पंचतंत्र नीति वचन: विश्वसनीय पर भी पूर्ण विश्वास घातक हो सकता है

पंडित विष्णुशर्मा प्रणीत पंचतंत्र में व्यावहारिक जीवन से संबंधित सार्थक नीति की तमाम बातें कथाओं के माध्यम से समझाई गयी हैं । ग्रंथ का दिलचस्प पहलू यह है कि इन कथाओं के अधिकतर पात्र पशु हैं, जो सामान्य मनुष्यों की तरह समस्याओं का साक्षात्कार करते हैं, उनके समाधान का रास्ता खोजते हैं, और उन पर परस्पर बहस एवं सलाह-मशविरे में शरीक होते हैं । इसके दो प्रमुख पात्र करटक तथा दमनक नाम के सियार हैं, जो जंगल के राजा शेर के मंत्री ‘सियार’ के बेटे हैं । पंचतंत्र के एक प्रकरण में विश्वास किस पर करें और कितना करें की चर्चा करते समय करटक भाई दमनक को समझाता है कि किसी पर भी अतिशय विश्वास विनाश का कारण बन सकता है । उसी संदर्भ में उक्त ग्रंथ में अधोलिखित श्लोक उपलब्ध हैं (पंचतंत्र, द्वितीय तंत्र – मित्रसंप्राप्ति, श्लोक क्रमशः 44 एवं 45):

न विश्वसेदविश्वस्ते विश्वस्तेऽपि न विश्वसेत् ।

विश्वासाद्भयमुत्पन्नं मूलान्यपि विकृन्तति ।।44।।

(अविश्वस्ते न विश्वसेद्, विश्वस्ते अपि न विश्वसेत्, विश्वासाद् उत्पन्नं भयं मूलानि अपि विकृन्तति ।)
विश्वास न करने योग्य व्यक्ति में निःसंदेह भरोसा नहीं करना चाहिए, किंतु जिस व्यक्ति को विश्वसनीय पाया जाए उस पर भी एक सीमा से अधिक भरोसा नहीं करना चाहिए, क्योंकि विश्वास करने से पैदा हुए भय अर्थात् संकट (या परेशानी) व्यक्ति के मूल को काट डालता है । कहने का तात्पर्य यह है कि अति विश्वास मनुष्य को कभी-कभी ऐसी दुरवस्था की स्थिति में धकेल देता है, जिससे पार पाना कठिन होता है । उसे अपने अस्तित्व का आधार भी खोना पड़ जाता है ।

न वध्यते ह्यविश्वस्तो दुर्बलोऽपि बलोत्कटैः ।

विश्वस्ताश्चाशु वध्यन्ते बलवन्तोऽपि दुर्बलैः ।।45।।

(अविश्वस्तः दुर्बलः हि बलोत्कटैः अपि न वध्यते, अपि च विश्वस्ताः बलवन्तः दुर्बलैः आशु वध्यन्ते ।)
जो दूसरे में विश्वास नहीं करता है वह बलवानों के द्वारा भी नहीं मारा जाता है, किंतु जो विश्वास करता है उसका नाश बलवान् होते हुए भी दुर्बलों द्वारा किया जाता है । तात्पर्य यह है कि जिसने कभी धोखा न दिया हो और जिसका आचरण सदैव भरोसे के योग्य लगा हो वह कमजोर होकर भी समर्थ को नुकसान पहुंचा सकता है । इसके विपरीत कमजोर व्यक्ति भी पर्याप्त सावधानी बरतते हुए समर्थ व्यक्ति से स्वयं को बचा सकता है ।

वास्तव में जो व्यक्ति पूर्ण विश्वास का पात्र बन चुका हो, उसके लिए भी यह नहीं कहा जा सकता है कि भविष्य में वह कभी धोखा नहीं देगा । मनुष्य का व्यवहार कब बदल जाएगा इस बात का ही कोई भरोसा नहीं । ऐसे में बुद्धिमान् व्यक्ति को चाहिए कि वह सदा सावधान रहे और यह मानकर चले कि अमुक व्यक्ति आज नहीं तो कल धोखा दे सकता है । यह देखने में आता ही है कि व्यापारिक संबंधों में घनिष्ट मित्र भी ठगी पर उतर आते हैं । व्यक्ति के स्वयं के बेटे-बेटियां तक कभी-कभी वंचक की भूमिका में उतर आते हैं । इसीलिए कहा जाता है कि वृद्धावस्था के लिए मनुष्य को अपनी कारगर व्यवस्था समय रहते कर लेनी चाहिए और अपने बच्चों के भरोसे भी आंख मूंदकर नहीं बैठना चाहिए । कब किसकी नीयत बदल चाए कहा नहीं जा सकता है । मानव व्यवहार विचित्र, अस्थाई एवं परिवर्तनशील होता है । – योगेन्द्र जोशी