agr dhrm se viswas uth gya to sreaam ktleaam hogi koi n kisi ki ijat ko klankit krne se sarmayega
    ।यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।
    अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥७॥
    परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।
    धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥८॥
    (श्रीमद्भगवद्गीता, अध्याय ४)
    (यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिः भवति भारत, अभि-उत्थानम् अधर्मस्य तदा आत्मानं सृजामि अहम् । परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुस्-कृताम्, धर्म-संस्थापन-अर्थाय सम्भवामि युगे युगे ।)
    (टिप्पणीः श्रीमद्भगवद्गीता वस्तुतः महाकाव्य महाभारत के भीष्मपर्व का एक अंश है; इसके १८ अध्याय भीष्मपर्व के क्रमशः अध्याय २५ से ४२ हैं ।)
    भावार्थः जब जब धर्म की हानि होने लगती है और अधर्म आगे बढ़ने लगता है, तब तब मैं स्वयं की सृष्टि करता हूं, अर्थात् जन्म लेता हूं । सज्जनों की रक्षा एवं दुष्टों के विनाश और धर्म की पुनःस्थापना के लिए मैं विभिन्न युगों (कालों) मैं अवतरित होता

    kitni bhawpoorn maryadit bat kahi gyi h,
    lekin mahodayg aisi bate kahkr hm dhrm ke prti logo ka viswas kmjor kr rhe,
    Apitu Yadypi hme is bat ki grav honi chahiye ki hmlogo komahabharat jaisi Amritwani granth h, jo duniya ko smjhne ke liye kafi h;
    Hmare dhrm me kahi gyi hr ik bat karunamy aur Vinmrta se bhawpoorn h , jo ki aaj ke smaj ke liye vardan h;

    प्रतिक्रिया

  71. Ashutosh tiwari
    जून 07, 2017 @ 16:24:55

    My dear Yogendra joshi ji
    Shree krishnaa ne pahle hi ye kah diyaa tha ki is sansaar mai paapa bahut jyaada badh gyaa hai aur mahabharat bhi isi liye hua lekin jab mahabhart khtm hua aur jab yudhister kaa raajya abhishek ho raha tha tab Gandhaari ne aakar shree kroshnaa ko is yudh kaa doshi thahraya aur kaha ki aap mai to is yudhh ko rokne ki shakti thi par aapne ye nagi kiyaa aur aapne mere 100 Putro ki bali le li to mai aaj to tumhe bhi shraap deti hu ki jis prakar aaj hastinaapur dukh aur aasuo mai dubaa hiaa hai usi prakaar tumhaari dwarkaa nagri bhi samandar mai doob jaayegi aur tumhaari ankho ke saamne tumhaare yaadav vansh kaa naash ho jayegaa aur kisi vaadhya ke haatho tumhaari bhi mrityu ho jayegi ye ek putraheen, naitraheen maata ka shraap hai aur shree krishnaa ne gandhaari ke saamne is shraap ki swikaar kiyaa tha uar phir unhe bataya ki isme aapka koi dosh nahi hai yaadav vansh mai bhi paap bahut teji se badh raha hai aur usi ke chalte yadav vansh kaa vinaash bhi sunischit hai…
    So my dear sir agar shree krishna ne jab hastinapur ko paap se mukt karwaya to yaadav vansh ko kaise chord dete…

    प्रतिक्रिया

  72. Vinod kumar
    जून 25, 2017 @ 01:41:34

    aapki ek ek baat satya he.mera sochna he ki ye sab baaten krishan ji ne nahi kahi ,ye sabhi baaten un logon ne likh di jinhone god ki rachna kari ,kuch raajaon ko ,apni faayde ke liye

    प्रतिक्रिया

    • योगेन्द्र जोशी
      जून 25, 2017 @ 10:53:57

      पौराणिक ग्रंथों में जो कुछ भी लिखा गया है उसके पक्ष अथवा विपक्ष में बहुत कुछ ऐसा नहीं उपलब्ध है जिससे बातें पुख्ता हो सकें। कुल मिलाकर अपने-अपने विश्वास की चीजें बन जाती हैं वे।

      प्रतिक्रिया

  73. sourav
    अगस्त 11, 2017 @ 14:22:54

    kya Krishna bhagwan tha?

    प्रतिक्रिया

    • योगेन्द्र जोशी
      अगस्त 12, 2017 @ 21:49:11

      यह और इस सरीखे अनेक सवाल हैं जिनका उत्तर मेरे पास क्या किसी के पास भी नहीं होगा!
      आपके सवाल का उत्तर दे पाना उतना ही कठिन है जितना इन सवालों का कि क्या भगवान/ईश्वर/अल्लाह/गॉड जैसी कोई सत्ता भी होती है, या क्या पुनर्जन्म होता है, या स्वर्ग-नरक होते हैं, इत्यादि।

      प्रतिक्रिया

  74. सौमित्र सिंह
    अगस्त 14, 2017 @ 10:42:32

    एक शब्द में कहूँ तो तुमसे बड़ा चुतियापा वाला आदमी मैंने कही नही देखा।
    अपने पक्ष में 2 4 कमेंट पाके ज्यादा खुश मत हो क्योंकि ईश्वर के वजूद पे सवाल करना ही तुम्हारी मूर्खता और ज्ञान का परिचायक है।

    प्रतिक्रिया

    • योगेन्द्र जोशी
      अगस्त 14, 2017 @ 13:26:56

      इस प्रकार की टिप्पणियां भी कभी-कभी पढ़ने को मिल जाती हैं जिसमें सामान्य शिष्टाचार के शब्द भी प्रयुक्त नहीं होते। इनको “अप्रूव” करने में मुझे कोई हिचक नहीं होती।
      मतभेद तो मानव समाज में होते ही हैं। उसे तो पग-पग पर हर कोई देखता है। मतभेद न होते तो कहीं कोई संघर्ष ही न होता। सब ओर शांति ही शांति होती।
      इतना कहना समीचीन होगा कि मुझसे अधिक नाखुशी तो महात्मा बुद्ध के प्रति दिखाई जानी चाहिए, जिन्होंने आत्मा-परमात्मा के अस्तित्व को ही नकार दिया था और अपने शिष्यों को यही उपदेश दिया था। आज उनके अनुयायी करोड़ों में हैं। मेरी तो कोई हैसियत ही नहीं है। दो-चार लोग मेरे ब्लॉग पढ़ भी लें तो वह कुछ भी माने नहीं रखता।
      और असल बात तो यह है कि मैंने अमुक ब्लॉग-प्रविष्ठि में ईश्वर के अस्तित्व पर तो कुछ बात ही नहीं की है। कोई न समझ पाया तो मैं कुछ नहीं कर सकता। मैंने दो-एक श्लोकों की अपनी समझ से व्याख्या की है।
      अंत में यह बताना उचित होगा कि मेरी सेहत पर किसी भी टिप्पणी का कोई असर नहीं होता। असर होने लगे तो जीना मुश्किल हो जाए। ६८-७० वर्ष की उम्र में बच्चों की तरह खुश या नाराज होने लगूं यह मुझे शोभा नहीं देता।

      प्रतिक्रिया

  75. KRISHANA DEV KUMAR (K D)
    जनवरी 08, 2018 @ 00:27:06

    Jise Dekha ja sakta usme pariwartan nischit hoga hi ye duniya pariwartansil
    h har grah annonasray sambandh ke adhar par chalti h kuchh bhi prithwi par
    hoga prakirtik kisi na kisi rup me control
    kar leti h
    Jayada janne ke liye
    MO -9631820996

    प्रतिक्रिया

  76. सत्यवेन्द्र यादव
    जनवरी 22, 2018 @ 21:54:39

    भगवान श्री कृष्ण के जाने का समय हो रहा था क्योंकि कलयुग का आगमन का समय था और कलयुग ने मांगा था कि मेरे युग मे कोई भी देवी देवता पृथ्वी पर नही रहेंगे और न ही दर्शन देगे
    और रही बात यादवो की लड़ने की
    तो सिर्फ एक ही सत्य है
    ज्ञानी ये जाने ये कथा और जाने अज्ञान
    यादव को यादव मारे या मारे भगवान
    तीजा कोई न टिके ऐसी इनकी शान

    जंगल मे ही जाकर उनकी मृत्यु होनी थी वो भी धोके से क्योकि उन्होंने वरदान दिया था और प्रभु भगवान श्री कृष्ण ने कभी भी अपने भक्तों को निराश नही किया भीष्म की इच्छा पूर्ति के लिए उन्होंने महाभारत में चक्र भी उठाया था

    प्रतिक्रिया

  77. Neeraj kaushal
    मार्च 04, 2018 @ 16:34:55

    Nothing to vichar like this you mentioned .
    ज्यादा विचार करने से खुद की क्षमताये तभी भड़ती है अगर आप सही विचार कर रहे हो ।
    You know little knowledge is dangerous thing n u know when you when you r drawing it in any form to explain your listenings you feel some margins marked from your mind right or wrong right that’s the first you stop , if u r flowing without knowing to swim your sure die , इसका मतलब यही के विचारों के माध्यम से कुछ पाना है तो विचार का अध्यन कर कर्म करो, बिना उसके सब व्यर्थ है क्योंकि आखिर तुम उस भीड़ से बात कर रहे हो जो वही सोचती है जो तुम बोल रहे हो , परंतु उसमे कोई तुम्हारा व्यक्तित्व अनुभव नहीं सिर्फ विचार आया है और परिणाम बाहर चलते रहने से नहीं निकलेगा , परिणाम तुम्हारे विचार की गहराई तक जाने की इच्छा से जुड़ा है , परिश्रम के बिना अनुमान नहीं लगाया जा सकता , गहिरा अध्यन जरूरी है नहीं तोह जैसे विचार वैसी ही मनोदशा ओर कुछ जानकर कुछ भी करनी आदत से बचना मुश्किल हो जाएगा।

    प्रतिक्रिया

  78. SanjayJ
    मार्च 05, 2018 @ 12:40:25

    Please do visit a Brahma Kumaris Center in your vicinity. I have found a lot of answers for many such questions which commonly concern or affect us. Besides, the experience of truth in the form of a meditative pure and peaceful environment has been a blessing and a gift to take back. Wish you well. Regards. Om Shanti.

    प्रतिक्रिया

  79. राजेश कुमार सैणी
    मार्च 09, 2018 @ 11:31:52

    जब जब मेरी आत्मा में अधर्म का विस्तार होगा और मेरा मन
    मेरी ही आत्मा के प्रति ग्लानि से भर जाएगा तब मेरी ही आत्मा में परम आत्मा को जानने कि इच्छा होगी तब मेरी आत्मा को परमात्मा मार्गदर्शन देंगे ऐसा हर बार होता है महर्षि बाल्मीकि, गोस्वामी तुलसीदास ओर अनेकानेक संत
    इस बात के परिचायक है

    प्रतिक्रिया

  80. Rashmi
    अप्रैल 01, 2018 @ 10:40:40

    Apko kyy lgta h ek yudh k bad humesa k liye dhram ki isthapana ho jyegi, nuclear bomb ka effct b alwys ni rhta h. .. Esa hota to lord krishna inte avtar q lete… Dhrm ki isthapana huye ti yudhister thn parikshit butt aftr death of krishna kalyug strtd.thts yudh nt only fr dharam isthapana but also fr women dignity, rgts of pandava which were snatchd by dhuryodhan. Lord krishna ko hum 1000janam leke b ni smj skte h… Geeta me bht axii bate h. Way to survive. I hv read bible, buddhist holy book butt nve gt tht knwldg whch i gain frm bhagwat geeta. Rspct it….

    प्रतिक्रिया

  81. हीरा सिंह
    अप्रैल 27, 2018 @ 07:36:28

    प्रिय जोशी जी,
    क्या आप नहीं जानते कि धर्म और धर्म शास्त्र विवाद से परे हैं। इनमें लिखा गया एक- एक वाक्य स्वयं भगवान द्वारा कहा गया है। आपमें इतना दुस्साहस कहां से आ गया कि आप स्वयं श्री भगवान के श्रीमुख से उद्घाटित वचनों पर प्रश्नचिन्ह लगाएं। ऐसा मैं नहीं वरन वे लोग कहेंगे जिनके हित प्रभावित होंगे। दरअसल कपोल-कल्पना में पारंगत कुछ चालाक लोगों ने धर्म की आड़ में अपनी दुकान चमकाने के लिए समाज में तमाम भ्रांतियां फैलाकर उसे दिशाहीन करके ज्ञान और विज्ञान का मार्ग अवरूद्ध कर दिया। जिसके परिणामस्वरूप सैकड़ों वर्षों तक गुलामी झेलनी पड़ी।आज भी कुछ स्वार्थि मनुष्यों ने अनर्गल प्रलाप करके इस देश की अल्पशिक्षित जनता को भृमित किया हुआ है। ताकि उनकी मिश्री-मलाई निर्बाध रूप से चलती रहे।

    प्रतिक्रिया

    • योगेन्द्र जोशी
      अप्रैल 27, 2018 @ 13:12:08

      क्षमा करें कि मैंने कहीं भी इस बात पर जोर नहीं डाला है कि मेरे विचारों को स्वीकारें।
      लेकिन उसके विपरीत आप मुझ पर अपने विचार थोप रहे हैं। आप चाह्ते है कि जो आप सोचते हैं, मानते हैं, जिनमें आपको आस्था है वह मैं भी मानूं।
      मैं आपके विश्वास को चुनौती नहीं देता हूं, उसकी आवश्यकता नहीं देखता। लेकिन वही परम सत्य है यह दूसरा मनुष्य माने आपकी यह जिद सम्मान के योग्य नहीं।
      इस धरती पर तमाम मत-मतांतर देखने को मिलते हैं और कुछ लोग अपने मत के प्रति इतना अहंभाव पाल लेते हैं कि दूसरे के विचार सह भी नहीं पाते।
      दूसरों के विचार मत स्वीकारें – हरगिज न मानें, परंतु उसे लेकर तीखी टिप्पणी न करने की उदारता तो बरत ही सकते हैंं। धन्यवाद।

      प्रतिक्रिया

      • हीरा सिंह
        अप्रैल 27, 2018 @ 14:27:28

        शायद आप मेरा मंतव्य जान नहीं पाए। मेरा कथन उनके लिए था जिन्होंने धर्म के नाम पर अधर्म को प्रश्रय दिया।ज्ञान के नाम पर अज्ञान को बढ़ावा दिया। और सीधे सादे लोगों को अंधविश्वास के अंधेरे में धकेल दिया। अपने तुच्छ स्वार्थ की पूर्ति हेतु समाज में वैमनस्य पैदा किया।

  82. Shreyans
    मई 24, 2018 @ 20:36:13

    Bhagvan kalki iss kaliyug ka udhar karenge.aur shri krishna jaise mahan vyakti ki baat hum joothi nahi thera sakte

    प्रतिक्रिया

  83. Amit Anchal Mishra
    जून 11, 2018 @ 12:40:32

    इश्वर एक हैं जोकि प्रकाश स्वरूप हैं ज्यादा जानना है तो http://brahmakumaris.org/ या Peace of mind TV channel देखें

    प्रतिक्रिया

  84. पंकज
    अगस्त 19, 2018 @ 22:12:57

    कार्य कारण न्याय सिद्धांत के अनुसार बिना कार्य के कारण नहीं हो सकता, अर्थात जीव और जगत है, तो उसका निर्माता भी है, वृक्ष है तो उसका मूल बीज भी होगा, घट है तो उसका कारण भी है.
    ईश्वर सभी कार्यो का मूल कारण है.
    वेदों उपनिषद में ईश्वर के विषय में स्पष्ट प्रमाण हैं तनिक अध्ययन करें.

    प्रतिक्रिया

  85. trimendiratta
    अगस्त 26, 2018 @ 09:28:41

    भगवान् कहाँ है – कहीं नहीं – पर है..तुम मे है- मुझ मे है – हम सब मे है.. किसी में कम- किसी में ज्यादा.. उसी को सार्थक करो..माना कि भगवन में आस्था रख्मे से आशा की किरण मिलती है उससे हमारा आभामंडल विकसित होकर हर नकारात्मक ऊर्जा का प्रतिरोध करता है, परन्तु सार्थक / निरर्थक भविष्य का निर्माण तो मनुष्य स्वयं करता है.

    प्रतिक्रिया

    • योगेन्द्र जोशी
      सितम्बर 02, 2018 @ 18:10:24

      हर व्यक्ति भगवान का वर्णन अपने अपने तरीके से करता है। और रोचक यह है कि वे आपस में संगति नहींं रखते। जैसे इस्लाम के अनुसार अल्लाह (जिसे वे भगवान नहीं कहते) सातवें स्तर के स्वर्ग में सोने के सिंहासन पर बैठा रहता है। वहीं पर कुरान की स्वर्णाक्षरों में लिखित मूल प्रति भी रखी हुई है। ऐसा विवरण अन्य धर्मावलंबी नहीं स्वीकारेंगे। बौद्ध धर्मावलंबी ईश्वर की सत्ता को ही नहीं स्वीकारते। किसकी आस्था को सत्यपरक माना जाए?
      यों मैंने ईश्वर के अस्तित्व के बारे में कुछ नहीं लिखा है। मैंने बस यह कहा है कि वह हो नहीं पाया जो होना चहिए था (मेरे अनुसार)।

      प्रतिक्रिया

  86. Gajanan Bhagwan Nalband
    अगस्त 29, 2018 @ 23:35:23

    Yadi aapante ho Mahabharat yoodha hua thaa, aur Bhagwan Shree Krusna ki mukhya bhumika thi.

    Matalab Bhagwan hai

    100% hai

    JAY SHREE RAM

    प्रतिक्रिया

    • योगेन्द्र जोशी
      सितम्बर 16, 2018 @ 17:11:58

      भगवान हैं या नहीं इसकी विवेचना मैंने नहीं की है। मैंने केवल अपना यह विचार प्रस्तुत किया है कि वह नहीं हो सका जो महाभारत युद्ध के बाद होना चाहिए था, अर्थात् धर्म की स्थापना नहीं हो पाई।

      ईश्वर के अस्तित्व के सवाल पर यह प्रश्न उठता है कि विश्व में अनेक अनीश्वरवादी भी हैं। अगर वे ईश्वर में विश्वास न करते होंं तो परेशान होने की जरूरत क्या है? अविश्वासी को ही तो उस अविश्वास की लाभ-हानि का भागीदार होना पड़ेगा। आप क्यों परेशान हों तब?

      प्रतिक्रिया

  87. मुकेश अग्निहोत्री
    सितम्बर 02, 2018 @ 05:27:41

    दरअसल यह लेख ईसाई धर्म में परिवर्तन कराने हेतु एक प्रचार मात्र है.

    प्रतिक्रिया

    • योगेन्द्र जोशी
      सितम्बर 16, 2018 @ 17:19:40

      समझ में नहीं आता कि “ईसाई धर्म के प्रवर्तक” का निष्कर्ष किस आधार पर निकाल लिया, महोदय? ईसाई धर्म का उल्लेख तो कहीं नहीं किया है।
      कहने को तो इस्लाम, यहूदी, बौद्ध आदि किसी अन्य धर्म की बात भी की जा सकती थी।

      प्रतिक्रिया

  88. Rajesh Pathania
    सितम्बर 29, 2018 @ 07:30:19

    शर्मा जी आपकी हर बात का जवाब गीता में ही है…आप अधर्म किसे कहते है ये तो आप जाने पर उस समय धर्म की बहुत हानि हुई थी…आप मुझे बताये की उसके बाद कितने लोगो ने अपनी बहु को अपने सामने नंगा किया कोण अपना राजपाठ हारा और कितने कुलों का नाश हुआ शायद एक भी नही ….मुझे लगता है आप गीता ध्यान से नही पड़ते अन्यथा आपके मन में ऐसे प्रश्न नही आते….

    प्रतिक्रिया

    • योगेन्द्र जोशी
      सितम्बर 29, 2018 @ 21:35:00

      टिप्पणी के लिए धन्यवाद।
      ध्यान दिला दूं कि मैं “शर्मा” नहीं हूं। मेरा नाम योगेन्द्र प्रसाद जोशी है जिसका मध्य पद मैं सामान्यतः नहीं लिखता।
      मैं यह कभी नहीं कहता कि लोग मेरी बात मानें और न ही ऐसी कोई चाहत रखता हूं। कोई मुझसे सहमत हो तो ठीक और असहमत हो तो भी ठीक।
      किसी के विचारों को अपने अनुकूल ढालने की मेरी कोई इच्छा नहीं है। हां कोई विचार मेरे मन में उठता है तो उसे ब्लॉग में लिखता हूं यह सोचते हुए नहीं कि अन्य जन मेरी बात पर “वाह” करें। उनकी मर्जी।
      जैसे आपके अपने विचार आपके लिए स्वीकार्य हैं वैसे ही मेरे विचार मेरे लिए हैं। यदि मेरी बातों से किसी का दिल दुखे तो खेद व्यक्त करता हूं, पर यह नहीं समझ पाता कि इसमें दिल दुखने की बात ही क्या है।

      प्रतिक्रिया

  89. विनोद
    नवम्बर 16, 2018 @ 09:53:12

    समय के चक्र से कोई नही बच पाया।सबसे बलवान समय है।जो बातें भगवत गीता मे कही गयी वही हो भी रहा है।
    चारो युग एक चक्र है जिसमे किसी का वश नही है।ना देव का ना दानव का।वो चलते रहेंगे।किसी भी बात की अति ठीक नही है इस पृथ्वी मे पाप दिन प्रतिदिन अति हो रहा है तो इसका अंत भी जरूरी है।और होगा भी।
    जिसे भगवान पर भरोसा ना हो वो मृत्यु पर भरोसा कर सकता है कटु सत्य है।सूर्य देव पर भरोसा कर सकता है जो हमे हमारे शरीर के हिसाब धूप दे रहे है।चन्द्रमा शीतलता।सब सत्य है।गीता के उपदेशों को मांन लो भगवान श्रीकृष्ण है या नही पता चल जाएगा

    प्रतिक्रिया

  90. Sk
    दिसम्बर 04, 2018 @ 08:57:22

    योगेन्द्र जोशी जी
    आपने कभी ठंडक को देखा है? नही न। उन्हें केवल महसूस किया जा सकता है। लेकिन इसका मतलब यह नही है कि ठंड होती ही नही। उसी प्रकार ईश्वर को महसूस किया जा सकता है ।
    Ok

    प्रतिक्रिया

    • योगेन्द्र जोशी
      दिसम्बर 04, 2018 @ 13:17:30

      आपकी टिप्पणी पर प्रत्युतर देने से कोई मकसद नहीं सिद्ध होता है क्योंकि आपके कथनानुसार भगवान के अस्तित्व को केवल अनुभव किया जा सकता है जैसे ठंडक। किसी व्यक्ति को अनुभव करो, अनुभव करो, के उपदेशत्मक वचन कहे जाएं तो वह अनुभव करने लगेगा यह शायद नहीं होता, क्योंकि अनुभव निनान्त व्यक्तिगत क्रिया है। अनुभूति को किसी अन्य को दिया नहीं जा सकता जैसे भौतिक वस्तुएं दी जा सकती हैं।

      बहुत से अनुभव किसी को होते हैं परंतु हर किसी को नहीं होते। किसी-किसी अनुभव पर लोग मनोचिकित्सक के पास भी पहुंच जाते है।

      एक बात विचारणीय है: चिकित्सा क्षेत्र में ऐसे मामलों का जिक्र भी मिलता है जिसमें किसी व्यक्ति को ठड-गर्मी या पीड़ा का अनुभव होता ही नहीं। यह एक अति-असामान्य शारीरिक दोष है। इस बारे में आप इंटरनेट खंगालें तो अधिक और विश्वसनीय जानकारी जुटा सकते हैं।

      लगे हाथ आपको यह बताना चाहूंगा कि विज्ञान के अनुसार ठंडक का अपना कोई अस्तित्व नहीं होता। अस्तित्व होता है गरमी का अर्थात् ऊर्जा का और उसी के भाव-अभाव से गरमी-ठंडक की अनुभूति जुड़ी होती हैं। गरमी का अभव ठंडक का एहसास देता है।

      इतना और याद दिला दूं कि मैने अपनी पोस्ट में ईश्वर के अस्तित्व पर सवाल नहीं उठाया है। मैंने इतना भर कहा है कि महाभारत के युद्ध के बाद कलियुग का आरंभ हुआ था और धर्म की स्थिति और दयनीय हो गई। धर्म की स्थापना कहां हो पाई जो होना चाहिए था?

      धारणा अपनी-अपनी। मैं आपकी धारणा पर प्रश्न नहीं उठाऊंगा।

      प्रतिक्रिया

  91. गर्वित लूथरा
    मार्च 21, 2019 @ 22:56:28

    भ्राता जी इस श्लोक का अर्थ है कि जब जब धर्म का नाश हो तब तब मैं इस धरती पर जन्म लू ऐसी उन्होंने अपनी इच्छा व्यक्त की , जैसे हम कई बार कहते है कि मेरा अग्ला जन्म भी इसी धरती पर हो । तो यह उन्होंने अपनी इच्छा प्रकट की परंतु कुछ लोगो ने इसमें बिगाड़ किया ओर परिणाम आज समाज में राधा जी को श्री कृष्ण की प्रेमिका बताते है और इस श्लोक के माध्यम से कहते है की श्री कृष्ण बार बार जन्म लेंगे परंतु ये सब मिथ्या बाते है इससे पहले 26 कल युग बीत गए और यह 27वा कल युग है . अगर कोई ईश्वर के बारे में जानना चाहता है तो मै आपको प्रमाण सहित ईश्वर की सत्ता को आपके समक्ष प्रस्तुत करने को तत्पर हूं ।

    प्रतिक्रिया

  92. Soniya Dhama
    अप्रैल 12, 2019 @ 16:11:40

    Sir aap 1 bar bramha kumaris center pr Jaye waha Aapke sbhi swalo me jwab milenge

    प्रतिक्रिया

    • योगेन्द्र जोशी
      अप्रैल 12, 2019 @ 19:58:32

      सलाह के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद। शुभकामनाएं।

      प्रतिक्रिया

      • संजय झु
        अप्रैल 15, 2019 @ 16:20:05

        ब्रह्मकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय के किसी भी सेंटर पर ईश्वरीय ज्ञान और योग की सुखद अनुभूति स्पष्ट उपलब्ध है. इससे बड़ा भाग्य और बड़ी प्राप्ति हम आत्माओं के लिए और कुछ भी नहीं. अपना भाग्य बनाने का यही एक सच्चा, सुलभ, सरल और सम्पूर्ण साधन है. आत्मा का यथार्थ ज्ञान परम्परा परमात्मा द्वारा समर्पित बहनें और भाइयों के माध्यम से सरल और यथार्थ उपलब्ध है. इस समय कलयुग की कठिन और अज्ञान अंधकार से विमुख और गुमरहों के लिए आस्था और विश्वास का यही एक ठिकाना अनुभव में है. सबसे अधिक इस बात की संतुष्टि है की यह निहसवार्थ सेवा निहशुल्क विश्व भर में सभी के लिए समता से उपलब्ध हैं. ईश्वर, भगवान एक है. वे सभी आत्माओं के परम पिता हैं, सत्य हैं. शुभकामना.

      • योगेन्द्र जोशी
        अप्रैल 15, 2019 @ 20:22:23

        सलाह के लिए धन्यवाद।
        किंतु इस प्रकार के किसी भी आध्यात्मिक संगठन में मेरी कोई रुचि नहीं है। क्षमा करें।

  93. SUSHAN BISWAKARMA
    अप्रैल 18, 2019 @ 07:40:23

    Aap ne Jo likha hai,read karke ayesa lagta hai Aap Ko or bhaut kuch Janna jaruri,Aap hawan ke Lila nahi jante ho,Bhagwan ka mirtu kyow huwakiskaran huwa ? Ye sab Janne ke liye jaruri hai,Aap khoj kijye, tabhi yesa bat Ko dalyega thik hai .Bhagwan ka Avtar Abhi bhi huwa hai but Aap nahi jante ho, Satpal Ji Maharaj samai ke mahan purush hai .

    प्रतिक्रिया

    • योगेन्द्र जोशी
      अप्रैल 18, 2019 @ 11:51:37

      सलाह के लिए धन्यवाद।
      आस्था ऐसी वस्तु नहीं है कि कहीं से खरीदी जा सके। सभी लोग अलग-अलग प्रकार की आस्था के साथ जीते हैं। कोई किसी एक मत में आस्था रखता है तो कोई पूर्णतः दूसरे मत में। ऐसा न होता तो दुनिया में इतने प्रकार के मत, संप्रदाय, धर्म न होते।
      अतः आपकी आस्था मुझे भी मान्य हो आवश्यक नहीं। क्षमा करें। शुभेच्छा।

      प्रतिक्रिया

  94. Mani arora
    अप्रैल 18, 2019 @ 13:29:42

    Mujhe lagta hai appko or appki khei baat par samarthan dene vale logo par agyanta ka parda hai, app or appke samarthak abhi tak andhere me ji rhe hai or adharm ka saat de rhe hai appki baat ko samrthan dekar, meri kahi baat ka bura nahi mane, shayad appko or gyan ki jarurt hai,. App sab jo ishwar ke astitava par sandhe krte hai unhe ek baar ”’BHAVISHAYA PURAAN ” Padni chahiye…. Ishwar app ko sadbhudhi de, app ka kalyan kre…

    प्रतिक्रिया

    • योगेन्द्र जोशी
      अप्रैल 18, 2019 @ 14:54:51

      धन्यवाद टिप्पणी के लिए।
      अगर आपके पास इस प्रश्न का उत्तर हो कि क्यों दुनिया में अलग-अलग मत लोगों के बीच व्याप्त हैं तो उसे अवश्य सुनना चाहूंगा।
      क्यों इस्लाम धर्मावलंबी और जैनी अथवा कोई और (सिख, इसाई, बौद्ध …) एक ही आध्यात्मिक सोच नहीं रखते?
      पुनश्च धनयवाद एवं शुभेच्छा ।

      प्रतिक्रिया

  95. योगेन्द्र जोशी
    अप्रैल 19, 2019 @ 12:02:06

    मैं अपनी बात इस उद्येश्य नहीं कहता या लिखता हूं कि दूसरा सहमत होवे। हर व्यक्ति चिंतन-मनन के लिए स्वतंत्र है, बशर्ते कि वह दूसरों का प्रत्यक्षतः अहित न कर रहा हो। हर दूसरे व्यक्ति को संतुष्ट कर पाना किसी के लिए भी संभव नहीं, क्योंकि मतैक्य विरले अवसरों पर ही हो पाता है।

    मुझे इस बहस को जारी रखने में कोई रुचि नहीं। मुझे क्या करना चाहिए और क्या नहीं का निर्णय मैं स्वयं कर लूंगा। यदि उसमें अहित होगा तो मेरा ही होगा। आप चिंतित न हों।

    धन्यवाद। शुभेच्छा।

    प्रतिक्रिया

    • Sanjay Jhunjhunwala
      अप्रैल 22, 2019 @ 11:14:41

      ✨🇲🇰🇮🇳🇲🇰✨

      यादयाद हि धर्मस्य गलनिर्भवती.. ✨🙏🏻✨

      Every time when there is extreme abuse from loss of values (Dharm), and when there is increasing viciousness, I (Shiv the world benefactor) incarnate in human body in the land of Bharat.

      ✨most blessed we are✨🧚‍♂️👼🏻✨💛बाबा पिता टीचर सतगुरु✨🕊✨Om Shanti ✨
      Regards.

      SanjayJ / Mumbai 400002 / Maharashtra, INDIA
      Speak at : 00 91 9819994863

      ✨II ॐ शिव परमात्माय नमः II ✨” जो सदा शुभ-चिन्तक और शुभ-चिन्तन में रहते हैं वह व्यर्थ चिन्तन से छूट जाते हैं।”✨Om Shanti.✨

      >

      प्रतिक्रिया

      • योगेन्द्र जोशी
        मई 27, 2019 @ 22:02:24

        धन्यवाद एवं शुभेच्छाएं।

  96. गौरवि तिवारी
    जुलाई 02, 2019 @ 02:42:20

    काफ़ी हद तक मई भी सहमत हु।

    प्रतिक्रिया

  97. कट्टर हिन्दू
    जुलाई 18, 2019 @ 12:57:17

    हे मुर्ख गर्भ से उत्पन्न किड़े

    तुम खुद को तो समझ लो पहले

    और प्रश्न भगवान पर उठाने चले हो ।

    उन्होंने अधर्म का विनाश करने के लिए अवतार लिया था।
    न की स्वयं युद्ध करने के लिए।

    हे मंदबुद्धि

    जब उनका कार्य पुरा हो जाता है तब वह वनवास चले जाते हैं

    क्योंकि उन्होंने मानव रूप मे जन्म लिया था ।

    जोकि एक नश्वर है ।

    ज़िन्दगी मे तुम जैसा मुर्ख पहली बार देखा है ।

    विश्वास है मुझे तुम उसी घटीया मुस्लिम धर्म के कटुए हो ।

    तुम सोच ही कया सकते हो
    खतने और हलाला के अलावा ।

    प्रतिक्रिया

    • योगेन्द्र जोशी
      जुलाई 25, 2019 @ 17:38:54

      इस टिप्पणी को मैंने कूड़ेदान में डालना चाहिए था लेकिन ऐसा नहीं कर रहा हूं, क्योंकि यह एक उदाहरण है कि स्वयं को “कट्टर हिन्दू” कहने वाले सज्जन कितनी शिष्ट भाषा का प्रयोग करते हैं।
      कट्टर हिन्दू होने का अर्थ क्या हो सकता है? क्या यही कि आप दूसरों, जिनसे आप असहमत हों, के प्रति अपशब्दों की बौछार करें। असहति पर आप सामने पड़ने पर मारने दौड़ पड़ें। क्या कट्टर हिन्दू होने का मतल्ब यह है आप असहिष्णुता की पराकाष्ठा को छू जाएं? मेरी समझ से परे है ये बातें।
      स्पष्ट कर दूं कि मेरा खतना और हलाला से कोई वास्ता नहीं।

      प्रतिक्रिया

  98. #bandarkarsagar
    अगस्त 24, 2019 @ 02:09:34

    आपने भगवन पर या चलो कृष्णा के अस्तित्व पर सवाल उठाये ही, तो में आपसे एक प्रश्न पूछता हु. क्या आपको आपके वंशज के प्रथम व्यक्ति नाम पता है? चलो छोडो क्या आपको आपके पिछले १५ वि पीढ़ी का किसीका भी नाम पता है? मुझे भी नहीं पता. पर अगर आपको अपने वंशंजोके नाम पता होंगे तो अच्छी बात है. पर अगर नहीं पता, तो इसका मतलब ये तो नहीं होता ना के वो नहीं थे. देखिये हजारो वर्ष तक नाम सिर्फ उन्ही के याद रखे जाते है जिनके कर्म बड़े होते है. युगो की बाते छोड़ दो, सिर्फ कैलेंडर वर्ष से भी जिनके नाम आज तक हम सुनते है उनके कर्म बड़े है. बाकि आपकी किसी बातो मुझे टिप्पणी नहीं करनी।
    धन्यवाद

    प्रतिक्रिया

    • योगेन्द्र जोशी
      अगस्त 24, 2019 @ 11:23:03

      क्षमा करें मैंने अपने आलेख में श्री कृष्ण के अस्तित्व पर कोई सवाल नहीं उठाए हैं और न ही कहीं उनके भगवतावतार होने पर टिप्पाणी की है।
      यदि आप उसमें वह बात खोजें जो मैंने कही नहीं तो इसमें मेरी गलती नहीं।
      मैंने अपना मत व्यक्त किया कि उस काल में “महाभारत” के बाद धर्म की स्थापना हो जानी चाहिए थी जो हुई नहीं। यह मेरा मत था जिसे कोई अन्य जन मानने के लिए बाध्य नहीं।
      दुनिया में ही नहीं अपने देश में भी मत-मतान्तर चलते रहे हैं। और तो और, ईश्वर के अस्तित्व को भी हर कोई नहीं मानता। हमें वैचारिक स्वतंत्रता तो मिली ही है।
      शुभेच्छाएं।

      प्रतिक्रिया

  99. रवि गुप्ता नील
    अगस्त 24, 2019 @ 13:07:13

    प्रत्येक व्यक्ति के पास अपना अपना ज्ञान , दृष्टिकोण, एवं समझने की शक्ति है । मै नही जानता आप मेरी बात से कितना संतुष्ट होंगे पर आपने जिस पर टिप्पणी की है उसका संछेप में ज्ञान नही है ।
    आप भगवान के बिषय में अनभिज्ञ है किंतु यह मानते है के 4 युग होते है । और आप यदि कहे के आपने ऐसा पड़ा है या बुजुर्गों से सुना है के युग 4 होते है । तो आप से प्रश्न है के आप जब उन के कहने या पुस्तक में पड़ के ये मान सकते हो के युग 4 होते है जो के आप ने कभी नही देखे , तो बही लोग या पुस्तक भगबान के होने का बोध भी करती है । तो आप भगवान के होने को क्यों अस्वीकार करते है ।
    अब 2 बात आपने जो टिप्पणी में लिखा के भगबान श्री कृष्ण ने कहा के जब धर्म की हानि होगी तब वह अवतार ले कर अधर्म का नाश करेंगे । तो मेरे मित्र आप किसी भी युग को उठा कर देख ले भगबान ने तब ही अवतार लिया है जब धर्म अपनी चर्म सीमा पर पहुंचा है । और कलयुग के वारे में भी यही वर्णन है के जब अधर्म उस सीमा पर बढ़ जाएगा के 4 ओर त्राहिमाम हो जाएगा और पृथ्वी पाप का बोझ सहने में अक्षम हो जाएगी तब भगवान कल्कि के रूप में अवतार लेंगे।

    लोगो ने कलयुग को सबसे ज्यादा पाप का युग बता दिया किन्तु किसी ने कभी ये गौर नहीं किया के ये मात्र 1 लौता युग ऐसा है जिसमे ब्यक्ति सबसे जल्दी भागवान को प्रसन्न करके अपनी मनोकामना पूरी कर लेता है ।
    जब के अन्य युगों में सैकङो बर्ष तपस्या करता था ब्यक्ति तब जा कर भगवान उसकी प्रार्थना को स्वीकार करते थे ।
    अब आप स्वम् विचार करे ।
    रही भगवान की बात तो आप कभी एकांत में बैठ कर आंखे बंद कर के ॐ का जप करंगे तो बह अंधेरा काले से नारंगी होगा और आपके रोंगटे खड़े हो जायँगे ये ऊर्जा है भागवान । माता पिता स्वयं में प्रमाण है भगवान का। किसी असहाय की सहायता करने में मिला आशीर्वाद , वो वाणी है भगवान । कुछ अच्छा करने पर मिला सुकून है भगवान ।
    यदि आपने मेरी पूरी बात को पड़ा है इसके लिये धन्यवाद

    प्रतिक्रिया

    • योगेन्द्र जोशी
      अगस्त 24, 2019 @ 19:17:01

      मैंने अपने आलेख में भगवान के अस्तित्व के बारे में कुछ भी नहीं कहा है। अधिकांश लोग ईश्वर के अस्तित्व को मानते हैं तो अनीश्वरवादी भी इसी धरती पर वसते हैं। आपको मालूम है या नहीं यह आप ही जानते होंगे कि जैन मतावलंबी ईश्वर को नहीं मानते और बौद्धमतावलंबी न आत्मा एवं न ईश्वर के अस्तित्व को स्वीकारते हैं। उनसे आप क्या कहेंगे? व्यक्तिगत तौर पर मेरी आस्था क्या है इसका संकेत मैंने कहीं नहीं दिया है। जो कहा नहीं उसे आपने कैसे मान लिया?
      मैं तो केवल यह समझता हूं कि महाभारत की घटना के बाद धर्म स्थापित होना चाहिए था जो नहीं हुआ। मेरे मत से आप सहमत हों ऐसी कोई बाध्यता आप पर नहीं। आपके मत को मैं स्वीकारों इसकी बाध्यता भी मुझ पर नहीं हैं।
      शुभेच्छा।

      प्रतिक्रिया

  100. हेमंत कुमार त्रिपाठी
    नवम्बर 04, 2019 @ 16:07:25

    भगवान श्री कृष्ण के प्रति आपके विचार बहुत ही दुख दायक है |आप भगवान के उद्देश्यों को समझ नहीं पाये अतः आपके मन में शंकाएं हैं, आप हिंदू धर्म को भी नहीं समझ पाए सनातन धर्म को भी नहीं समझ पाए| आपके धर्म को अपने आचरण में ना ढालने के कारण ही धर्म की हानी हुई है | अतः आपसे निवेदन है की भगवान श्रीकृष्ण पर गलत टिप्पणी ना करें अगर विश्वास नहीं कर सकते तो दूसरों के विश्वास को कमजोर करने का प्रयास ना करें आप सनातन धर्म को मानने वाले हैं तो धर्म की रक्षा के लिए कृपया धर्म विरोधी बात ना करें | धन्यवाद |

    प्रतिक्रिया

  101. Saarathi
    नवम्बर 16, 2019 @ 22:43:55

    Mahoday aapka naam mere isht ke naam par rakha gya hai, yah jaankar atyant harsh hua, yogesh ji Ek baar sandhya aarti ke pashchaat nidhivan padhariye , sambhavtah aapka Bhram door ho sake,
    ……Apka 🦚…..

    प्रतिक्रिया

  102. राहुल
    दिसम्बर 20, 2019 @ 13:44:24

    आधी अधूरी जानकारी… है।😂😂😂

    प्रतिक्रिया

  103. Varun sharma
    दिसम्बर 31, 2019 @ 21:37:43

    Aapka gyan adhoora hai shriman ji. Aapne Yeh shlok poora to pda lekin dhyaan se nhi pda. Bus jo aapne likhna tha likh diya. Jis tarah andhere ko hamesha k liye khatm nhi kiya ja sakta usi tarah adharm ko bhi hamesha ki tarah khatm nhi kiya ja skta. Eska reason ye hai ki surya ek hai use poore brahmand se andhera door krna hai es liye use ghoomte rhna jaroori hai. Jahaan se surya gya vha andhera fir aa jayega. Usi tarah jab tak krishna dwapar yug me the tab tak dharm k liye lade. Unhe fir baikunth jana tha Esliye kalyug aaya aur fir adharm failna shuru hua. Ab Accha hua to bhagwaan ki marji aur bura hua to bhi bhagwaan ki marji. Ye kaha ka nyay hai bhai.
    Das capital pad ker aapne ye comment kiya hai ek baar shrimadbhagavadgita padiye. Aapko saare sawaalon k jawaab mil jayenge. Yeah keval ek shlok hai geeta me 18 adhyay hai. Unhe padiye.

    प्रतिक्रिया

  104. कमला रावत
    जनवरी 04, 2020 @ 16:17:37

    सृष्टि रचना से आशय नये धर्म सूत्र विधान रचना अर्थात संविधान रचना से है।

    प्रतिक्रिया

  105. Dr shankarprasad@ Sunil@ sikandarahmed@ sidarth@ sam s/o Digambar Gandhe
    मार्च 02, 2020 @ 07:13:36

    धर्म का मतलब बडा अदभुत है।
    सत्य, नितीन, न्याय, विश्वास और सहजीवन कोही धर्म कहा गया है।
    ईसकी विपरीत परिस्थिती को अधर्म।
    देव अवतार एक व्यवस्थापक के रुप में बताया है कि जो व्यवस्था परिवर्तन के विषय में कार्य करता है।।
    Other things let’s discuss personality

    प्रतिक्रिया

  106. Ashish Ananya Saikia
    मार्च 29, 2020 @ 23:51:11

    You’re only a agyani

    प्रतिक्रिया

    • योगेन्द्र जोशी
      मार्च 30, 2020 @ 08:23:25

      धन्यवाद। आपके द्वारा मुझे अज्ञानी कहे जाने पर मेरे मन और शरीर की कोई हानि होनी है। मैं जो हूं वही रहूंगा, न खुश और न नाखुश।
      आपके लिए ऐसा कहना संतोषप्रद हो सकता है। इस बात से मुझे भी संतोष होता है कि किसी को कुछ संतोष तो मिला।
      शुभकामना।

      प्रतिक्रिया

  107. उत्कर्ष सिंह "SRK"
    अप्रैल 02, 2020 @ 05:01:48

    मैं ज्यादा तो आपको तो नहीं समझा सकता। आपके उपरोक्त अच्छे विचार पढ़कर मुझे “चाणक्य नीति” (चौथा श्लोक, प्रथम अध्याय) का एक सुन्दर श्लोक याद़ आ रहा है, जरा ग़ौर फरमायें…👇👇👇

    मूर्खशिष्योपदेशेन दुष्टस्त्रीभरणेन च।
    दुःखितैः सम्प्रयोगेण पण्डितोऽप्यवसीदति।।

    Hindi: ‘मूर्ख शिष्य (व्यक्ति) के उपदेश देने से’, दुष्ट-पत्नी का पालन करने से, धन के नष्ट होने से तथा किसी दु:खी व्यक्ति के साथ अत्यंत घनिष्ठ-सम्बन्ध रखने से “बुद्धिमान व्यक्ति” को ही कष्ट उठाना पड़ता है अर्थात् उसके तर्क-कुतर्क में अपना मूल्यवान समय और बुद्धि व्यर्थ करनी पड़ती है…😊

    English: ‘Even a “pandit (wise man)” comes to grief by giving instruction to a foolish disciple’, by maintaining a wicked wife, by the ravages of wealth and by excessive familiarity with the miserable…😎

    Note: मैंने अपने आप को ‘बुद्धिमान व्यक्ति’ नहीं कहा, पर आपको ‘मूर्ख’ ज़रूर कहा है। धन्यवाद!…✌

    प्रतिक्रिया

    • योगेन्द्र जोशी
      अप्रैल 02, 2020 @ 12:41:03

      धन्यवाद इस उपाधि को प्रदान करने के लिए।
      खुद को बुद्धिमान न कहने वाला (मतलब न मानने वाला?) इतनी योग्यता रखता हो कि कौन मूर्ख है और कौन बुद्धिमान इसका निर्णय लेने में समर्थ हो इस पर आश्चर्य भी होता है और खुशी भी। शुभकामनाएं।

      प्रतिक्रिया

  108. Rupal kimari
    मई 28, 2020 @ 14:00:00

    Kya aap bata sakte h shrishti ki rachna kisne ki…kya aap bata sakte h human being ki rachna kisne ki…nhi bata sakte shayad or shayad mai bhi nhi bata sakti…maine bhi bhagwan ko nhi dekha par ek andekha vishwas h ke wo hain…

    प्रतिक्रिया

    • योगेन्द्र जोशी
      मई 29, 2020 @ 21:00:44

      जिस बात का ज्ञान मुझे नहीं उस पर मैं कोई चर्चा नहीं कर सकता। जो मेरे अनुभव में आता है अथवा जिसके बारे में प्रत्यक्ष/परोक्ष तौर पर जानकारी मिलती है उसी को अपने लेखन में
      अभिव्यक्त करता हूं। कोई मुझसे सहमत हो इसकी अपेक्षा भी नहीं करता। किस-किस से अपेक्षा करूं सभी के अपने-विचार होते हैं। इसलिए क्षमा करें कि आपके प्रश्नों के उत्तर देने में असमर्थ हूं।

      प्रतिक्रिया

  109. Kamal rawat
    जून 18, 2020 @ 00:34:54

    Agr ase bat h gyani ji hme ek bat btlaiye kya apne shreemad bhagwat geeta puri padi.agr pdhi h to q padhi ap to bhagwani ko mante he ni h na. To y ved puran sb aapke liye ek book hui to ap unki jgh kch or bhi padh skte the.and ha jb dwarka dubi the to us yug ka ant tha mahashay ji.or ha agr ap itne he gyani ho to apko pta hona chahiye ki Mahabharat ki ldai k bad pandwo ka sampurn nash nahi hua tha kya ap itna bhi ni jante.adha adhura gyan bht glt hota h mahashay

    प्रतिक्रिया

    • योगेन्द्र जोशी
      जुलाई 08, 2020 @ 17:43:04

      आपके समक्ष मेरा ज्ञान अत्यल्प है। इसलिए मैं कोई टिप्पणी नहीं करूंगा।
      मेरी समझ में जो आता है उसका उल्लेख करता हूं। जिसे अस्वीकार्य लगे उस पर मानने की कोई वाध्यता नहीं हो सकती।

      प्रतिक्रिया

  110. Kk
    जुलाई 03, 2020 @ 02:06:02

    जब भगवान कृष्ण ने स्वयं गांधारी के शाप को मान्य के दिया और व्याध के कारण मृत्यु का मतलब है जिसको राम युग ने बाली को मारा वो ही व्याध था वो कर्म बंधन में नहीं बंधते और महाभारत युद्ध के बाद धरम की स्थापना हुई फिर परीक्षित ने गद्दी संभाली और कलि ने उसको भ्रमित करके उसको काल जाल में डाल कर खुद राज किया भगवान के अंश या अवतार तो होते हैं कभी किसी रूप में अब माना जाता है कि कल्कि अवतार में जब हालत इतना खराब होगा कि इंसान खुद को भगवान समझने लगेगा हिरण्यकश्यप की तरह तो फिर अवतार होगा।

    प्रतिक्रिया

  111. Rohit
    जुलाई 24, 2020 @ 21:36:05

    Geeta Ke यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।🇮🇳
    अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥🙏🏻
    परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।😌
    धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे।🕉️ Ye Shaloka Shri Krishna ne nhi khe,,, ye Avtaarwad ko sidh krne ke liye baad mein BhagwadGeeta mein Jode gye thy,, meri Prathna Hai ki Bhagwat Purano ko shod Jai Sahinta Mahabharata Or Real Ramayana he padhi or padhayi jaye, 🙏 धन्यवाद

    प्रतिक्रिया

    • योगेन्द्र जोशी
      जुलाई 24, 2020 @ 21:49:56

      ख्याल अपने-अपने. तर्क अपनेअपने। कौन सही कौन नहीं इसका निर्धारण मैं नहीं कर सकता। जो मैंने देखा-पढ़ा उस पर विचार व्यक्त किए हैं। मैं किसी प्रकार का दावा नहीं करता!

      प्रतिक्रिया

      • Sanjay Jhunjhunwala
        जुलाई 25, 2020 @ 12:19:57

        हम सब काल चक्र में कर्मों अनुसार इस धरा पर आकर अपना पार्ट निभाते हैं। इस समय चक्र को यथार्थ जानने वाले एक परमात्मा भगवान ही है। चाहे किसी भी धर्म के अनुयायी हों, चाहे जिस भी रूप में व्यक्ति भगवान को मानता हो, भगवान तो सभी का एक ही हैं।

        कहा जाता है कि वास्तव में भगवान के बारे में यथार्थ और सत्य ज्ञान अनुभव उन्ही के द्वारा हो सकता है, ना कि पूजा से, ना जप से, ना तप से या किसी कर्म-काण्ड से। शास्त्रों और धर्म ग्रंथों में भी ज़्यादा कुछ नहीं, फिर भी कुछ संकेत मिलते है उनके विषय में।

        भगवान की रचना और उनकी कृपा का अनुभव मनुष्य आत्माओं को, विशेष उनको मानने वालों को, जीवन में अनेकों समय होता है। जिनको देखा ही नहीं फिर भी जिनकी कृपा, सानिध्य और शक्ति का अनुभव स्वयं की दिनचर्या में कर्म को प्रभावित करता है, विश्वास और ऊर्जा का स्त्रोत अनुभव होता है।

        परमात्मा शिव को, देवता श्रीकृष्ण को, शक्ति स्वरूप देवियों को, देव श्रीराम को, बुद्ध नानक जैसे धर्म स्थापको को, साधु सन्त अनेक मठ-पन्थी और गुरुओं में आस्था और मान्यता अनुसार हम गृहस्थी मन्दिरों, पूजा के लिए बने अन्य स्थानों में, मूर्तियों में, अर्चना प्रार्थना, कर्म-काण्ड कर अपने आराध्य की शरण लेते हैं, उन्हें याद करते हैं, उनका आवाहन करते हैं।

        फिर भी जिन सर्वशक्तिमान की हम खोज करते हैं, पूजते हैं, उन्ही के नाम पर वाद-विवाद, लड़ाई-झगड़े हो रहे हैं।अपनी मान्यता और आस्था में भिन्नता से प्रभावित होकर अब तो अधर्म और अज्ञान का घोर अन्धियारा बढ़ता जाता है.

        जिसने हमें मातपिता भाँति ऊँची से ऊँची राह दिखा सबसे ऊँची सीख दी, उस परम्पिता परमात्मा को, स्वयं को और उनसे मिला सत्य ज्ञान को हम मनुष्य आत्माएँ समय चक्र में उतरते उतरते भूल कर अधर्म और अज्ञान अंधियारे की नीन्द में सोयी पड़ी हैं।

        इतना घोर अन्धियारा है कि मन-बुद्धि एकाग्र नहीं है, अच्छे-बुरे की, सत्य-असत्य की परख भी प्रभावित है।अब वर्तमान समय में हम सबके परम्पिता परमात्मा भगवान स्वयम् हमारे लिए आये हुए है, इस कड़े समय में हमें पार जाने का मार्ग दिखाने, साथ लेजाने, हमारी गति-सद्गति के लिए।

        जिस आधार और माध्यम से वे ज्ञान दान कर रहे हैं, वह भी उनकी ही विशेष देन है। भगवान का सत्य ज्ञान ब्रह्मा तन के माध्यम से सभी मनुष्य आत्माओं के लिए ब्रह्मकुमारी सेवा केन्द्रों से बहुत ही सुलभ और सरलता से निःशुक्ला प्राप्त है। ७ दिन का कोर्स सेंटर पर या अभी ऑनलाइन प्राप्त है, जिससे परमात्मा द्वारा दिया सत्य ज्ञान है। इसमें हमें उनके विषय में यथार्थ और सत्यता की परख और अनुभव के आधार से, इस सृष्टि के आदि मद्य अंत के बारे में, स्वयं के विषय में यथार्थ मर्गदर्शक ज्ञान मिलता है।

        इस सत्य ज्ञान का निजी अनुभव प्रत्येक आत्म के लिए मार्गदर्शक है वर्तमान समय के लिए भी और भविष्य आने वाले समय के लिए भी। आप कृपा कर अपना अनुभव करें, अपना जीवन सार्थक और मूल्यवान बनायें। शुभकामना। ✨🙏✨

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  112. अनुज
    जुलाई 27, 2020 @ 18:30:55

    यदि आप अभी जहां है और अचानक कोई स्थिति में आपकी मृत्यु हो जाए तब आपके स्थूल शरीर और अब जो आप हैं उनमें अंतर ही ईश्वरत्व है , उम्मीद है आप इस ईश्वरत्व का उपयोग मानव कल्याण के लिए करेंगे ना की ईश्वरत्व की विवेचना में

    प्रतिक्रिया

    • योगेन्द्र जोशी
      जुलाई 27, 2020 @ 19:24:19

      मुझे जो टिप्पणियां पढ़ने को मिलती हैं उनमें पाठक वह विषय भी खोज लेते हैं जिसकी बात मैंने कही ही नहीं।
      मैंने न ईश्वर के अस्तित्व की बात कही है और न ईश्वरत्व की विवेचना।
      मैंने तो शीमद्भगवद्गीता के कुछ छंदों को लेकर अपना मत व्यक्त किया है।
      यह मैंने कहीं नहीं कहा कि पाठक मेरी बात मानें। वे स्वतंत्र हैं अपने विचार पालने के। लेकिन पाठक मुझसे अपेक्षा करते हैं कि मैं उनकी बात मानूं। मैं भी तो स्वतंत्र हूं।
      अगर ईश्वर की बात करें तो दुनिया भर में मतमतांतर देखने को मिलते हैं। दृष्टांत के तौर पर इस्लाम में ईश्वर की परिकल्पना भारतीयों से भिन्न है और उसके कुछ अतिवादी अनुयायी अपने विचार थोप रहे हैं। क्या उनके विचार स्वीकार लें?

      प्रतिक्रिया

      • Sanjay Jhunjhunwala
        जुलाई 27, 2020 @ 19:39:10

        इसी भिन्नता, मत-मतान्तर की बातों से निजी और सामूहिक स्तर पर भी वाद विवाद है. भगवान स्वयं अपने बारे में यथार्थ ज्ञान देते हैं. और ना कोई मनुष्य की कथनी से, न विश्व के किसी भी धर्म ग्रन्थों से सत्य ज्ञान, परमात्मा का यथार्थ परिचय अनुभव हो सकता है. परम्पिता परमात्मा भगवान निराकार शिव कल्प के अन्त में समय चकरा में एक काल में आकर पुनः सत्य ज्ञान देते है, हमसब उनके बच्चों को अज्ञान घोर अंधियारे से ज्ञान द्वारा प्रकाशित कर पतितों को पावन कर अपने वास्तविक घर को साथ ले जाते हैं, एक नयी दुनिया की रचना स्थापना कर के. और इस पुरानी विकारी जड़जड़ीभूत दुनिया का विनाश तो होते हम सभी वर्तमान में देख ही रहे हैं. हम सब बडभागी हैं✨

        Sent from my iPhone

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  113. Abhi M
    अक्टूबर 15, 2020 @ 12:14:31

    Also Read अगर मैं भगवद गीता को आधा के बाद पढ़ना बंद कर दूं तो क्या होगा? here https://hi.letsdiskuss.com/what-will-happen-if-i-stop-reading-bhagavad-gita-after-half

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  114. नितिन बढ़ानी
    दिसम्बर 24, 2020 @ 13:56:48

    आपका कथन चार्वाक दृष्टिकोण से सर्वथा उचित है मान्यवर , परंतु शास्त्रों में ईश्वर वह वैज्ञानिक सत्ता है ,जिसे कोई देख पाए तो भी संभव है ,ओर ना देखना भी इस वाक्य का अर्थ कुछ इस प्रकार से है मैंने में विश्वास या ना मानने मै विश्वास परंतु क्रमशः दोनों पक्षों का विश्वास किस बात पर कितना है, कण मे भी वही त्रिविध रूप में विद्यमान होकर बैठा है ,ओर हर जीव जातियों मे भी त्रिविध रूपो में विद्यमान है इन त्रिविध रूपो के किसी एक तत्व की उतार चढ़ाव से ही , गति प्राप्त होती है जिससे उसका कर्म निर्धारित होता है , जिस दौरान इन कनों में कर्म के दौरान हमारे इन्द्रिय ओर उनके विषयो पर जिस तरीके का क्रिया रहेगी उसका साक्षात्कार उसी दृष्टिकोण में होगा इन्द्रिय ओर उनके विषय:- इन्द्रिय:- नेत्र ,कान,नाक,जीभ, त्वचा- वाणी, पांव,हाथ,गुदा तथा लिंग इनके इन्द्रिय खा सलंग्न है , इनके मंथन से ही दूध से मक्खन निकलता है ।

    प्रतिक्रिया

  115. जयकृष्ण
    जनवरी 16, 2021 @ 10:58:38

    मैं अपनी बातों से सहमत हूँ लेकिन एक बात बोलना चाहता हूँ कि भगवान शब्द का मतलब क्या है और जिसको ये पता है बो कभी इन बातों पर वहस नही करेगा

    प्रतिक्रिया

  116. Raj
    अप्रैल 29, 2021 @ 08:40:07

    Aap apni budhi ka vikas krein
    Kyunki iswar kinleela aapke samjh ke pare hai

    प्रतिक्रिया

  117. sachin
    मई 02, 2021 @ 12:57:19

    आप पूर्ण रूपेण नास्तिक है, आप इस लेख में यह चीज मान रहे है कलियुग में चरित्र और मर्यादा का समाज द्वारा पालन नही किया जा रहा तो मैं बता दूं कि उसके सबसे ज्यादा जिम्मेदार आप जैसे अपने को ज्यादा पढ़े लिखे और ज्ञानी समझने लोग ही है

    प्रतिक्रिया

    • योगेन्द्र जोशी
      मई 02, 2021 @ 13:15:13

      टिप्पणी के लिए धन्यवाद। आपकी बातों पर मेरी कोई प्रतिक्रिया नहीं है। क्षमा करें।

      प्रतिक्रिया

      • मनवा
        मई 06, 2021 @ 21:52:33

        नामों नमः !

        योगेन्द्र जोशी जी

        समय की कमी के वजह से आपके पेज का सम्पूर्ण पुराण तो नहीं पढ़ पा रही हु! पर ये जानने के लिए कोई दिव्य दृष्टि की जरूरत नहीं है की आप साधारण बुद्धि के व्यक्ति नहीं हो। आप एक ज्ञानी पुरुष हो ।

        आप’की और महंत प्रेमानन्द के शब्दों से पता चलता है की आपके दोनों के विचारों मे कितनी स्थिरता है।

        आपसे मिलकर खुशी हुई ।

  118. Rajeev
    सितम्बर 27, 2021 @ 10:54:34

    जो कहा उससे में सहमत नही हुँ महाभारत युध्द द्वापर युग में हुआ जिसकी वजह से युछिष्ठिर राजा बने जो कि धर्मराज थे उन्ही के राजा बनने के बाद धर्म की स्थापना हुई जो सिर्फ द्वापर युग तक ही सीमीत थी द्वापर युग और कलयुग दोनो अलग युग है जब तक युधिष्ठिर राजा थे धर्म जीवित था किन्तु युधिष्ठिर, द्रोपदी, अर्जुन, भीम, नकुल, सहदेव जब स्वर्ग की तपस्या के लिए गये तो परिछित जो अभिमन्यु पुत्र था उसे राजा बनाकर गये थे और तभी से कलयुग का आरंभ हो गया था और रही श्री कृष्णा की तो उनको गांधारी ने श्राप दिया था की उनके यादव वंश का नाश हो जाऐगा उस समय श्राप शब्द होता था जो आज के समय नही है क्युकि उस समय सत्य बोला जाता था तपस्या करते थे जिससे श्राप और आशीर्वाद का जल्दी असर होता था वास्तव में जो गीता में जो लिखा है वह सत्य है और ये भी सत्य है जब जब धर्म की हानि होती है तब तब किसी रुप में स्वयं नारायन जन्म लेते है आज जो भी संसार में हो रहा है वो अधर्म है और फिर श्री हरि विष्णु अवतार लेंगे फित्र से अधर्म का नाश करके धर्म की स्थापना करेगे और यह सत्त है।🙏

    प्रतिक्रिया

  119. dharm Guru
    नवम्बर 22, 2021 @ 05:14:16

    किसी असत्य को, स्वेक्षा से, बिना दबाव के, सत्य का लिबास उढ़ा दिया जाए – उसे विश्वास कहते हैं
    यहाँ मैंने सभी के, कमेंट पढ़ें, और एक कहानी याद आ गई
    कि एक गाँव था अंधों का – उसमें एक “हाथी वाला बाबा” आया, सभी अंधों ने,उस हाथी के शरीर के अलग अलग अंगों को छूकर, हाथी के होने की अनुभूति की,
    और शाम को सभी अंधे एकत्रित होकर, अपने द्वारा छुए अंगों की के मुताबिक़ हाथी के आकार की व्याख्या करने लगे
    जिसके हाथ मैं हाथी का पैर आया, वो गोल खम्भे के मुताबिक बताने लगा
    जिसके हाथ मैं, हाथी का कान आया, वो सूप की माफिक
    अर्थात पूँछ / पेट / पीठ अलग अलग तरीके से
    इसी तरह से, इस लेख को पढ़ने वाले दो समूह हैं, एक आस्तिक और एक नास्तिक
    दरअसल जो आस्तिक होने का दिखावा कर रहे हैं, वो भी नास्तिक ही हैं, क्योंकि उन्हें खुद पर विश्वास नहीं, या ये हमारे अंग्रेजी मीडियम वाले तार्किक युवा भी हो सकते हैं, भाइयो यदि धर्म के बारे मैं जानना चाहते हो, वो भी भी तर्क और विज्ञान के साथ, तो अपने “सर्च इंजन” मैं टाइप करो
    yada yada hi dharmashya dharmguru
    ध्यान रहे dharmguru.com हमारा डोमेन है, इसे पढ़ने के बाद, आपके बहुत सारे रहस्य खुद ब खुद खुल जाएंगे

    प्रतिक्रिया

  120. Subodh Sharma
    दिसम्बर 18, 2021 @ 01:58:49

    prabhu se ararthna kijiye ki wah aapo unke divya roop ke darshan karwayen,

    प्रतिक्रिया

  121. Pratik
    मई 13, 2023 @ 15:33:41

    भगवान तो अच्छाई और बुराई से परे है, लेकिन जहां अच्छाई होती है, जहां लोग धर्म का पालन ज्यादा से ज्यादा करते हैं और कहीं उनका अधर्मियों( झूट, छल, कपट, अपमान करने वाले लोगों) से पाला पड़ता है, वो हारने लगतें हैं, तो धर्म की रक्षा हेतु, सहायता करने वहां ईश्वर आतें हैं,
    आज (13 मई 2023) है, जिस तरह दुर्योधन ने भरी सभा में एक नारी, द्रौपदी का अपमान किया तो भगवान ने पूरे कौरव कुल का नाश किया था,उसी तरह शाहरुख खान के “पठान” मूवी के “बेशरम रंग” गाने में दीपिका पादुकोण और सनातन धर्म का अपमान किया है, यही अधर्म है,अब बस भविष्य का इंतजार कीजिए, उन्होंने धर्म की रक्षा के लिए अपने अंशावतार को जन्म दे दिया है।

    प्रतिक्रिया

  122. Pratik
    मई 13, 2023 @ 15:42:47

    भगवान तो अच्छाई और बुराई से परे है, लेकिन जहां अच्छाई होती है, जहां लोग धर्म का पालन ज्यादा से ज्यादा करते हैं और कहीं उनका अधर्मियों( झूट, छल, कपट, अपमान करने वाले लोगों) से पाला पड़ता है, वो हारने लगतें हैं, तो धर्म की रक्षा हेतु, सहायता करने वहां ईश्वर आतें हैं,
    आज (13 मई 2023) है, जिस तरह दुर्योधन ने भरी सभा में एक नारी, द्रौपदी का अपमान किया तो भगवान ने पूरे कौरव कुल का नाश किया था,उसी तरह शाहरुख खान के “पठान” मूवी के “बेशरम रंग” गाने में दीपिका पादुकोण और सनातन धर्म का अपमान किया है, यही अधर्म है,अब बस भविष्य का इंतजार कीजिए।

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